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" बेचारा कौन ?नारी या पुरुष !"

संबंधों को समर्पित नारी का जीवन त्याग, बलिदान व समर्पण का प्रतीक है पुरुष वर्ग के जीवन में खुशियों की छटा बिखेरने वाली नारी ही है ! मां, बहन, प्रेयसी ,पत्नी, मित्र हर रूप में पुरुष का साथ देने वाली वह नारी ही तो है !

संबंधों में आशा तलाशती नारी :-

नारी कमजोर नहीं है वह संबंधों से हारी है ! उसने अपनी आकांक्षाओं की अनदेखी कर संबंधों में आशा तलाशी है ! विवाह से पूर्व अपने पिता ,भाइयों और अपने खानदान के मान सम्मान के लिए और विवाह के उपरांत अपने पति और उसके खानदान के मान – सम्मान के लिए इतनी सजग रहती है कि अपना अस्तित्व ही खो देती देती है !

नारी केवल भावनाओं से हारी है

स्वयं को सिद्ध करती नारी :-

इतना सरल नहीं है नारी होना प्रत्येक क्षण परीक्षाओं से गुजरना होता है ,सिद्ध करना होता है ! कभी संबंधों में खरा उतरने के नाम पर , तो कभी अकस्मात ही उत्पन्न परिस्थितियों के नाम पर ! कैसी परीक्षा है यह ?

अपनों के विश्वास को तरसती नारी :-

क्या कभी सोचा है आपने ?क्या गुजरती होगी उस पर जो अपनी महत्वाकांक्षाओ का त्याग करने के पश्चात भी अपना महत्व खो दे ? इससे अधिक दयनीय स्थिति और क्या होगी कि जीवन दायिनी स्वयं जीवन की एक खुशी के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाए ? आत्मविश्वास से परिपूर्ण होते हुए भी दूसरों का विश्वास प्राप्त करना ही उसका एकमात्र लक्ष्य बन जाए !

एक चुटकी सिंदूर मुट्ठी भर जिम्मेदारी :-

बात एक चुटकी सिंदूर की नहीं अपितु उस उत्तरदायित्व की है जो वह उसके नाम पर वहन करती है ! वह भी बिना किसी दबाव के ! घर – संसार, मान – मर्यादा आदि को अपना कर्तव्य बना प्रत्येक परिस्थिति से सामंजस्य बैठाती हुई अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ जाती है !

पुरुष के अहम को संतुष्ट करने वाली नारी कमजोर कैसे हो सकती है:-

दुख तो तब होता है जब महिला के इस त्याग ,समर्पण , प्रेम को उसकी कमजोरी मान लिया जाता है !परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि जो दूसरों को जीवन देने की शक्ति रखती हो वह कमजोर कैसे हो सकती है ? संबंधों के प्रति उसकी सहनशीलता उसकी कमजोरी नहीं अपितु उसकी शक्ति है !स्त्री की सहनशीलता ही है जो पुरुष को शक्तिशाली होने का अनुभव कराती है कभी स्वयं की गलती मान कर ,तो कभी पुरुष की गलती को अनदेखा कर ! स्वयं को शक्तिशाली समझने वाला पुरुष तो इतना कमजोर है कि वह स्वयं के अहम् के आगे ही हार मान लेता है !

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निर्दोष होकर भी अपना दोष स्वीकार करने वाली नारी !

समस्त स्त्री जाति का अपमान है :-

स्त्री के लिए अबला ,कमजोर ,बेचारी ,निर्बल निस्सहाय आदि शब्दों का प्रयोग करना केवल किसी स्त्री मात्र का नहीं अपितु संपूर्ण स्त्री जाति का अपमान है ! वीरांगनाओं की गाथाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है रजिया सुल्तान ,लक्ष्मीबाई , रानी चेन्नम्मा , लक्ष्मी सहगल ,अरूणा आसफ अली इसके कुछ प्रमुख उदाहरण है !

क्या पुरुष वर्ग इतना कमजोर है ?

अक्सर हम उस व्यक्ति को ही कमियों का एहसास कराते हैं जिससे हम असुरक्षित महसूस करते हैं ! परंतु पुरुष वर्ग इतना कमजोर तो नहीं हो सकता !

स्त्री पुरुष का परस्पर संबंध :-

दोनों एक ही पथ के सहगामी हैं परस्पर प्रेम ,परस्पर विश्वास के बिना दोनों ही सुखी जीवन का निर्वहन करने में आसमर्थ हैं एवं परस्पर सहयोग एवं परस्पर सामंजस्य ही एक सुखमय जीवन का सार है !

परस्पर सामंजस्यता के साथ सुखमय जीवन के मार्ग पर बढ़ते रहिए ! अगले ब्लॉग में फिर मिलेंगे , तब तक के लिए हंसते रहिए -हंसाते रहिए जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए !

धन्यवाद !

🙏🙏🙏

28 विचार “" बेचारा कौन ?नारी या पुरुष !"&rdquo पर;

  1. बहुत ही खूबसूरत विवेचना।गर्व होता है मगर आज की स्थिति देख दुख भी।

    स्त्री के लिए अबला ,कमजोर ,बेचारी ,निर्बल निस्सहाय आदि शब्दों का प्रयोग करना केवल किसी स्त्री मात्र का नहीं अपितु संपूर्ण स्त्री जाति का अपमान है ! वीरांगनाओं की गाथाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है रजिया सुल्तान ,लक्ष्मीबाई , रानी चेन्नम्मा , लक्ष्मी सहगल ,अरूणा आसफ अली इसके कुछ प्रमुख उदाहरण है !

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    1. धन्यवाद , जी बिल्कुल ! हमारे समाज में कुछ ऐसे मानसिक रोगी हैं जो स्त्री को पुरुष के समान मानना ही नहीं चाहते और इस तरह के शब्दों के प्रयोग से महिलाओं के मनोबल को तोड़ कर उनकी आकांक्षाओं को सीमित कर देना चाहते हैं !

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    1. Yes, love, compassion and kindness prevail in the whole world because of the female mind and its behavior! Although both are two wheels of a car! The success of the relationship lies in mutual harmony and trust! Not everyone is the same, this mentality is only the identity of some mentally deformed people! Thank you very much for reading my blog and expressing your great comment on it.

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  2. बेहद खूबसूरत। किन्तु नारी आधार हो कर भी निराधार है घर से बाहर निकलते ही भेड़िए सक्रिय हो जाते है इन पुरुषों की प्रथम गुरु ने इन्हें नारी का ही सम्मान नहीं सिखाया उसे दौड़ में ऐसा दौड़ाया उसने सारी मर्यादा ही तोड़ दी।

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    1. धन्यवाद , गुरु और मा दोनों के मध्य कि लड़ाई में गुरु हार जाति है और बेटे को तरजीह देने के कारण मा पुत्र की बड़ी से बड़ी गलती मुआफ कर देती है ! प्रेम मोह माया वश कुछ समय के लिए अपने उत्तरदायित्व को भूल जाती है !

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    1. जी बिल्कुल , मां की गोद शिशु की प्रथम पाठशाला होती है और माही प्रथम गुरु होती है और कोई भी गुरु अपने विद्यार्थी को पथभ्रष्ट नहीं कर सकता !प्रेम ,करुणा ,दया से परिपूर्ण नारी ,पुरुष को भी इसी दृष्टिकोण से देखती है ! और घर का कर्ता धर्ता एवं भविष्य में परिवार का मुखिया बनाकर पालती है वह उसे घर परिवार व समाज के प्रति उत्तरदाई बना कर पालना चाहती है पर यदि कुछ विद्यार्थी महामूर्ख निकल जाएं तो इसमें गुरु की क्या गलती ! इतना मूर्ख व्यक्ति एक नए घर – परिवार का मुखिया बनने के योग्य तो क्या एक सभ्य मा का बेटा कहलाने के योग्य भी नहीं हो सकता !

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