मैंने विज्ञान विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है विज्ञान विषय का विशेष ज्ञान होते हुए भी मेरा रुझान समाज और समाज में व्याप्त कुरीतियों की और विशेष रूप से रहा है इन परंपराओं कुरूतियों और अंधविश्वासों का प्रभाव जीवन में किसी न किसी रूप मैं पड़ता है जिससे जीवन में कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं इसीलिए तथ्यों के प्रकाश में एक ब्लॉग सीरीज आरम्भ करने जा रही हूँ , मैं अपने इस नए सफर में आप सबके सहयोग की कामना करती हूँ !
धन्यवाद 🙏
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79 विचार ““शोरो – गुल के दर्मिया सन्नाटा बहुत है !”&rdquo पर;
किसी का पक्ष मैं नहीं लेता हूँ साथ ही कोई भी मनुष्य यह कहे कि वह धर्मनिरपेक्ष है वह भी संभव नहीं क्योकि शरीर का ही एक धर्म है जैसे वह जब तक गतिवान है आत्मा की रक्षा करता है । भारतभूमि मां है उसपर रहने वाले संबंधी यदि कोई भी रहने वाला गलत है उसकी भर्त्सना करना मेरा धर्म हो जाता है।
यह तर्क का उद्देश्य होता है कोई व्यक्ति गुणहीन नहीं है फिर भी वह सभी काम के लिए काबिल भी नहीं हो जाता है।
जब मनुष्य किसी पर विश्वास करता है तो उसकी आलोचना नहीं करता ! जब मनुष्य जैसे एक तुच्छ प्राणी के लिए व्यक्ति के मन में इतनी उच्च भावनाएं वास करती है तो धर्म के लिए तो लोग मरने मारने को भी तैयार हो जाते हैं यह धर्म का एक नकारात्मक स्वरूप है !कड़वा है परंतु सत्य है !
काम क्रोध मद लोभ है और व्यक्तिगत क्षमता,व्यक्तिगत समझ वैश्विक धर्म का
निर्माण नहीं करने देगी।पूर्व में समस्य पृथ्वी
पर सनातन धर्म आज धर्म का अंबार और कारोबार है जिसके तले व्यक्ति दब जा रहा है।
यह सत्य है कि व्यक्ति काम क्रोध मद ………. सत्य है पूर्व में पृथ्वी पर सनातन अथवा वैदिक धर्म ही एकमात्र धर्म था ! इस विषय पर वैश्विक आधार पर बहुत कुछ कहा जा सकता है परंतु मैं कहूंगी नहीं ! धर्म के प्रति पूर्वाग्रह का होना एक आम बात होती है!
मेरा कोई पूर्वाग्रह नहीं है यह आप मिस्र,रोम,बेबीलोन,सीरिया,यूनान के प्राचीन इतिहास मूर्ति पूजा प्रकृति पूजा धार्मिक अनुष्ठान यहाँ तक वस्त्र से भी जान सकती है।
2000 साल पूर्व कई एशियाई देश जावा,सुमात्रा,बाली,कम्बोज,चंपा,वियतनाम,खोतान यहाँ तक अरब में मुहम्मद से कुरैसा कबीला भी मूर्ति पूजक था। यह आप अलबरुनी की किताबुल हिन्द में मिल जायेगा जो 1017 में लिखी गयी है जो ख़्वारिज्म के रहने वाले थे
पहले तो मैं आपको यह बता दूं कि इस्लाम एक जीवन पद्धति है ! यह 610 में अस्तित्व में आया और इतना विकसित हुआ कि आज इसके अनुयाई संपूर्ण विश्व में है! यदि 2000 साल पहले पूरा पूरा महाद्वीप कवर करने वाले किसी भी धर्म के अनुयायियों की संख्या में निरंतर गिरावट आ जाती है तो यह वास्तव में एक गंभीर विषय है! यही हुआ कि पुनर्विचार की आवश्यकता है !
जब आप आलोचना नहीं कर सकते या नहीं करते तो चीज मनुष्य के लिए व्यर्थ हो जाती है
क्योंकि मनुष्य स्वयं ईश्वर का अंश है और स्वयं का गुरु भी। उसे सीमा में नहीं बांधा जा सकता । यह सामान्य लोगों को मर्यादित होने की सीमा नहीं। मनुष्य पर विचार करे तो वह आध्यात्मिक और चैतन्य है।
यह सत्य है ना केवल चीज व्यक्ति के लिए व्यर्थ हो जाती है अपितु सुधार की संभावनाएं भी खो देती है! मैं क्षमा चाहूंगी व्यक्ति ईश्वर की कृति मात्र है ईश्वर का अंश नहीं ! मनुष्य को सीमा में नहीं बांधा जा सकता यह कहना पूर्णता उचित नहीं होगा यदि व्यक्ति को सीमा में नहीं बांधा जा सकता तो वह शाश्वत,अजर व अमर होता ! बिल्कुल मनुष्य आध्यात्मिक और चैतन्य है आध्यात्मिक विश्वास के आधार पर और चैतन्य बुद्धि के आधार पर !
वह धर्म क्या जो आलोचना से मुँह छुपा ले
आलोचना ,समालोचना से धर्म गतिवान होता है नहीं रूढता आ जाती है रूका हुआ जल सड़ांध मारने लगता है। कोई भी धर्म (रिलीजन) व्यक्ति के लिए है उसे स्वयं को जानने के लिए है न कि धर्म को स्वयंभू बना कर व्यक्ति को तुच्छ कर दे
वैश्विक धर्म भी तभी बनाया जा सकता था जब प्रत्येक धर्म की कमियों पर दृष्टि डाली जाती परंतु इस प्रकार किसी एक धर्म विशेष पर विचार करने से केवल कट्टरवाद ही जन्म लेता है! किसी धर्म विशेष पर टीका टिप्पणी करने के लिए उस धर्म विशेष में कई महानुभाव उपस्थित हैं ! व्यक्ति तुच्छ किसी भी धर्म में नहीं है इस्लाम में भी नहीं व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का अनुमान उसकी स्वतंत्रता ओं से लगाया जा सकता है !
व्यक्तिगत न जाइये। विधियां स्वयं निर्धारण करती है स्वतंत्रता कितनी ,अधिकार समान है कि नहीं “यह मेरे या तेरे धर्म की सीमा नहीं है”
धर्म वह है जो धारण किया जा सके। व्यक्ति
मुख्य चार तत्व इन्द्रिय,शरीर और मन ,आत्मा
से मिलकर बना है। शरीर साधन है।
न शरीरं पुनः पुनः।।
फिर प्रश्न वही है जिसे हम धर्म समझ रहे है सामान्य अर्थों वह पूजा पद्धति है। फिर धर्म क्या है??? आपके अनुसार
प्रत्येक धर्म की अपनी एक अलग परिभाषा होती है यहां में इस्लाम के विशेष ई करण के आधार पर उत्तर नहीं दूंगी !
साधन और साध्य के अंतर को जो समाप्त करता है वह परमात्मा है !जैसा कि मैंने कहा कि मैं विशेष एकरण करके उत्तर नहीं दूंगी परंतु इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि जन्म मरण का चक्र किसी धर्म में मान्य है और किसी धर्म में नहीं ! मेरे अनुसार प्रेम ,करुणा ,दया ,मानवता वास्तव में यही धर्म है !
जन्ममरण चक्र का स्वरूप अलग हो सकता है किंतु मान्य सभी को है। साधन और साध्य
में साध्य तो स्वयं ईश्वर है । साधन सत मार्ग वह अंतर ही नहीं है तो नष्ट करने का प्रश्न नहीं उठता
साधन किसी साध्य की प्राप्ति के लिए होता है। राजनीति विमर्श को छोड़ दिया जाय तो साधन के पवित्रता की बात की गयी है । परम साध्य मनुष्य का ईश्वर है । ईश्वर की तुलना और किसी से नहीं है।
सामान्य शब्दों में लिफ्ट से बिल्डिंग की न तुलना हो सकती है न ही अंतर । वह बस माध्यम है और माध्यम कई हो सकते है।
कार्य और कारण जिस तरह होता है वैसे ही साध्य और साधन नहीं होता है बस शाब्दिक साम्यता दिखती है।
बिल्कुल साधन किसी साध्य की प्राप्ति के लिए होता है और इस प्रकार एक साधन प्राप्त हो जाने के पश्चात वही साध्य साधन बन जाता है! जो निरंतर परिवर्तित होता रहे वह परम साध्य हो भी नहीं सकता ! जिस प्रकार हम सभी जानते हैं कि परम साध्य केवल एक ही है साधन भिन्न भिन्न हो सकते हैं और वह भिन्न-भिन्न साधन है विभिन्न धार्मिक पद्धतियां !
क्या परमात्मा साथ भी नहीं है ! और पूजा पाठ नमाज प्रेयर क्या यह सब साथ साधन नहीं है? क्या यह सब ईश्वर को पाने का आधार नहीं है? क्या यह ईश्वर से जोड़ने के साधन नहीं है?
मैं कौन होती हूं आपको किसी भी चश्मे से देखने वाली आप एक व्यक्ति हैं और व्यक्ति होने के नाते आप अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र हैं ! जब आप वैश्विक समस्या के संबंध में बात कर ही रहे हैं तो मैं इतना आवश्य कहना चाहूंगी कि एक समस्या के कई आयाम हो सकते हैं ! हमेशा जो दिखाई देता है वह सत्य नहीं होता ! हम जैसे सामान्य मनुष्य अपनी मनु स्थिति अपने पूर्वाग्रह के आधार पर अपना एक निर्णय बना लेते हैं फिर चाहे वह सत्य हो अथवा असत्य !
वैश्विक संदर्भ में वह स्थिति क्यों बनी ही जिससे कोई नैरेटिव बनाएं। कभी कभी व्यक्ति अच्छा दिखना चाहता है किंतु उसका इतिहास ही उसे आगोश में ले लेता है। फिर उसी तरह की घटना का बार बार दुहराव बरबस दूसरे को दूसरा विचार लाने नही देता। प्रशासनिक शब्दावली है डैमेज कंट्रोल वह भी किस ढंग से किया जा रहा।
इसमें देश का प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है !जहां तक बात रही इतिहास की तो वह तो प्रत्येक टाइम के साथ किसी ना किसी रूप में जुड़ा हुआ है नकारात्मक पहलू को भूलकर सभी आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं !एक का डैमेज कंट्रोल दूसरे का डैमेज यह परमानेंट सॉल्यूशन नहीं हो सकता
यदि हम आप पर आक्षेप लगाते है आप भी हमारे पर आक्षेप लगायेगी तो समस्या और बढ़ती जाती है। आक्षेप का समुचित उत्तर दिया जाय जिससे सत्य सामने आये। यह डैमेज कंट्रोल करने का सबसे बढ़िया तरीका होगा। यदि यह सोचा जाय कि सामने वाला मूर्ख है तो बात पुनः वही लौट जायेगी।
संवाद मनुष्य के साथ जन्म लिया उसमें भाषा धर्म बाधक नहीं रहे है।
डैमेज कंट्रोल कैसे किया जा सकता है हम बहुत सामान्य व्यक्ति हैं आप अपने धर्म को लेकर संवेदनशील हैं और मैं अपने धर्म के प्रति !यह मानवीय व्यवहार ही ऐसा है कि व्यक्ति तटस्थ रह ही नहीं सकता ! आपको मुझसे अर्गुएमेंट करके परिणाम क्या प्राप्त होगा नेट पर जाइए सर्च कीजिए एक से एक बुद्धिजीवी वर्ग के विचार पढ़ने को मिलेंगे शायद आप किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकें !
यदि भाषा या धर्म बाधक होते तो मैं आपसे बात नहीं कर रही होती !
आरोप,आक्षेप सिर्फ समझ मे शब्द आये इस लिए कहा है व्यक्तिगत मैं किसी पर नहीं लगाता हूं। बाकी जैसी आप की मति ,दूसरे पर्सनल ले लेती है वैसे बुराई नहीं सभी व्यक्ति की अपनी सीमा,समझ है उसका वह पालन करता है
ये आरोप नहीं है
तुम कहो कागज की लेखी
मैं कहूं आँखन की देखी
ज्ञान बुद्धि और अनुभव साथ अनुभूति करके देखना चाहिए।बाकी जिन्हें बुद्धिजीवी कह रही उनके पास जाएगी तो निराश करेगे,विगत कई वर्षों से मैं देख रहा हूं।
जब बुद्धि की बात की जाती है तो व्यक्ति तर्क वितर्क को मानने को बाध्य हो जाता है और तर्क वितर्क के आधार पर उस परम सत्य सत्ता को कभी भी प्रमाणित नहीं किया जा सकता बौद्धिक ज्ञान के अनुसार या तो किसी का पूर्ण अस्तित्व है अथवा वह पूर्णता अनुपस्थित है ! बौद्धिक ज्ञान में किसी भी मध्यम मार्ग के लिए कोई स्थान नहीं है बुद्धि वाद के जनक पाश्चात्य दार्शनिक देकर्ड मैं तो स्वयं पर ही संदेह कर डाला और संदेह के आधार पर ही स्वयं का अस्तित्व सिद्ध किया वह भी पूर्ण तर्क के साथ की क्योंकि मैं सोचता हूं इसलिए मैं हूं ! इसके अतिरिक्त कई संशय वादी दार्शनिक भी हुए उन्होंने अनुभव को साधन बनाया ! बुद्धि वाद और अनुभववाद पाश्चात्य दर्शन के उदाहरण हैं जहां बुद्धि वाद एवं अनुभववाद अपनी पराकाष्ठा पर थे ! अनुभूति आधारित दर्शन भारतीय दार्शनिक अध्ययनों में देखने को मिलता है उसमें भी सव अनुभूति एवं पर अनुभूति के अनुसार प्रमाणित किया जाता है !
भारतीय दर्शन श्रद्धा ,आस्था, विश्वास को अधिक महत्व देता है ! सत्य तो यह है कि हम सभी भारतीय कहीं ना कहीं बंधनों में बंधे होने के कारण हमारे ज्ञान की सीमा सीमित हो जाती है !कोई भी ज्ञान तभी प्रासंगिक हो सकता है जबकि उसे जीवन में उतारा जा सके बुद्धिजीवी वर्ग बखूबी जानता है कि भारतीय व्यवस्था में आस्था विश्वास अपने चरम पर है !
बुद्धिवाद के जनक डेकार्ट नहीं है बल्कि आधुनिक बुद्धिवाद के जनक थे उनका कथन सभी ज्ञान हमारी बुद्धि में रहता है को अनुभववादी लॉक खारिज कर देते है अनुभव ह्यूम के समय संशयवाद में परिणित हो जाता है डेकार्ट का साधन ह्यूम ने साध्य बना दिया। जिसमें कांट सामंजस्य स्थापित करने दार्शनिक क्रांति करते है जिसे विज्ञान की कापरनिकसीय क्रांति से तुलना की जाती है।
एयर,रसेल आदि उत्कट अनुभव वादी कांट को भी गलत सिद्ध करते है। एक बड़ा परिवर्तन तब होता है जब अस्तित्ववादी आते है जो विचार धारा दूसरे विश्व युद्ध के बाद जन्म ली थी जिसे ज्यां पाल सात्र ऊपर दर्शन के रूप में स्थापित करते है। वह डेकार्ट के सिद्धांत मैं सोचता हूं इस लिए हूँ पर प्रश्न खड़ा कर कहा जब मैं हूंगा तभी सोचूंगा ,मैं हूं इस लिए सोचता हूं।
पश्चिम में बड़ा लाभ मिला उपनिवेशों का एशियाई देश की लूट का ब्रिटेन का अनुभववाद भारत की लूट से विकसित हुआ और तरह तरह के विचारों ने जन्म लिया। जिसका सहयोग विज्ञान ने भी किया।
प्राचीन भारत में दर्शन का विकास हुआ था उसी के साथ ही विज्ञान का विकास हुआ था
बाकी लुटेरे विदेशी भारत के आगमन का कारण यहाँ का धन था।
भारत के दर्शन का सही से अध्ययन करिये
सांख्य योग न्याय वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत का। दूसरी ओर जैन बौद्ध चार्वाक का
बुद्धिवाद ,अनुभववाद ,अस्तित्ववाद यह सिर्फ़ वाद नजर आयेंगे। न्याय से बड़ा अनुभववादी और तर्कवादी विश्व में कोई और दर्शन नहीं है।
सांख्य का प्रकृति पुरुष विकार पंचीकरण, कणाद का पदार्थ, वेदांत की प्रकृति की संरचना। बौद्ध का शून्यवाद जैन का स्यादवाद और पुद्गल अद्भुत है लेकिन भारत 1000 साल जीवन जीने के लिए लड़ता रहा वैज्ञानिक विज्ञान का विकास करे कि अपने लोगों की रक्षा। बाकी विदेशी भारत के दर्शन पर कार्य करके विज्ञान विकसित करेगे नहीं।
यहाँ दार्शनिक इतिहास भी देखना पड़ेगा।
ये किसने कह दिया नास्तिक ,आस्तिक का अंतर जान रही है न । वाम मार्ग को भी स्वीकारा है । न्याय दर्शन से ज्यादा तार्किक कोई दर्शन नहीं है। व्याप्ति विज्ञान का आधार है। एक बार पढ़ लीजिये थोड़ा समझने में दिक्कत होगी । अंतर स्पस्ट हो जायेगा। सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं किया जाता है। षड दर्शन जीवन मे समय लगे तो पढ़िये गा साथ ही उसकी प्रतिक्रिया में जो उत्तपन्न हुआ है उसे भी। दर्शन वैसे भी तर्क का विषय है लेकिन उसके लिए दार्शनिक आधार चाहिए ।
भारतीय दर्शन या शास्त्र बिना पढ़े खंडित करना आसान है किंतु जब पढ़ लेगी समस्या का निराकरण हो जाएगा फिर लगेगा इतनी उच्च दर्शन होने पर यह देश गुलाम कैसे हो गया। जैसा कि जर्मन दार्शनिक कहता है।
आत्मा,परमात्मा,भक्ति,रहस्य गांव का किसान बता देता है ऐसा क्यों ,कारण DNA है । कलाम साहब ऐसे गीता लेकर नहीं चलते जबकि जितने बड़े वैज्ञानिक थे उससे बड़े आध्यात्मिक भी। कई हिन्दू संत उनके गुरु थी जिनके वह पैर भी छूते थे यह अग्नि की उड़ान में मिल जायेगा।
मैं आपको बता दूं कि मैं दर्शनशास्त्र की विद्यार्थी रह चुकी हूं हां यह बात और है कि पिछले कई वर्षों से मैं इसके टच में नहीं हूं परंतु नहीं कहा कि भारतीय दर्शन निम्न है मैंने यह भी नहीं कहा कि भारतीय दर्शन पूर्णता अतार्किक है ! कहीं-कहीं कुछ कुछ चीजें हैं जो भ्रांति उत्पन्न करती हैं ! जो सुनी सुनाई बातों पर आधारित नहीं है मेरा अपना अनुभव है ! मैंने खंडित नहीं किया उसकी कमियों पर प्रकाश डाला है ! किसी भी चीज की उच्चता उसके परिणाम में होती है ! रही बात हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम आजाद जी की कि वह गीता लेकर चलते थे कहावत है अच्छी शिक्षा कहीं से भी मिले ग्रहण कर लेनी चाहिए वेद पुराण भी उतनी ही शिद्दत से पढ़ा करते थे और उसे समझ कर पड़ने पर जोर देते थे ! यह किसी मुस्लिम के उदारवादी दृष्टिकोण का परिचायक है ! एक दूसरे के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर उन्हें उनकी वास्तविकता में समझना हर किसी के बस की बात नहीं !
पढ़ते और समझना दोनों अलग चीज है ग्रेजुएशन में मिला दर्शनशास्त्र एक विषय होता ग्रेजुएशन पास होने का यह जब आगे बढ़ता है कुछ दर्शनशास्त्र बनता है। पश्चिमी दर्शन और विज्ञान से तुलना सही तरह से नहीं की है। आस्तिक और नास्तिक का बंटवारा भी।
बुद्धिवादी प्लेटो और अरस्तू भी पश्चिमी दर्शन प्लेटो,अरस्तू और सोफिस्ट पर ही पूरा आधारित है। दर्शन के साथ आधुनिक विज्ञान की खोजों ने उनके महत्व को बढ़ा दिया। हम स्वतंत्रता का युद्ध लड़ रहे थे मेरे देश के कितने जो दार्शनिक और वैज्ञानिक बन सकते थे वह युद्ध में आहुत हो गये।
आज सर्वाधिक यदि कुछ आवश्यक है तो वह है दर्शन को व्यवहार में लाना व्यवहारिक जीवन में उपयोगी बनाना ! सबका अपना दर्शन सबके अपने चिंतन पर आधारित है जिसके लिए जो व्यवहारिक है वही वास्तव में उपयोगी है !दर्शन के साथ आधुनिक विज्ञान की खोजों ने उसे और अधिक प्रासंगिक और अधिक उपयोगी बनाया है !
आस्था भक्ति का विषय है दर्शन का नहीं ,यदि आस्था लगती है तो धर्मदर्शन एक बार पढ़ लीजिये। बाकी भारत के दर्शन पर विश्व को तनिक भी संशय नहीं है। प्राचीन भारत के ज्ञान,विज्ञान और दर्शन का विश्व ऋणी रहा है। ऐसा उल्लेख कई विदेशी दार्शनिक और विचारकों के वर्णन में मिल जायेगा। भारत के दार्शनिक विश्व के विभिन्न देशों में खगोल,चिकित्सा,गणित के ग्रंथ के साथ गये।
अरब देशों में खलीफा के समय मे भारतीय विद्वानों का वर्णन मिल जाएगा। अलबरूनी और अलमसुदी के वर्णन में पढ़ सकती है भारत की गणना पध्दति,जलसंरक्षण,साफ सफाई,ज्योतिष,खगोल,गणित,विज्ञान ,शिल्प,बुनाई कितनी उत्कृष्ट थी। समस्या यह है जो भारत को लुटे वह आज स्वीकार करे तो चोरी पकड़ी जाएगी।
विश्वास के अभाव में आस्था संभव नहीं हो सकती ! जहां विश्वास होगा वहां आस्था होगी और जहां आस्था होगी वहां भक्ति होगी ! और रही बात धर्म-दर्शन की तो जहां से विज्ञान का अंत होता है दर्शन का आरंभ वहीं से होता है तात्पर्य यह हुआ कि जब हमारे पास तर्क वितर्क समाप्त हो जाते हैं तब हमारे पास साध्य तक पहुंचने के लिए आस्था के अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं रह जाता !विश्व को हमारे दर्शन पर संशय है अथवा नहीं संबंध में में कोई विचार व्यक्त करना नहीं चाहती ! हमारे आज के आधुनिक युग में ही धर्म के नाम पर किन-किन कुरीतियों को अपनाया जाता है इसकी भर्त्सना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम नहीं की गई है ! वर्णन तो कई विदेशियों का भी हमारे यहां मिलता है हमारा धर्म संस्कृति सब एक दूसरे की तालमेल सामंजस्य पर आधारित है ! बाकी बात रही पद्धतियों की तो यह सब इतिहास पर आधारित है और यदि कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो इतिहास घटनाओं के समानांतर नहीं लिखा गया आता इतिहास का एक बहुत बड़ा भाग पूर्वाग्रहों पर आधारित है ! तुलसीदास और वाल्मीकि की रामायण ही देख लीजिए! एक भारतीय होने के नाते में भारत की आलोचक नहीं हितेषी हूं! भारत कुछ एक व्यक्तियों की विरासत का हिस्सा नहीं और ना ही केवल उनकी सोच से संचालित होने वाली इकाई है! भारत एक महान देश है गंगा जमुनी तहजीब जिसकी संस्कृति की परिचायक है!
गंगा जमुनी छलावा भर है अतिथि को सम्मान देने वाला देश रहा है वह अतिथि उसके धन और सत्ता पर गिद्ध दृष्टि रखा। पूर्वाग्रहों का देश भारत नही है जो कुरुतिया दिख रही है वह दूर वैठे लोगों को लिए है वह कल्चरल इम्प्रीलिज्म है। दर्शन और धर्म को मिक्स न करिये। धर्म मे तर्क को स्थान नहीं है (लेकिन सनातन धर्म इजाजत देता है) जबकि दर्शन तर्क पर आधारित है। धर्म दर्शन ,धर्म की आलोचना या कसौटी के लिए है। दर्शन किसने बताया कि विज्ञान के बाद का विषय?
हाइपोथीसिस दर्शन करता है जिस पर विज्ञान कार्य करता है।
वैज्ञानिक आधार पर समाज नहीं चलता है।
विज्ञान सिर्फ इंद्रियों का विकास है उससे से ज्यादा नहीं।
धर्म दर्शन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है ना केवल धर्म दर्शन बल्कि किसी भी प्रकार के दर्शन अथवा किसी भी प्रकार की सत्यता तक पहुंचने के लिए व्यापक दृष्टिकोण का होना आवश्यक है एक ऐसा व्यापक दृष्टिकोण जो पूर्वाग्रह रहित हो ! क्या आप सनातन धर्म के अनुयाई नहीं है !
रही बात दर्शन और विज्ञान की मेरा तात्पर्य यह नहीं था कि दर्शन विज्ञान के बाद का विषय है बल्कि मेरा तात्पर्य यह था कि विज्ञान की सीमा है दर्शन की कोई सीमा नहीं है !
दर्शन बड़ा विषय है जो दो चार पेज लिखने से समझ नहीं आयेगा। उसके लिए आपके वैज्ञानिक तर्कों का निराकरण करना पड़ेगा ,किन्तु क्षमा चाहता हूं अभी pcs का exam कभी जरूर जानना चाहेगी तो दर्शन और विज्ञान जरूर बताऊंगा।
हकीकत नहीं स्वीकार करेंगे तो सुधार किसका किया जायेगा और सुधरेगा कौन।
इसी लिए आलोचना है। कबीर बाबा के शब्दों में निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय
विन पानी विन साबुन निर्मल होय स्वभाव
इसी को सब पर लागू करिये।
आप ही बता दीजिए कि मैं किस हकीकत को स्वीकार करूं ?और आप मुझ में कौन से सुधार करना चाहते हैं ?
जीवन में आलोचना का बहुत महत्व होता है यदि उसमें दुर्भावना समाहित ना हो तो !
सच्चे शुभचिंतकों की आवश्यकता जीवन में सभी को होती है इन्हीं के प्रयासों से जीवन में निरंतर सुधार होता रहता है और व्यक्ति जीवन मैं उन्नति करता जाता है !
Sundar
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धन्यवाद 🙏
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wonderful rahat
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Thank you very much for your valuable support .
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बहुत ही खूबसूरत रचना संग कटाक्ष भी लाजवाब।
मैं बेचैन रहकर ही सही !
हंसता तो हूं !!
तुम तो चैन से रहकर भी !!!
बैचेन रहा करते हो iv
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धन्यवाद , मधुसूदन जी !
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Amazing! loved it!
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Thank you very much for your wonderful response !
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Sab aap ki hi hai!
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Ji , …..kyun…..???
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Bcz if my response is wonderful it is bcz of your amazing post which is all yours not mine.
Am i wrong?
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If the block is mine then the creations will also be mine. But the attitude of all of you makes it special. Thanks again…🙏😊🙏
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तुम्हारी तुम तुममें है
मेरी मैं मुझमें है
किसका क्या है?
किस्सा कभी नया तो कभी पुराना लगता है
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🙏🙏🤔🙏🙏
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अरे कभी कभी मेरा भी पढ़ लिया करिये
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आपकी रचनाएं भी पढ़ती हूं परन्तु कॉमेंट न करना अलग बात है ! तटस्थ रचना होने पर लाइक वा कॉमेंट भी अवश्य करूंगी ! वैसे मेरी रचना पढ़ने के लिए धन्यवाद !
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तटस्थ का क्या मतलब है
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किसी का पक्ष न लेना !
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अर्थात पक्षपात रहित !
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किसी का पक्ष मैं नहीं लेता हूँ साथ ही कोई भी मनुष्य यह कहे कि वह धर्मनिरपेक्ष है वह भी संभव नहीं क्योकि शरीर का ही एक धर्म है जैसे वह जब तक गतिवान है आत्मा की रक्षा करता है । भारतभूमि मां है उसपर रहने वाले संबंधी यदि कोई भी रहने वाला गलत है उसकी भर्त्सना करना मेरा धर्म हो जाता है।
यह तर्क का उद्देश्य होता है कोई व्यक्ति गुणहीन नहीं है फिर भी वह सभी काम के लिए काबिल भी नहीं हो जाता है।
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परन्तु इस प्रकार धार्मिक मुद्दों का सामान्यीकरण हो जाता है !
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दूसरा धर्म विशेष नामक प्रत्यय में नहीं आता है। आलोचना के दायरे में है
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जब मनुष्य किसी पर विश्वास करता है तो उसकी आलोचना नहीं करता ! जब मनुष्य जैसे एक तुच्छ प्राणी के लिए व्यक्ति के मन में इतनी उच्च भावनाएं वास करती है तो धर्म के लिए तो लोग मरने मारने को भी तैयार हो जाते हैं यह धर्म का एक नकारात्मक स्वरूप है !कड़वा है परंतु सत्य है !
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काम क्रोध मद लोभ है और व्यक्तिगत क्षमता,व्यक्तिगत समझ वैश्विक धर्म का
निर्माण नहीं करने देगी।पूर्व में समस्य पृथ्वी
पर सनातन धर्म आज धर्म का अंबार और कारोबार है जिसके तले व्यक्ति दब जा रहा है।
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यह सत्य है कि व्यक्ति काम क्रोध मद ………. सत्य है पूर्व में पृथ्वी पर सनातन अथवा वैदिक धर्म ही एकमात्र धर्म था ! इस विषय पर वैश्विक आधार पर बहुत कुछ कहा जा सकता है परंतु मैं कहूंगी नहीं ! धर्म के प्रति पूर्वाग्रह का होना एक आम बात होती है!
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मेरा कोई पूर्वाग्रह नहीं है यह आप मिस्र,रोम,बेबीलोन,सीरिया,यूनान के प्राचीन इतिहास मूर्ति पूजा प्रकृति पूजा धार्मिक अनुष्ठान यहाँ तक वस्त्र से भी जान सकती है।
2000 साल पूर्व कई एशियाई देश जावा,सुमात्रा,बाली,कम्बोज,चंपा,वियतनाम,खोतान यहाँ तक अरब में मुहम्मद से कुरैसा कबीला भी मूर्ति पूजक था। यह आप अलबरुनी की किताबुल हिन्द में मिल जायेगा जो 1017 में लिखी गयी है जो ख़्वारिज्म के रहने वाले थे
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पहले तो मैं आपको यह बता दूं कि इस्लाम एक जीवन पद्धति है ! यह 610 में अस्तित्व में आया और इतना विकसित हुआ कि आज इसके अनुयाई संपूर्ण विश्व में है! यदि 2000 साल पहले पूरा पूरा महाद्वीप कवर करने वाले किसी भी धर्म के अनुयायियों की संख्या में निरंतर गिरावट आ जाती है तो यह वास्तव में एक गंभीर विषय है! यही हुआ कि पुनर्विचार की आवश्यकता है !
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जब आप आलोचना नहीं कर सकते या नहीं करते तो चीज मनुष्य के लिए व्यर्थ हो जाती है
क्योंकि मनुष्य स्वयं ईश्वर का अंश है और स्वयं का गुरु भी। उसे सीमा में नहीं बांधा जा सकता । यह सामान्य लोगों को मर्यादित होने की सीमा नहीं। मनुष्य पर विचार करे तो वह आध्यात्मिक और चैतन्य है।
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यह सत्य है ना केवल चीज व्यक्ति के लिए व्यर्थ हो जाती है अपितु सुधार की संभावनाएं भी खो देती है! मैं क्षमा चाहूंगी व्यक्ति ईश्वर की कृति मात्र है ईश्वर का अंश नहीं ! मनुष्य को सीमा में नहीं बांधा जा सकता यह कहना पूर्णता उचित नहीं होगा यदि व्यक्ति को सीमा में नहीं बांधा जा सकता तो वह शाश्वत,अजर व अमर होता ! बिल्कुल मनुष्य आध्यात्मिक और चैतन्य है आध्यात्मिक विश्वास के आधार पर और चैतन्य बुद्धि के आधार पर !
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वह धर्म क्या जो आलोचना से मुँह छुपा ले
आलोचना ,समालोचना से धर्म गतिवान होता है नहीं रूढता आ जाती है रूका हुआ जल सड़ांध मारने लगता है। कोई भी धर्म (रिलीजन) व्यक्ति के लिए है उसे स्वयं को जानने के लिए है न कि धर्म को स्वयंभू बना कर व्यक्ति को तुच्छ कर दे
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वैश्विक धर्म भी तभी बनाया जा सकता था जब प्रत्येक धर्म की कमियों पर दृष्टि डाली जाती परंतु इस प्रकार किसी एक धर्म विशेष पर विचार करने से केवल कट्टरवाद ही जन्म लेता है! किसी धर्म विशेष पर टीका टिप्पणी करने के लिए उस धर्म विशेष में कई महानुभाव उपस्थित हैं ! व्यक्ति तुच्छ किसी भी धर्म में नहीं है इस्लाम में भी नहीं व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का अनुमान उसकी स्वतंत्रता ओं से लगाया जा सकता है !
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व्यक्तिगत न जाइये। विधियां स्वयं निर्धारण करती है स्वतंत्रता कितनी ,अधिकार समान है कि नहीं “यह मेरे या तेरे धर्म की सीमा नहीं है”
धर्म वह है जो धारण किया जा सके। व्यक्ति
मुख्य चार तत्व इन्द्रिय,शरीर और मन ,आत्मा
से मिलकर बना है। शरीर साधन है।
न शरीरं पुनः पुनः।।
फिर प्रश्न वही है जिसे हम धर्म समझ रहे है सामान्य अर्थों वह पूजा पद्धति है। फिर धर्म क्या है??? आपके अनुसार
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प्रत्येक धर्म की अपनी एक अलग परिभाषा होती है यहां में इस्लाम के विशेष ई करण के आधार पर उत्तर नहीं दूंगी !
साधन और साध्य के अंतर को जो समाप्त करता है वह परमात्मा है !जैसा कि मैंने कहा कि मैं विशेष एकरण करके उत्तर नहीं दूंगी परंतु इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि जन्म मरण का चक्र किसी धर्म में मान्य है और किसी धर्म में नहीं ! मेरे अनुसार प्रेम ,करुणा ,दया ,मानवता वास्तव में यही धर्म है !
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जन्ममरण चक्र का स्वरूप अलग हो सकता है किंतु मान्य सभी को है। साधन और साध्य
में साध्य तो स्वयं ईश्वर है । साधन सत मार्ग वह अंतर ही नहीं है तो नष्ट करने का प्रश्न नहीं उठता
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साधन सत मार्ग में अंतर ही नहीं है तो नष्ट करने का प्रश्न नहीं उठता कृपया इस लाइन को थोड़ा स्पष्ट करेंगे !
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साधन किसी साध्य की प्राप्ति के लिए होता है। राजनीति विमर्श को छोड़ दिया जाय तो साधन के पवित्रता की बात की गयी है । परम साध्य मनुष्य का ईश्वर है । ईश्वर की तुलना और किसी से नहीं है।
सामान्य शब्दों में लिफ्ट से बिल्डिंग की न तुलना हो सकती है न ही अंतर । वह बस माध्यम है और माध्यम कई हो सकते है।
कार्य और कारण जिस तरह होता है वैसे ही साध्य और साधन नहीं होता है बस शाब्दिक साम्यता दिखती है।
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बिल्कुल साधन किसी साध्य की प्राप्ति के लिए होता है और इस प्रकार एक साधन प्राप्त हो जाने के पश्चात वही साध्य साधन बन जाता है! जो निरंतर परिवर्तित होता रहे वह परम साध्य हो भी नहीं सकता ! जिस प्रकार हम सभी जानते हैं कि परम साध्य केवल एक ही है साधन भिन्न भिन्न हो सकते हैं और वह भिन्न-भिन्न साधन है विभिन्न धार्मिक पद्धतियां !
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साधन को साध्य बना देगी तो पूरा दर्शनशास्त्र समाप्त हो जायेगा।
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क्या परमात्मा साथ भी नहीं है ! और पूजा पाठ नमाज प्रेयर क्या यह सब साथ साधन नहीं है? क्या यह सब ईश्वर को पाने का आधार नहीं है? क्या यह ईश्वर से जोड़ने के साधन नहीं है?
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यह तो है किंतु आपने कहा अंतर खत्म करना ,उस पर तर्क थे
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उसे साधन कहा गया साध्य नहीं
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मैं आपकी बात का जवाब दे रही थी
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किसे ?
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साधन को साधन कहा जाता है जिससे हम अपने गंतव्य को निर्वाध रूप से प्राप्त कर सके
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हमारा गंतव्य स्थल साध्य कहलाता है
और जिसके द्वारा हम गंतव्य स्थल तक पहुंचते हैं वह साधन कहलाता है! जी!
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हाँ!जी
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साधन धाम मोक्ष के द्वारा जेहि नहीं
परलोक सुधारा।।
धरती को साधन का धाम कहा गया है और मोक्ष अर्थात परममुक्ति का दरवाजा जिससे परलोग सही हो सके,सध सके।
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साधन और साध्य में एक अकाट्य संबंध है मोक्ष साध्य है ज्ञान ,कर्म ,भक्ति मार्ग आदि साधन ! भारतीय दर्शन के अनुसार!
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मार्ग है इस लिए सम्बन्ध है।
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आप जिस चश्में से मुझे देखा वैसा मैं विल्कुल नहीं। कुछ लिखावट सामान्य जन के लिए है जो वैश्विक समस्या है उसे ही शब्द दे देते है।
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मैं कौन होती हूं आपको किसी भी चश्मे से देखने वाली आप एक व्यक्ति हैं और व्यक्ति होने के नाते आप अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र हैं ! जब आप वैश्विक समस्या के संबंध में बात कर ही रहे हैं तो मैं इतना आवश्य कहना चाहूंगी कि एक समस्या के कई आयाम हो सकते हैं ! हमेशा जो दिखाई देता है वह सत्य नहीं होता ! हम जैसे सामान्य मनुष्य अपनी मनु स्थिति अपने पूर्वाग्रह के आधार पर अपना एक निर्णय बना लेते हैं फिर चाहे वह सत्य हो अथवा असत्य !
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वैश्विक संदर्भ में वह स्थिति क्यों बनी ही जिससे कोई नैरेटिव बनाएं। कभी कभी व्यक्ति अच्छा दिखना चाहता है किंतु उसका इतिहास ही उसे आगोश में ले लेता है। फिर उसी तरह की घटना का बार बार दुहराव बरबस दूसरे को दूसरा विचार लाने नही देता। प्रशासनिक शब्दावली है डैमेज कंट्रोल वह भी किस ढंग से किया जा रहा।
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इसमें देश का प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है !जहां तक बात रही इतिहास की तो वह तो प्रत्येक टाइम के साथ किसी ना किसी रूप में जुड़ा हुआ है नकारात्मक पहलू को भूलकर सभी आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं !एक का डैमेज कंट्रोल दूसरे का डैमेज यह परमानेंट सॉल्यूशन नहीं हो सकता
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यदि हम आप पर आक्षेप लगाते है आप भी हमारे पर आक्षेप लगायेगी तो समस्या और बढ़ती जाती है। आक्षेप का समुचित उत्तर दिया जाय जिससे सत्य सामने आये। यह डैमेज कंट्रोल करने का सबसे बढ़िया तरीका होगा। यदि यह सोचा जाय कि सामने वाला मूर्ख है तो बात पुनः वही लौट जायेगी।
संवाद मनुष्य के साथ जन्म लिया उसमें भाषा धर्म बाधक नहीं रहे है।
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डैमेज कंट्रोल कैसे किया जा सकता है हम बहुत सामान्य व्यक्ति हैं आप अपने धर्म को लेकर संवेदनशील हैं और मैं अपने धर्म के प्रति !यह मानवीय व्यवहार ही ऐसा है कि व्यक्ति तटस्थ रह ही नहीं सकता ! आपको मुझसे अर्गुएमेंट करके परिणाम क्या प्राप्त होगा नेट पर जाइए सर्च कीजिए एक से एक बुद्धिजीवी वर्ग के विचार पढ़ने को मिलेंगे शायद आप किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकें !
यदि भाषा या धर्म बाधक होते तो मैं आपसे बात नहीं कर रही होती !
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आरोप,आक्षेप सिर्फ समझ मे शब्द आये इस लिए कहा है व्यक्तिगत मैं किसी पर नहीं लगाता हूं। बाकी जैसी आप की मति ,दूसरे पर्सनल ले लेती है वैसे बुराई नहीं सभी व्यक्ति की अपनी सीमा,समझ है उसका वह पालन करता है
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मैंने आपसे किसी दुर्भावना से ग्रसित होकर नहीं कहा कि इंटरनेट पर आपको कई बुद्धिजीवियों के विचार आसानी से मिल सकते हैं !
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फिर किस लिए? बुद्धिजीवी नाम के ज्यादा है सहनशीलता जैसा पहला गुण नहीं उनके पास
हा तख्ती बुद्धिजीवी की जरूर रखते है।
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यह तो किसी पर आरोप लगाना है ! उनके अनुभव के साथ उनकी सहनशीलता कम या समाप्त हो जाती है !ऐसे विचार उन्हें बच्चों के से प्रतीत होते हैं !
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ये आरोप नहीं है
तुम कहो कागज की लेखी
मैं कहूं आँखन की देखी
ज्ञान बुद्धि और अनुभव साथ अनुभूति करके देखना चाहिए।बाकी जिन्हें बुद्धिजीवी कह रही उनके पास जाएगी तो निराश करेगे,विगत कई वर्षों से मैं देख रहा हूं।
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जब बुद्धि की बात की जाती है तो व्यक्ति तर्क वितर्क को मानने को बाध्य हो जाता है और तर्क वितर्क के आधार पर उस परम सत्य सत्ता को कभी भी प्रमाणित नहीं किया जा सकता बौद्धिक ज्ञान के अनुसार या तो किसी का पूर्ण अस्तित्व है अथवा वह पूर्णता अनुपस्थित है ! बौद्धिक ज्ञान में किसी भी मध्यम मार्ग के लिए कोई स्थान नहीं है बुद्धि वाद के जनक पाश्चात्य दार्शनिक देकर्ड मैं तो स्वयं पर ही संदेह कर डाला और संदेह के आधार पर ही स्वयं का अस्तित्व सिद्ध किया वह भी पूर्ण तर्क के साथ की क्योंकि मैं सोचता हूं इसलिए मैं हूं ! इसके अतिरिक्त कई संशय वादी दार्शनिक भी हुए उन्होंने अनुभव को साधन बनाया ! बुद्धि वाद और अनुभववाद पाश्चात्य दर्शन के उदाहरण हैं जहां बुद्धि वाद एवं अनुभववाद अपनी पराकाष्ठा पर थे ! अनुभूति आधारित दर्शन भारतीय दार्शनिक अध्ययनों में देखने को मिलता है उसमें भी सव अनुभूति एवं पर अनुभूति के अनुसार प्रमाणित किया जाता है !
भारतीय दर्शन श्रद्धा ,आस्था, विश्वास को अधिक महत्व देता है ! सत्य तो यह है कि हम सभी भारतीय कहीं ना कहीं बंधनों में बंधे होने के कारण हमारे ज्ञान की सीमा सीमित हो जाती है !कोई भी ज्ञान तभी प्रासंगिक हो सकता है जबकि उसे जीवन में उतारा जा सके बुद्धिजीवी वर्ग बखूबी जानता है कि भारतीय व्यवस्था में आस्था विश्वास अपने चरम पर है !
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शायद पाश्चात्य और भारतीय दर्शन को नास्तिक और आस्तिक कहने के पीछे भी यही तात्पर्य है !
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बुद्धिवाद के जनक डेकार्ट नहीं है बल्कि आधुनिक बुद्धिवाद के जनक थे उनका कथन सभी ज्ञान हमारी बुद्धि में रहता है को अनुभववादी लॉक खारिज कर देते है अनुभव ह्यूम के समय संशयवाद में परिणित हो जाता है डेकार्ट का साधन ह्यूम ने साध्य बना दिया। जिसमें कांट सामंजस्य स्थापित करने दार्शनिक क्रांति करते है जिसे विज्ञान की कापरनिकसीय क्रांति से तुलना की जाती है।
एयर,रसेल आदि उत्कट अनुभव वादी कांट को भी गलत सिद्ध करते है। एक बड़ा परिवर्तन तब होता है जब अस्तित्ववादी आते है जो विचार धारा दूसरे विश्व युद्ध के बाद जन्म ली थी जिसे ज्यां पाल सात्र ऊपर दर्शन के रूप में स्थापित करते है। वह डेकार्ट के सिद्धांत मैं सोचता हूं इस लिए हूँ पर प्रश्न खड़ा कर कहा जब मैं हूंगा तभी सोचूंगा ,मैं हूं इस लिए सोचता हूं।
पश्चिम में बड़ा लाभ मिला उपनिवेशों का एशियाई देश की लूट का ब्रिटेन का अनुभववाद भारत की लूट से विकसित हुआ और तरह तरह के विचारों ने जन्म लिया। जिसका सहयोग विज्ञान ने भी किया।
प्राचीन भारत में दर्शन का विकास हुआ था उसी के साथ ही विज्ञान का विकास हुआ था
बाकी लुटेरे विदेशी भारत के आगमन का कारण यहाँ का धन था।
भारत के दर्शन का सही से अध्ययन करिये
सांख्य योग न्याय वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत का। दूसरी ओर जैन बौद्ध चार्वाक का
बुद्धिवाद ,अनुभववाद ,अस्तित्ववाद यह सिर्फ़ वाद नजर आयेंगे। न्याय से बड़ा अनुभववादी और तर्कवादी विश्व में कोई और दर्शन नहीं है।
सांख्य का प्रकृति पुरुष विकार पंचीकरण, कणाद का पदार्थ, वेदांत की प्रकृति की संरचना। बौद्ध का शून्यवाद जैन का स्यादवाद और पुद्गल अद्भुत है लेकिन भारत 1000 साल जीवन जीने के लिए लड़ता रहा वैज्ञानिक विज्ञान का विकास करे कि अपने लोगों की रक्षा। बाकी विदेशी भारत के दर्शन पर कार्य करके विज्ञान विकसित करेगे नहीं।
यहाँ दार्शनिक इतिहास भी देखना पड़ेगा।
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भारतीय दर्शन में जो तर्क संगत दर्शन हैं उन्हें नास्तिक की श्रेणी में डाल दिया गया और बचे हुए आस्तिक दर्शन परम सत्य की खोज में ही लगे रहे !
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ये किसने कह दिया नास्तिक ,आस्तिक का अंतर जान रही है न । वाम मार्ग को भी स्वीकारा है । न्याय दर्शन से ज्यादा तार्किक कोई दर्शन नहीं है। व्याप्ति विज्ञान का आधार है। एक बार पढ़ लीजिये थोड़ा समझने में दिक्कत होगी । अंतर स्पस्ट हो जायेगा। सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं किया जाता है। षड दर्शन जीवन मे समय लगे तो पढ़िये गा साथ ही उसकी प्रतिक्रिया में जो उत्तपन्न हुआ है उसे भी। दर्शन वैसे भी तर्क का विषय है लेकिन उसके लिए दार्शनिक आधार चाहिए ।
भारतीय दर्शन या शास्त्र बिना पढ़े खंडित करना आसान है किंतु जब पढ़ लेगी समस्या का निराकरण हो जाएगा फिर लगेगा इतनी उच्च दर्शन होने पर यह देश गुलाम कैसे हो गया। जैसा कि जर्मन दार्शनिक कहता है।
आत्मा,परमात्मा,भक्ति,रहस्य गांव का किसान बता देता है ऐसा क्यों ,कारण DNA है । कलाम साहब ऐसे गीता लेकर नहीं चलते जबकि जितने बड़े वैज्ञानिक थे उससे बड़े आध्यात्मिक भी। कई हिन्दू संत उनके गुरु थी जिनके वह पैर भी छूते थे यह अग्नि की उड़ान में मिल जायेगा।
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मैं आपको बता दूं कि मैं दर्शनशास्त्र की विद्यार्थी रह चुकी हूं हां यह बात और है कि पिछले कई वर्षों से मैं इसके टच में नहीं हूं परंतु नहीं कहा कि भारतीय दर्शन निम्न है मैंने यह भी नहीं कहा कि भारतीय दर्शन पूर्णता अतार्किक है ! कहीं-कहीं कुछ कुछ चीजें हैं जो भ्रांति उत्पन्न करती हैं ! जो सुनी सुनाई बातों पर आधारित नहीं है मेरा अपना अनुभव है ! मैंने खंडित नहीं किया उसकी कमियों पर प्रकाश डाला है ! किसी भी चीज की उच्चता उसके परिणाम में होती है ! रही बात हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम आजाद जी की कि वह गीता लेकर चलते थे कहावत है अच्छी शिक्षा कहीं से भी मिले ग्रहण कर लेनी चाहिए वेद पुराण भी उतनी ही शिद्दत से पढ़ा करते थे और उसे समझ कर पड़ने पर जोर देते थे ! यह किसी मुस्लिम के उदारवादी दृष्टिकोण का परिचायक है ! एक दूसरे के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर उन्हें उनकी वास्तविकता में समझना हर किसी के बस की बात नहीं !
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पढ़ते और समझना दोनों अलग चीज है ग्रेजुएशन में मिला दर्शनशास्त्र एक विषय होता ग्रेजुएशन पास होने का यह जब आगे बढ़ता है कुछ दर्शनशास्त्र बनता है। पश्चिमी दर्शन और विज्ञान से तुलना सही तरह से नहीं की है। आस्तिक और नास्तिक का बंटवारा भी।
बुद्धिवादी प्लेटो और अरस्तू भी पश्चिमी दर्शन प्लेटो,अरस्तू और सोफिस्ट पर ही पूरा आधारित है। दर्शन के साथ आधुनिक विज्ञान की खोजों ने उनके महत्व को बढ़ा दिया। हम स्वतंत्रता का युद्ध लड़ रहे थे मेरे देश के कितने जो दार्शनिक और वैज्ञानिक बन सकते थे वह युद्ध में आहुत हो गये।
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आज सर्वाधिक यदि कुछ आवश्यक है तो वह है दर्शन को व्यवहार में लाना व्यवहारिक जीवन में उपयोगी बनाना ! सबका अपना दर्शन सबके अपने चिंतन पर आधारित है जिसके लिए जो व्यवहारिक है वही वास्तव में उपयोगी है !दर्शन के साथ आधुनिक विज्ञान की खोजों ने उसे और अधिक प्रासंगिक और अधिक उपयोगी बनाया है !
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आस्था भक्ति का विषय है दर्शन का नहीं ,यदि आस्था लगती है तो धर्मदर्शन एक बार पढ़ लीजिये। बाकी भारत के दर्शन पर विश्व को तनिक भी संशय नहीं है। प्राचीन भारत के ज्ञान,विज्ञान और दर्शन का विश्व ऋणी रहा है। ऐसा उल्लेख कई विदेशी दार्शनिक और विचारकों के वर्णन में मिल जायेगा। भारत के दार्शनिक विश्व के विभिन्न देशों में खगोल,चिकित्सा,गणित के ग्रंथ के साथ गये।
अरब देशों में खलीफा के समय मे भारतीय विद्वानों का वर्णन मिल जाएगा। अलबरूनी और अलमसुदी के वर्णन में पढ़ सकती है भारत की गणना पध्दति,जलसंरक्षण,साफ सफाई,ज्योतिष,खगोल,गणित,विज्ञान ,शिल्प,बुनाई कितनी उत्कृष्ट थी। समस्या यह है जो भारत को लुटे वह आज स्वीकार करे तो चोरी पकड़ी जाएगी।
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विश्वास के अभाव में आस्था संभव नहीं हो सकती ! जहां विश्वास होगा वहां आस्था होगी और जहां आस्था होगी वहां भक्ति होगी ! और रही बात धर्म-दर्शन की तो जहां से विज्ञान का अंत होता है दर्शन का आरंभ वहीं से होता है तात्पर्य यह हुआ कि जब हमारे पास तर्क वितर्क समाप्त हो जाते हैं तब हमारे पास साध्य तक पहुंचने के लिए आस्था के अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं रह जाता !विश्व को हमारे दर्शन पर संशय है अथवा नहीं संबंध में में कोई विचार व्यक्त करना नहीं चाहती ! हमारे आज के आधुनिक युग में ही धर्म के नाम पर किन-किन कुरीतियों को अपनाया जाता है इसकी भर्त्सना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम नहीं की गई है ! वर्णन तो कई विदेशियों का भी हमारे यहां मिलता है हमारा धर्म संस्कृति सब एक दूसरे की तालमेल सामंजस्य पर आधारित है ! बाकी बात रही पद्धतियों की तो यह सब इतिहास पर आधारित है और यदि कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो इतिहास घटनाओं के समानांतर नहीं लिखा गया आता इतिहास का एक बहुत बड़ा भाग पूर्वाग्रहों पर आधारित है ! तुलसीदास और वाल्मीकि की रामायण ही देख लीजिए! एक भारतीय होने के नाते में भारत की आलोचक नहीं हितेषी हूं! भारत कुछ एक व्यक्तियों की विरासत का हिस्सा नहीं और ना ही केवल उनकी सोच से संचालित होने वाली इकाई है! भारत एक महान देश है गंगा जमुनी तहजीब जिसकी संस्कृति की परिचायक है!
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गंगा जमुनी छलावा भर है अतिथि को सम्मान देने वाला देश रहा है वह अतिथि उसके धन और सत्ता पर गिद्ध दृष्टि रखा। पूर्वाग्रहों का देश भारत नही है जो कुरुतिया दिख रही है वह दूर वैठे लोगों को लिए है वह कल्चरल इम्प्रीलिज्म है। दर्शन और धर्म को मिक्स न करिये। धर्म मे तर्क को स्थान नहीं है (लेकिन सनातन धर्म इजाजत देता है) जबकि दर्शन तर्क पर आधारित है। धर्म दर्शन ,धर्म की आलोचना या कसौटी के लिए है। दर्शन किसने बताया कि विज्ञान के बाद का विषय?
हाइपोथीसिस दर्शन करता है जिस पर विज्ञान कार्य करता है।
वैज्ञानिक आधार पर समाज नहीं चलता है।
विज्ञान सिर्फ इंद्रियों का विकास है उससे से ज्यादा नहीं।
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धर्म दर्शन के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है ना केवल धर्म दर्शन बल्कि किसी भी प्रकार के दर्शन अथवा किसी भी प्रकार की सत्यता तक पहुंचने के लिए व्यापक दृष्टिकोण का होना आवश्यक है एक ऐसा व्यापक दृष्टिकोण जो पूर्वाग्रह रहित हो ! क्या आप सनातन धर्म के अनुयाई नहीं है !
रही बात दर्शन और विज्ञान की मेरा तात्पर्य यह नहीं था कि दर्शन विज्ञान के बाद का विषय है बल्कि मेरा तात्पर्य यह था कि विज्ञान की सीमा है दर्शन की कोई सीमा नहीं है !
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दर्शन बड़ा विषय है जो दो चार पेज लिखने से समझ नहीं आयेगा। उसके लिए आपके वैज्ञानिक तर्कों का निराकरण करना पड़ेगा ,किन्तु क्षमा चाहता हूं अभी pcs का exam कभी जरूर जानना चाहेगी तो दर्शन और विज्ञान जरूर बताऊंगा।
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धन्यवाद और शुभकामनाएं !
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हकीकत नहीं स्वीकार करेंगे तो सुधार किसका किया जायेगा और सुधरेगा कौन।
इसी लिए आलोचना है। कबीर बाबा के शब्दों में निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय
विन पानी विन साबुन निर्मल होय स्वभाव
इसी को सब पर लागू करिये।
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आप ही बता दीजिए कि मैं किस हकीकत को स्वीकार करूं ?और आप मुझ में कौन से सुधार करना चाहते हैं ?
जीवन में आलोचना का बहुत महत्व होता है यदि उसमें दुर्भावना समाहित ना हो तो !
सच्चे शुभचिंतकों की आवश्यकता जीवन में सभी को होती है इन्हीं के प्रयासों से जीवन में निरंतर सुधार होता रहता है और व्यक्ति जीवन मैं उन्नति करता जाता है !
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मैंने आपको सुधार करने के लिए नहीं कहा
दूसरा पर्सनल न लीजिये। मैं वैश्विक या देशीय
समस्या के संदर्भ में कहा हूं । व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाता हूं
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आप ही बताइए व्यापक दृष्टिकोण के अभाव में व्यापक समस्या का समाधान कैसे ढूंढा जा सकता है ! धन्यवाद!
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यह भी सत्य कहा आपने,जहाँ से शुरू वही पर खत्म! बात छोटी जरूर है पर रहस्य बड़े है।
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