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” स्वास्थय मानसिकता का विकास!”

उदारवाद बनाम उग्रवाद

“बुरा मत देखो – बुरा मत कहो -बुरा मत सुनो !” कहां है आज गांधी जी के वो तीन बंदर ?जिनका अनुसरण उदारवादी अपना धर्म समझते हैं और उग्रवादी ऐसी विचारधारा रखने वाले लोगों को नपुंसक ! शब्दों में कितनी तासीर होती है कि जब इनका प्रयोग सकारात्मक रूप से किया जाता है तो यह फूल बन जाते हैं और जब नकारात्मक ढंग से किया जाता है तो ये आपकी आत्मा तक को भेद कर रख देते हैं !

कोई किसी से कम नहीं

एक दुसरे की भावनाओं को आहत करना तो मानवीय प्रवृत्ति रही है तात्पर्य यह है की हम सब ही उग्रवादी हैं !हम उग्रवाद के विरुद्ध भाषण देते हैं ,आतंकवाद के खिलाफ जंग छेड़ देते हैं अर्थात हम सभी ईट का जवाब पत्थर से देने के लिए खड़े हैं ,तू सेर तो मैं सवा सेर , सब एक के बाप एक !मगर हममे से कितने ऐसे लोग हैं जिन्हें अपनी गलती का पछतावा होता है !

स्वतंत्रता अर्थात सबकी स्वतंत्रता

हमारा व्यवहार , हमारी सभ्यता ,हमारी संस्कृति और यहां तक की हमारे लालन -पालन तक पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है !आज आजादी के 72 वर्षों बाद भी यदि हमने अपनी स्वतंत्रता का उचित उपयोग नहीं सीखा तो क्या सीखा ? दूसरों की आजादी का हनन !

freedom
Pic by pixabay

नैतिक मूल्यों का होता हास

आज गांधी जी से सबको समस्या है क्योंकि आज के संदर्भ में गांधी जी के सिद्धांत आप्रासंगिक जो हो गए हैं !क्यूंकि आज के समय में लोग केवल बुरा ही देखना पसंद करते हैं , अच्छा कहने को कुछ बचा नहीं है क्यूंकि अच्छा कहने के लिए एक अच्छी सोच का होना ज़रूए है जो की नदारद होती जा रही है !अब यदि बात करे चैन की तो चैन तब तक मिलता नहीं है जब तक की तीखे मसलों के मिश्रण से दुसरे की आखों में आँसू न ले आयें और ऐसा इसलिए क्यूंकि दूसरे का दुःख ही तो हमारा परम सुख है !

अंतर्मन का परिवर्तन ही वास्तविक परिचरतां है

जब आप बदलेंगे स्वयं को अंतर्मन के साथ तभी आएगा लोगों को आप पर विश्वास !जब तक आप स्वयं में हिरण की खाल में छुपे भेड़िए (दुर्भावना )का वध नहीं कर देते तब तक आप शाकाहार ग्रहण नहीं कर सकते !

स्वस्थ्य मानसिकता का विकास ही वास्तविक हल है

मानव की रोगी मानसिकता के भी क्या कहने! एक तरफ तो वह अंधे , मूक एवं बधिर व्यक्ति की कमी को उनकी कमी भी कहता है और दूसरी और अपने अंदर की उन कमियों पर विचार भी नहीं करना चाहता ,विचार क्यों नहीं करना चाहता ?क्योंकि विचार योग्य कुछ लगता ही नहीं है !

वास्तविक लाभ को पहचानिये

मेरे विचार से अंधा गूंगा अथवा बहरा होना व्यक्ति की कमी नहीं अपितु उसकी शक्ति है क्यूंकि कहा जाता है की ऊपर वाला यदि किसी में कोई एक कमी करता है तो सो गुण डाल देता है !इस प्रकार लाभ में कौन रहा ? एक के बदले सो पाने वाला अथवा एक के बदले सो गवाने वाला !चुनाव आपका है !

स्वच्छ चुनिए -स्वास्थ्य रहिये ,अगले ब्लॉग में फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए हंसते रहिए हसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद !

🙏🙏🙏

25 विचार “” स्वास्थय मानसिकता का विकास!”&rdquo पर;

  1. अंतर्द्वंद्व फिर आंतरिक दृष्टि फिर हो सृष्टि पर विचार । लेकिन यहाँ खोई है मानवता ! हम हर उस चीज से सर्वकार रखते है जिसमें स्वयं की लाभ हानि है लेकिन यह सृष्टि समस्त प्राणी से यह समाज समस्त मानव से बनता है। मनुष्य यदि स्वयं का धर्म समझ ले तो कई चौराहे पंख फैलाने के लिये है।

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      1. मैं एक बहुत ही साधरण व्यक्ति हूँ और आप जैसे महाज्ञानियों से थोड़ा सा ज्ञान अर्जित करने का प्रयास कर रही हूँ ! कृपया अपने अनुभवों से लाभान्वित करने का कष्ट करे कृपा होगी !
        धन्यवाद 😊

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      2. सभी जीवों को जीने दे प्रकृति को प्राकृतिक तरीके से चलने दे और प्रकृति से वैसे ले जैसे सूर्य पता भी न चले और काम चल जाये। किसी के व्यक्तिगत धर्म मे हस्तक्षेप न करें न किसी के धर्म को प्रवर्तित करें। जितना उसे जीने का हक है उतना ही अन्य प्राणियों का
        अपनी बात को सही करने के लिए उसे गलत तर्क का सहारा न ले। सबसे बढ़ कर यह सदा याद रहे उसके कार्यो का दूसरों का क्या प्रभाव पड़ता है। क्योंकि जो आप अति करेंगे समय के साथ उसकी प्रतिक्रिया होगी जिसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ता है।

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      3. तो क्या ये उचित नहीं होगा की ये ज्ञान हम दूसरों तक पहुचाने से पहले उसे अन्तरं से आत्मसात कर ले !आपका तो पता नहीं पर में तो ऐसा ही करने वाली हूँ !धन्यवाद गुरु जी !

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      4. ये जो पूर्वाग्रह है वह दूसरे पर ही क्यों लगाया जाता है।कबीर बाबा कहते है कि
        बुरा जो देखन मैं चला तो बुरा न मिलाया कोई
        जो मन देखा आपने तो मुझसे बुरा न कोई।।

        यदि आप दूसरे में अच्छाई देखना चाहेगी तो बहुत मिलेगी नहीं तो मनुष्य बुराई का पुतला है। इसी लिए प्रेम महत्वपूर्ण हो जाता है

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      5. पूर्वाग्रह तो सम्पूणा मानव प्रजात में विद्यमान है और ये बहुत स्वाभाविक भी है !परन्तु कुछ लोग तो पूर्वाग्रह में मानो Phd ही कर बैठे हैं और अब अपने गंभीर अध्यनों और चिन्तनो द्वारा इतना आगे निकल गए हैं की जहां कोई आम व्यक्ति पहुंचने की कल्पना भी नहीं कर सकता !ऐसे महान ज्ञानियों को मेरी और से शुभकामनायें !

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  2. बिल्कुल सच और सटीक लिखा है ! तुलसीदास जी ने मध्यकाल में ही लिखा ‘पंडित सोई जो गाल बजावे’ उसमे बस इतना ही जोड़ना रह गया कि अपने पूर्वाग्रहों के लिए गाल बजाने वाले ही पंडित ठहरते हैं ।

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    1. शगुफ्ता मेरी फ्रेंड का नाम है पता नहीं कैसे टाइप हो गया !शुक्रिया की आपने माइंड नहीं किया !वैसे में आपका नाम नहीं पूछूँगी क्यूंकि यहां हम सब लोग वैचारिक आधार पर परस्पर जुड़े हुए है न की व्यक्तिगत आधार पर !वैसे मेरा दृष्टिकोण समझने के लिए पुनः धन्यवाद !🙏

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      1. लड़कियां बड़ी बड़ी बातों को माइंड नहीं करतीं ये तो नाम ही था।… जो सही लगे उसको लिखते रहिये और ईश्वर हमें हमेशा इसकी हमेशा शक्ति दे कि जो सोचें उसे ही लिखें भी।

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  3. इस दुनियां में सदैव दूसरों को दुखी कर खुद का चैन महशुस करनेवाले लोग रहे हैं।मगर स्वस्थ मांसिक्तवाले लोग कभी नाकारात्मकता को नही देखते।
    नदियों का काम है बहना
    वो नाले के पानी लेकर भी बहती है
    और गंगाजल लेकर भी।
    सही कौन गलत कौन कहना मुश्किल
    कोई भी पूर्ण है किसी की मानसिकता स्वस्थ नही। सभी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं।
    कोई कम कोई ज्यादा।

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