उपयोगिता का हास अस्तित्व होता समाप्त
प्रत्येक वस्तु की अपनी एक विशेषता होती है और उसकी यही विशेषता उसे विशिष्ट बनती है औरों से भिन्न ,औरों से अलग, औरों से जुदा और कब उसकी यही भिन्नता एवं विशिष्टता उपयोगिता में परिवर्तित हो जाती है पता ही नहीं चलता !और जब किसी का आकलन उपयोगिता के आधार पर किया जाने लगे तो फिर चाहे वह वस्तु हो अथवा व्यक्ति केवल उपयोगी रहने तक ही सर्वप्रिय बना रहता है और उपयोगिता के हास के साथ ही उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है !
क्या एक असंवेदनशील समाज को सभ्य समाज की संज्ञा देना उचित होगा ?
यह कैसी विडंबना है इस असंवेदनशील समाज की जिसमें निर्जीव और सजीव के बीच का अंतर ही समाप्त होता जा रहा है आज व्यक्ति जिस सभ्य समाज में रहने का दंभ भरता है !क्या वास्तव में इसे एक सभ्य समाज कहां जा सकता है ?और यदि हां तो कैसे ?व्यक्ति की विशिष्टता का आकलन उसकी उपयोगिता के आधार पर करने से ,वस्तुओं को उसके सापेक्ष ला खड़ा करने से ,किसी की मनोभावना को चोट पहुंचाने से ,लोगों के साथ किये जाने वाले असंवेदनशील व्यवहार से या व्यक्ति का उपहास उड़ाने से…………..?
परिवर्तित होती मानवीय सोच
क्या व्यक्ति की सोच इतनी सीमित हो गई है ?क्या उसके समझ का दायरा इतना मशीनी हो गया है ?क्या व्यक्ति केवल एक हाड़ -मास का पुतला मात्र बनकर रह गया है ?प्रेम ,समर्पण ,त्याग क्यायह सब गुज़री हुई बातें बनकर रह गयी हैं?और यदि है भी तो कृपा स्वरूप !
ये कैसा रूप है मन की तंग गलियों का ? यह कैसा कुरूप रूप है सुंदरता का चोला ओढ़े समाज का ?
आज मनुष्य ने कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनों से तन को सुन्दर बनाने में तो सफलता अर्जित करली है !परंतु मन की सुंदरता पर कोई विचार नहीं करता जो मुफ्त में मिलती है और व्यक्ति को अमूल्य बना देती है !
मूल्य हमें अमूल्य बनाते हैं और अमूल्य होने में ही विशिष्टता है
एक दूसरे पर विश्वास, एक दूसरे का सहयोग ,एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान कभी बस यही थी हमारी पहचान !क्यूँ न हम अपनी पहचान को दोबारा निर्मित करें ?भावना ,संवेदनशीलता और करुणा जिसके लिए हम विश्व प्रसिद्ध रहे हैं !क्यों ना उन्हें पुनर्जीवित करें !हम अपनी धरोहरो को खंडित ना होने दें, उन्हें सहेजें यह हमारे अतीत की विरासत हैं इनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है !यह हमें अमूल्य बनाती हैं और अमूल्य होने में ही विशिष्टता है हमने आर्थिक विकास व तकनीक के साथ -साथ अन्य क्षेत्रों में तो खूब कीर्तिमान स्थापित किये हैं अपनी विशिष्ट के झंडे गड़े हैं तो इस क्षेत्र में क्यूँ नहीं ?जब हम Z तक पहुँच गए तो A,B,C,D तो हमारे बायें हाथ का खेल है !
हमें हमारी मूल्य रूपी धरोहर को जीवित रखना होगा
नैतिकता का हास मानवता का हास है !याद रखिए प्रत्येक मशीन मनुष्य का अविष्कार मात्र है परंतु मनुष्य ईश्वर की एक अनमोल कृति है जिसका गुड़ है मनुष्यतव !एक मनुष्य सैकड़ों मशीनों का निर्माण कर सकता है परन्तु संसार की समस्त मशीने मिलकर भी एक मनुष्य का निर्माण नहीं कर सकती तभी तो मनुष्य अमूल्य है और मनुष्यत्व उसकी धरोहर जिसकी रक्षा हमारा कर्त्तव्य ही नहीं अपितु धर्म है !
नैतिकता को सहेजिये मनुष्यत्व की रक्षा कीजिये !अगले पोस्ट में फिर मिलेंगे तब तक हँसते रहिये -हांसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !
धन्यवाद
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