महत्व केवल संबंधों का है
“संबंध” एक बहुत ही सुंदर शब्द है! क्या कभी सोचा है आपने इसका इतना महत्व क्यों है? यदि सत्य कहा जाए तो व्यक्ति के जीवन का सारा दारोमदार इन्हीं पर टिका है ! ये फिर चाहे खून के हो या इंसानियत का सबका अपना एक महत्व है ।
“खून के रिश्ते व्यक्ति को जुनून देते हैं और इंसानियत के रिश्ते सुकून !” क्या करें ?कहां जाएं ?किसे अपनाएं ? कैसे निर्धारित करें कौन अपना है कौन पराया ?
जीवन में अनुपयोगी कुछ भी नहीं है
कितनी अजीब बात है कि इस पृथ्वी पर व्यक्ति अकेले ही जन्म लेता है पर धीरे-धीरे समस्त संसार से उसका एक संबंध बन जाता है जो व्यक्ति को कई खट्टे – मीठे अनुभव कराता है । “संबंध या संबंधों का जाल “जाल हमेशा हानिकारक नहीं होता ये कभी-कभी फायदा भी पहुंचाता है इंटरनेट भी एक जाल है क्या यह हमें नुकसान पहुंचाता है ? नुकसान इंटरनेट नहीं पहुंचाता, नुकसान पहुंचाता है उसका दुरुपयोग !और किसी वस्तु का उपयोग निर्भर करता है हमारी मानसिकता पर । व्यक्ति की मानसिकता जब सब को लाभ पहुंचाने वाली होती है तो वस्तु स्वत: ही उपयोगी बन जाती है ।
त्रिनेत्र विकसित कीजिए
संबंधों के भी अपने प्रकार होते हैं कोई इसे जायज़ – नाजायज में विभाजित कर देता है तो कोई सगे – सौतेले में, कोई इन्हें मन का रिश्ता बताता है तो कोई तन का ।किसी के लिए संबंधों के इतर कुछ भी नहीं और किसी के लिए संबंधों का कोई महत्व ही नहीं ? वास्तव में संबंध नाम है उपरोक्त से इतर भावनाओं का ,यहां मेरा तात्पर्य ज्ञानेंद्रियों के द्वारा उद्धृत होने वाली भावनाओं से न होकर सिक्स सेंस से उत्पन्न होने वाले त्रिनेत्र से है जो आपको वास्तव में सही गलत का ज्ञान कराता है ।
“जागृत त्रिनेत्र”
सांप्रदायिकता की भावना को बलवती न होने दें
यूं तो हर रिश्ते का सम्मान व्यक्ति का परम कर्तव्य है परंतु फिर भी जन्म से ही हमें अपने – पराए का बोध कराया जाता है ताकि हमें हमारे अपनों के प्रति ,हमारे संबंधों के प्रति मन में एक जुनून उत्पन्न हो सके ।परिवार वालों के प्रति प्रेम भाव और सगे संबंधियों के प्रति निष्ठा भाव उत्पन्न हो सके ! भावनाओं से परिपूर्ण व्यक्ति जब एक समाज में निवास करता है और जब कोई व्यक्ति उसके संपर्क में आता है तो उसके साथ व्यक्ति का संबंध स्वत: ही बन जाता है कब ये संबंध व्यक्ति को सुकून देने लगते हैं पता ही नहीं चलता !यही कारण है कि इतने बड़े समाज में कई छोटे-छोटे समाज सृजित हो जाते हैं । संबंधों का सकारात्मक पक्ष जितना सुहावना नजर आता है संप्रदायों में विभाजित होकर यह उतना ही नकारात्मक रूप धारण कर लेता है ।सुकून पर जुनून कब हावी हो जाता है पता ही नहीं चलता ।
जीवन की अमूल्य ता का रहस्य
न घर परिवार को छोड़ा जा सकता है न समाज को “एक शरीर है तो दूसरा आत्मा “दोनों ही एक दूसरे के बिना निर्मूल हैं और एक सुखी जीवन के लिए संबंध अमूल्य हैं । अतः जीवन का वास्तविक सुख दोनों के सामंजस्य में है ।
सामंजस्य का महत्व
जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहने का नाम ही जीवन है मन व मस्तिष्क का सामंजस्य ही जीवन को सरल और सहज बना सकता है ।अपने त्रिनेत्र का उपयोग करते हुए ,सही गलत का अंतर करते हुए , अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से घबराए बिना जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहिए, अपने जुनून व सुकून का सम्मान करने के साथ ही दूसरों के जुनून व सुकून का भी सम्मान करते हुए आगे बढ़ते रहिए ।
जीवन की अविरल तरंगों में निरंतर बहते रहिए
समस्त संसार और इस बृहद संसार में बने व्याप्त विभिन्न समाजों को अपनाते हुए उनकी लय में बढ़ते चलिए !जीवन नाम है तरंगों का इन तरंगों को अविरल रूप से बहने दीजिए विश्व का सृजन करता ईश्वर है और पृथ्वी पर वास करने वाले हम सब प्राणी उसकी संताने हैं बस इसी मनो भावना के साथ विश्व के प्रत्येक प्राणी से प्रेम करते हुए आगे बढ़ते रहिए ।
दूसरों की निष्ठा पर खरा उतरने का प्रयास कीजिए
कौन अपना है कौन पराया ? यह सुनिश्चित करना सरल नहीं है ! यदि मस्तिष्क से सोचा जाए तो बिल्कुल सरल नहीं है परंतु यदि मन से सोचा जाए तो बिल्कुल कठिन नहीं है तात्पर्य यह हुआ कि ना तो मन से चला जा सकता है और ना ही मस्तिष्क से परंतु दोनों का सामंजस्य ही हमें सत्य का ज्ञान करा सकता है ।परंतु इसके पूर्व यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक होगा कि आप दूसरों से निष्ठा की उम्मीद करते हैं पर आप दूसरों की निष्ठा पर कितना खरा उतरते हैं ।
संबंधों का सार ही सुकून है फिर चाहे वह आपका बनाया हुआ हो अथवा ईश्वर का इसलिए हर संबंध का सम्मान करते रहिए, इंसानियत की राह पर बढ़ते रहिए ।हंसते रहिए – हंसाते रहिए ,जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए अगले ब्लॉग में फिर मिलेंगे ।
धन्यवाद ।।।🙏🙏🙏।।।
So true post! Thank you Rahat!
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Thank you for appreciation!My pleasure!
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you deserve appreciation for writing such relevant and sensible posts.
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प्रेम,त्याग,करुणा,ममता,विश्वास,भरोसा सब रिस्तों की जड़ हैं। रिस्तों का कोई बांध नही कोई सीमा नही। ईश्वर ने ये विस्तृत संसार दिया। हमने सरहदें बनाई जमीन हो या रिस्ते। सही क्या गलत क्या बहुत कुछ खत्म हो जाता है अगर दिल से प्रेम निकलता है। मगर जब दूसरी ओर से नफरत फैलाई जाती है, विश्वास की जगह अविश्वास,ममता की जगह छल फिर मानव हृदय चितत्कार उठता है और फिर जो होता है वह दुखद होता है।
मगर इन सब बातों से परे ये सत्य है कि रिस्ते सुकून देते हैं कभी हमें अपना बनाकर यो देखो,
गलत क्या सही क्या भूल जाओ आओ मेरे संग मुस्कुराकर तो देखो।
बढ़िया पोस्ट।
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I thought you had stopped blogposts. Today I read your article. It’s good and keep writing. Thanks
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I was quite busy for some time. Well nice to know , thank you.l am a regular reader of your blog post .
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Thanks ! You are most welcome.
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My pleasure .
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मनुष्य बहुत आगे जा चुका वह सिर्फ स्वयं के स्वार्थ में गोता लगायेगा दुनिया रहे न रहे
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Have a nice Weekend !! without pain or corona and co !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!°°°°°°°°°°°!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
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Nice post, Ramadan Mubarak
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aap kaisi ho Rahat! No post,no news abt you!
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“संबंधों का सार ही सुकून है फिर चाहे वह आपका बनाया हुआ हो अथवा ईश्वर का इसलिए हर संबंध का सम्मान करते रहिए, इंसानियत की राह पर बढ़ते रहिए”
👌👌👌👌
लाजवाब लेख!
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Ji bilkul ,par iss daur me insaniyat ka nirantar haas hota ja raha he ! Dhanyawaad ……!
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Good post
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Thank you Denise.
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