www.pixabay.com
motivation, personality development, safalta ke mool mantra, solution of a problem

“क्या आपने भी कभी बोये हैं उम्मीद के बीज ?”

अँधेरा रोशनी की उम्मीद देता है और रोशनी कुछ करने का जुनून तभी तो दिन ढलने के बाद चारो तरफ अँधेरा होने के बाद भी दिल बेचैन नहीं होता या वो क्या चीज़ है जो उसे बेचैन नहीं होने देती ?वो एक मैजिक वर्ड है जिस पर सारी दुनिया टिकी हुई है !आप बिलकुल सही सोच रहे हैं में उम्मीद की ही बात कर रही थी !

एक उम्मीद अपने साथ जाने कितने ख्वाब लेकर आती है और हर एक ख्वाब अपने पूरा होने का जूनून !इसी उम्मीद ,ख्वाब और जूनून का नाम ही ज़िन्दगी है !कभी कुछ पाने का जूनून तो कभी खोने की दीवानगी बस इसी पाने और खोने का नाम ही है गम और ख़ुशी !यही वह दो चीज़ें हैं जो ज़िंदगी मैं उथल- पुथल मचती है ” खुशी को हर कोई रोके रखना चाहता है परन्तु खुशी की एक आदत होती है वह दूर के किसी सम्बन्धी की तरह होती है अधिक समय तक नहीं ठहरती और इसके बिलकुल विपरीत “गम को कोई रोकना नहीं चाहता परन्तु वह पास के वफ़ादार सम्बन्धी की तरह होता है और ये अगर एक बार आजाये तो लम्बे समय तक छोड़कर नहीं जाता !

सुख दुःख का ये चक्र सदैव चलता रहता है और इसी के इर्द-गिर्द जीवन की नैया डोलती रहती है हार नहीं मानना उम्मीद फिर भी ज़िंदगी से यही बोलती रहती है !कुछ पाने का जूनून और उसको पाकर मिलने वाला सुकून दोनों की उम्मीद बानी रहती है !

उम्मीद के सम्बन्ध मैं एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है “उम्मीद पे दुनियां क़ायम है “वो उम्मीद ही है जो व्यक्ति को नेगेटिविटी से निकालकर पाजिटिविटी की तरफ मोड़ देती है उम्मीद की वजह हो या न हो “वजह ढूंढ़ने की भी वजह देती है “सत्तर के दशक की एक पिक्चर “आनंद ” पूर्णतः इसी पर आधारित थी राजेश खन्ना के प्रसिद्ध डायलॉग बाबू मुशाये को शायद ही आज भी कोई भूल पाया हो वो चीज़ें जो लीग से हटकर होती हैं दिल पर एक चाप छोड़ जाती हैं !

hope
Ummeed ka beej

निराशा के समय में आशा का दामन थामे रखना ,यह हर किसी के बस की बात नहीं होती लीक से हटकर दूसरों के द्वारा किए जाने वाले काम तो हमे अच्छे लगते परंतु जब अपनी बारी आती है तो आप घबरा जाते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप मन से हार मान चुके होते हैं वो क्योंकि इस बार समस्या किसी और की नहीं बल्कि आपकी अपनी होती है दूसरों की लीक से हटकर किये जाने वाले काम आपको इसलिए भी पसंद आते हैं क्योंकि उस वक्त आपका माइंड खुला हुआ होता है परंतु जब आपकी अपनी बारी आती है तो आपकी सोचने समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है !

ज़िंदगी में दो ही चीज़ें हैं सुख व दुःख जीवन दुखों से समाप्त नहीं होता जीवन समाप्त होता है निराशा से इसलिए जिंदगी में कभी भी हार मत मानिए बड़े ख्वाब, बड़े होसलों और बड़ी उम्मीदों के साथ बढ़ते रहिए याद रखिये होंसला रखने वालों की कभी हार नहीं होती कुछ लोग तो इस विचारधारा का समर्थन करते हैं कुछ का मानना है कि जिंदगी आपको वह कभी नहीं देती जो आप जिंदगी से चाहते हैं जैसे जिंदगी -जिंदगी ना हुई आपकी दुश्मन हो गई !

जिंदगी आपको वह सब कुछ देती है जो आप जिंदगी से चाहते हैं जरूरत बस एक सही चीज की सही वक्त पर उम्मीद करने की और सही दिशा में आगे बढ़ने की, और आपकी एनर्जी ,आपका हौसला और आप के जुनून को उसी दिशा में बनाये रखने की अगर आप इन सब चीजों का एक निर्धारित दिशा में उपयोग करने में सफल हो जाते हैं तो ना केवल आप अपनी ही उम्मीदों पर खरा उतरने में सक्षम होंगे अपितु दूसरों के लिए भी उम्मीद की एक किरण बन जायेंगे !

जिंदगी आपको वह सब कुछ देती है जो आप इससे चाहते हैं इसलिए एक दिशा निर्धारित कर आगे बढ़ते रहिए अगले ब्लॉग में फिर मुलाक़ात होगी तब तक हंसते रहिए- हंसाते रहिए जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद

🙏🙏🙏

67 विचार ““क्या आपने भी कभी बोये हैं उम्मीद के बीज ?”&rdquo पर;

    1. सत्य है , परन्तु इसका तात्पर्य यह तो नहीं की व्यक्ति उम्मीद ही न करे !एक उम्मीद टूटेगी नहीं तो दूसरी कैसे बंधेगी चलायमान रहना ही प्रकृति का नियम है !

      Liked by 1 व्यक्ति

  1. प्रकृति चंचला है शरीर की भी गति है लेकिन आत्मा स्थिर रहती है। वह कौन है जो मेरे सोने के बाद जगता रहता है फिर से उठने पर भी वही से याद भी दिलाता है।

    Liked by 1 व्यक्ति

    1. व्यक्ति की अंतरात्मा ,संवेदना ,विश्वास, अंतर्मन की भावना आदि मिलकर स्थिर आत्मा में अस्थिर गति उत्पन्न करते हैं !यधपि आत्मा स्वतंत्र है परन्तु मृत्यु को प्राप्त होने के पश्चात !

      Liked by 1 व्यक्ति

      1. आत्मा किसी प्रभावित नहीं होती है अज्ञानता वश हम स्वयं उसे नहीं नहीं जान पाते। संवेदन,द्वंद ,विश्वास और अविश्वास मन के व्यापार है मन ही बंधनकारी है विश्व में सबसे तेज गति भी मन की है आत्मा न पैदा होती है न मरती है न सुख दुःख उसके विषय है

        Liked by 1 व्यक्ति

      2. बिलकुल आत्मा तो अजर अमर होती है सुख दुःख उसके विषय नहीं होते परन्तु केवल तब तक जब तक वह शरीर को ग्रहण नहीं करती एक बार जब आत्मा शरीर को ग्रहण कर लेती है तो समस्त शरीर इसके वशीभूत हो जाता है मन भी उन्हीं में से एक है यदि ऐसा नहीं होता तो मानव मन को स्थिर रखने के लिए योग आदि का सहारा भी न लेता मुख्य योग दर्शन ही विकसित न हुआ होता आज कोई पतंजलि को भी नहीं जानता !

        Liked by 1 व्यक्ति

      3. प्रश्न आत्मा की स्थिरता का था और अज्ञान का योग तो मंत्र के उच्चारण में ही हो जाता है उसके लिए पतंजलि जी की आवश्यकता नहीं है। वेद के मंत्र का सही वाचन यदि माघ मास में कर दिए जाय तो सारे कपड़े पसीने से गीले हो जाएगी। गर्मी का संचार हो जायेगा

        Liked by 1 व्यक्ति

      4. मन की अस्थिरता और व्यक्ति की अज्ञानता का उपाए मन्त्रोचान में है जिससे जनसाधारण अनभिज्ञ है , यदि भिज्ञ होता तो ये पुनर्जन्म का चक्र न होता !
        जब आत्मा स्थिर है और मन अस्थिर तो ये मोह -माया क्योँ जब आत्मा सर्वोपरि है तो वह शरीर को नियंत्रित क्यों नहीं कर पाती !

        Liked by 1 व्यक्ति

      5. अज्ञानता के कारण हम जगत को सब कुछ मान लेते है कट्टरता ऐसी है जो आध्यात्मिक प्रक्रिया में प्रवेश नहीं करने देती। स्वप्न में जब हम रहते है तो डरते है पसीना भी निकलता है अफसोस भी करते है मरते और मारते भी। किन्तु जैसे निद्रा टूटती है लौकिक जगत में आते है तो स्वप्न की सत्ता खंडित हो जाती है।इस लौकिक या व्यवहारिक जगत का बाध होने के लिए पारलौकिक जगत का अनुभव होना जरूरी है।

        पसंद करें

      6. ईकाई अर्थव्यवस्था में होती है गलत शब्द चयन है। अज्ञान को हमारे शास्त्रों में अंधकार कहा जाता है। यदि आप को ज्ञान हो जाय कि आप शरीर नहीं आत्मा हो इसका विश्वास भी जरूरी है उसकी प्रक्रिया है साधना ! स्वयं को जानने की । फिर प्रश्न कैसे माने अंधकार है।अब देखिए विज्ञान तो सब पढ़ते है लेकिन वैज्ञानिक सब नहीं हो जाते है जब रहस्य उसी विज्ञान में होता है। सबसे पहले इंद्रियों को जीतना फिर मन की गति पर विराम लगाना क्योंकि जैसे ही हम आंख बंद करते है तरह तरह के ख्याल आने लगते है। मन को शून्य में विचार शून्यता में ले जाना। जैसे ही एकाग्र हुये आगे की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। लेकिन यह कठिन बहुत है इन्द्रीयलोलुपता जाती नही जल्दी । आचार विचार आहार संस्कार व्यवहार सब शुद्ध करना पड़ता है।

        Liked by 1 व्यक्ति

      7. इकाई शब्द का अर्थ होता है मूल पदार्थ के अवयव के विषय में यधपि इसका उपयोग गिनती की जाने वाली चीज़ों में भी प्रयोग किया जाता है !
        यधपि यह भी सत्य है की एकाग्रचित्त हुए बिना सत्य को जानना कठिन है !साधारण मनुष्यों के विषय में तो नहीं कहा जा सकता क्यूंकि ये हर किसी के बस की बात नहीं !धार्मिक सरलता धार्मिक उद्देश्यों को चरितार्थ करती है !

        Liked by 1 व्यक्ति

      8. मनुष्य काम क्रोध मद लोभ सब व्यक्ति में भरपूर है छल कपट झूठ ये सब घर से सीखता है एक छोटा बच्चा और माता पिता उसे क्या क्या नही सिखाते है सबसे आगे रहना टॉप करना खूब पैसा कमाना। यदि घर मे मां और पत्नी चाह ले तो एक दिन में बिना कानून घूस खत्म। लेकिन मैं जैसा हूं जैसा दिखता हूं और जैसा दिखना चाहता हूँ बस असली नकली बना देता है।

        Liked by 1 व्यक्ति

      9. रहीमदास अकबर के पुत्र थे जो सात हजारी मनसबदार थे कृष्ण भक्ति का रंग ऐसा चढ़ा की बनिया की दुकान से उठे वृंदावन चले गये फिर कभी लौटे नहीं स्वयं नाचते और कृष्ण को नाचते। बस अकड़ छोड़नी है। फिर क्या
        सोय जानय सो देहि जन्हाहि
        जनाय तोहय तोहहि होय जाई

        Liked by 1 व्यक्ति

      10. कोमलता, सहजता ,स्पष्टता के प्रति प्रत्येक ब्यक्ति का एक भिन्न द्रष्टिकोड होता है यदि ह्रदय कोमल हो जाये तो मनुष्य कभी किसी की भावनाओं को आहात न के ,यदि सहजता आजाये तो ये आडम्बर ही समाप्त हो जाये यदि दोहरा जीवन न जिए तो स्पष्ट आजाये !परन्तु वास्तविकता तो यह है की मनुष्य बद्द्लना हरे नहीं सजहता है !

        Liked by 1 व्यक्ति

      11. कोमलता ,सहजता और स्पष्टता के लिए बहुत दृष्टिकोण या भिन्न नजरिया नहीं होता है।वह सब आडम्बर ही होगा।सत्य को न स्वीकार करना या मूल को ही न मानना

        Liked by 1 व्यक्ति

      12. देखिये सत्य तो यह है की संसार मेरी या आपकी इच्छानुसार नहीं चल सकता जितने मनुष्य उतनी अवधारणाएं हम जैसे हम जैसे साधारण लोग प्रत्यक्षतः संसार को बदलने की क्षमता नहीं रखते हाँ मगर अप्रत्यक्ष रूप से अपने विचारों की अभिव्यक्ति के द्वारा वैचारिक क्रांति अवश्य ला सकते है !

        Liked by 1 व्यक्ति

      13. कैसे ?धार्मिक कट्टरता के आधार पर या दूसरों पर अपना दृष्टिकोण लादने के आधार पर ,अभी तक तो धार्मिक श्रेष्टता से ही बाहर नहीं आपये हैं अभी तक तो आंतरिक द्वन्द ही नहीं मिट पाया है जो स्वयं की समस्या सुलझाने में अक्षम हो वह दूसरों की समस्या कैसे सुलझा सकता है !
        मेरा यह विचार सर्वसाधारण के सम्बन्ध में है मैं किसी वर्ग विशेष को टारगेट नहीं कर रही हूँ !

        Liked by 1 व्यक्ति

      14. दृष्टिकोण लादने से कुछ नहीं होता है न वह लादने की चीज जो जिस मान्यता है उसे बदला नहीं जा सकता है। सनातन भूमि कट्टर होती तो अन्य धर्मावलंम्बी कभी शरण के लिए फलने फूलने के लिए यहाँ नहीं आते है। रही कट्टरता की बात काली कमरी चढ़े न रंग दूजा ।एक व्यक्ति है जो आपकीं उदारता को कमजोरी मानता है वह प्रेम नहीं समझता उसके सामने कट्टरता के अलावा कोई और विकल्प नहीं चल सकता। यह आज की रवायत है जो चलनी बनी हुई है समयानुकूल निर्णय करना नीति है नहीं तो कोई और आके गुलाम बना जायेगा ।

        Liked by 1 व्यक्ति

      15. मैं किसी धार्मिक वाद-विवाद में पढ़ना नहीं चाहती न ही यह मेरा विषय ही है और न ही उद्देश्य !

        पसंद करें

      16. द्वंद कभी हुआ नहीं सहजता और प्रेम को मैं नैसर्गिक मानता हूं। कोई किसी से बात करे यह कमजोरी नहीं हो सकती है। पर देखा यह जाता है जिसनें प्रस्ताव पहले दिया दूसरा वाला व्यक्ति पहले व्यक्ति का इससे चरित्र चित्रण कर देता है।यह समग्र दृष्टिकोण है जो व्यक्ति दर व्यक्ति पाया जाता है। यह ईगो साइकोलोजी में कहलाता है।

        पसंद करें

      17. इसी के सन्दर्भ में मतलब आपुआह वाक्य विशेष कोट कर सकते हैं plz क्यूंकि यहां बहुतसे repply एक साथ हो गए हैं !

        पसंद करें

      18. कोई भी टिप्पणी यदि वर्ग विशेष के मन को छुए बिना निकल जाये तो ऐसी टिप्पणी का अर्थ ही क्या !

        पसंद करें

टिप्पणी करे

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.