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“कहीं आपके आदर्श भी पाखंडो की बलि तो नहीं चढ़ गए !”

सिद्धांततः कहा जाता है की बड़ों का सम्मान किया जाना चाहिए ,हमारे कारण कभी किसी की भावनाएं आहत ना हो इसका सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए ,झूठ नहीं बोलना चाहिए किसी को पीड़ा नहीं पहुचानी चाहिए , किसी के दुःख का कारण नहीं बनना चाहिए …………..और जाने क्या-क्या आदर्श निहित है हमारी संस्कृति में !

सामान्यतः आदर्शों और व्यवहार के मध्य एक बहुत बड़ा अंतर पाया जाता है !आज के समय में हमारे बहुमूल्य आदर्श एक गिफ्ट पैक से ज्यादा कुछ नहीं बचे हैं खूबसूरत, डब्बा बंद ,फॉरेन पैकिंग में पैक, आकर्षक जिसे देखते ही हर कोई खोलने को लालायित हो उठता है और खोलने पर वही ऑनलाइन पार्सल की तरह मंगाया कुछ पाया कुछ !क्या कभी सोचा है आपने हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को आदर्श के नाम पर क्या देने वाले हैं ?जबकि पीढ़ी का यह अंतर हमारे आदर्शों पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरंतर गिरावट आ रही है !

वास्तव में हमारे आदर्शों में गिरावट का प्रमुख कारण है हमारे बड़ों के मूल्यों में गिरावट और सर्वाधिक उत्तरदायी है पाखंड या (ह्य्पोक्रिसी )है !जहां दोहरे माप दंड ,दोहरे मूल्य , कथनी और करनी में अंतर ,सामने और पीठ पीछे का अंतर ,दोहरी मानसिकता !

यह तो परिस्थिति वाद है इसे आदर्शों की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है !आदर्श स्थाई होते हैं विपरीत परिस्थितियों में भी उच्च आदर्श अपने स्थान से डिगते नहीं हैं “उच्च विचार साधारण रहन-सहन “कभी उच्च व्यक्तित्व के सार हुआ करते थे आज हाल यह है कि विचार उच्च हो या ना हो रहन सहन अवश्य उच्च होने चाहिए !

परिणाम स्वरूप दोहरे असंतुष्ट व्यक्तित्व की उत्पत्ति होती है इन दोहरे मापदंडों के मध्य संतुलन बैठते –बैठते व्यक्ति अपनी वास्तविक स्थिति ही खो देता है अब न तो वे वह बचता है जो वह था और जो वह है वास्तव में वह है ही नहीं !अब प्रश्न उठता उठता है की आखिर ये है कौन ?यह एक भटका हुआ प्राणी है जो अपना अस्तित्व तलाश रहा है अपनी वास्तविक पहचान को छोड़कर एक नई पहचान बना रहा है !

many facrs
“जो हैं वही रहिये !”

यह कैसा द्वंद है कैसा युद्ध ?अपने आप से !क्या अपने आप से लड़कर कोई कभी जीत सका है ?शायद जीत भी जाता यदि युद्ध सत्य का होता ! युद्ध और धर्म युद्ध में अंतर है यदि धर्म युद्ध हो तो व्यक्ति पराजित होकर भी संतुष्टी प्राप्त कर लेता है क्योंकि धर्म युद्ध सदैव सत्य के लिए होता है और सत्य के लिए कुछ खोना भी पाने से कम नहीं होता !

संस्कृति न हुई मजाक हो गया ,आदर्श न हुए खेल हो गया !आपकी सोच न हुई आपका विनाश हो गया जीवन न हुआ पाखंड हो गया !आपका व्यवहार न हुआ एक खेल हो गया

हमारी संस्कृति मूल्य व आदर्श हमारी विरासत हैं हमें हमारी इस बहुमूल्य धरोहर को सहेजना होगा दोहरे मूल्यों से बाहर आना होगा पाखंड से खुद को बचाना होगा ! यदि हमसे हमको इस पाखंड से बाहर निकालने में सफल होगे तभी तो अपनी आगामी पीढ़ी को असदारशों की भेट उपहार स्वरुप देने में सक्षम होंगे !

पाखंड से बचिए, सच से परिपूर्ण जीवन व्यतीत कीजिए ,जोहैं वही रहिये अगले ब्लॉग में फिर मुलाक़ात होगी तब तक हँसते रहिये – हसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए !

धन्यवाद !

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26 विचार ““कहीं आपके आदर्श भी पाखंडो की बलि तो नहीं चढ़ गए !”&rdquo पर;

  1. सिद्धांततः कहा जाता है की बड़ों का सम्मान किया जाना चाहिए ,हमारे कारण कभी किसी की भावनाएं आहत ना हो इसका सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए ,झूठ नहीं बोलना चाहिए किसी को पीड़ा नहीं पहुचानी चाहिए , किसी के दुःख का कारण नहीं बनना चाहिए । आदर्श यही हैं मगर सच ये किसी डब्बे में बंद हैं शायद।

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    1. बिलकुल, मधुसूदन जी !
      दोहरा प्रचलन सब को प्रताड़ित कर रहा है! हम कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं हमारी कथनी और करनी का अंतर ही हमारे आदर्शों को ले डूबा है !

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