संसार में नारी को निसहाय निर्बल व अबला समझने वालों की कोई कमी नहीं है !नारी अबला नहीं है ,न हीं वह बेचारी है वह तो षड़यंत्र की मारी है! नारी को अबला प्रचारित या घोषित करना इस छदम पुरुषप्रधान समाज का एक दुस्साहस प्रयास मात्र है !प्रेम, मोह- माया व संबंधों के प्रति समर्पण ममता व करुणा के वशीभूत होकर उसने स्वयं ही अपनी प्रगति को बाधित किया है जो कि उसकी कोमल भावनाओं का प्रतीक है उसकी कोमलता से उसकी कमजोरी का अनुमान लगाना पूर्णतःअनुचित है !