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“अपनेपन का एहसास !”

“ये खामोश से लब”

पत्थर की मूरत में – ढूंढे एहसास
यही बात उस को – बनाती है खास
उसका अनोखा – है ये अंदाज
यही बात उसको – बनाती है खास

ये क्या सोचकर – रंग, इसको दिया
निगाहें झुकाए – किसका ,करे शुक्रिया
गालों पे लाली – लबों पर है लाज
यही बात इसको – बनाती है खास

बढ़ते – रुकते ,क़दम किस लिए हैं
नयन ,मय के – प्याले लिए हैं
है ,होश में पर – नशे के -हैं अंदाज
यही बात उसको – बनाती है खास

ये, मासूम लहजा – ये, खामोश से लब
रूठ के पूछे -मिलोगे अब कब
अपनेपन का – ये एहसास
यही बात उसको – बनाती है खास

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“न चेहरों पे नक़ाब हों !”

मिटटी की हों – गलियां चाहे
मिटटी के न – ख्वाब हों
सच के साथ – मिलें सब
न चेहरों पे – नक़ाब हों
🤔🤔🤔

पिक्साबे
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"इंसानियत के रिश्ते सुकून देते हैं ।"

महत्व केवल संबंधों का है

“संबंध” एक बहुत ही सुंदर शब्द है! क्या कभी सोचा है आपने इसका इतना महत्व क्यों है? यदि सत्य कहा जाए तो व्यक्ति के जीवन का सारा दारोमदार इन्हीं पर टिका है ! ये फिर चाहे खून के हो या इंसानियत का सबका अपना एक महत्व है ।
“खून के रिश्ते व्यक्ति को जुनून देते हैं और इंसानियत के रिश्ते सुकून !”  क्या करें ?कहां जाएं ?किसे अपनाएं ? कैसे निर्धारित करें कौन अपना है कौन पराया ?

जीवन में अनुपयोगी कुछ भी नहीं है

कितनी अजीब बात है कि इस पृथ्वी पर व्यक्ति अकेले ही जन्म लेता है पर धीरे-धीरे समस्त संसार से उसका एक संबंध बन जाता है जो व्यक्ति को कई खट्टे – मीठे अनुभव कराता है । “संबंध या संबंधों का जाल “जाल हमेशा हानिकारक नहीं होता ये कभी-कभी  फायदा भी पहुंचाता है इंटरनेट भी एक जाल है क्या यह हमें नुकसान पहुंचाता है ? नुकसान इंटरनेट नहीं पहुंचाता, नुकसान पहुंचाता है उसका दुरुपयोग !और किसी वस्तु का उपयोग निर्भर करता है हमारी मानसिकता  पर । व्यक्ति की मानसिकता जब सब को लाभ पहुंचाने वाली होती है तो वस्तु स्वत: ही उपयोगी बन जाती है ।

त्रिनेत्र विकसित कीजिए

संबंधों के भी अपने प्रकार होते हैं कोई इसे जायज़ – नाजायज में विभाजित कर देता है तो कोई सगे – सौतेले में, कोई इन्हें मन का रिश्ता बताता है तो कोई तन का ।किसी के लिए संबंधों के इतर कुछ भी नहीं और किसी के लिए संबंधों का कोई महत्व ही नहीं ? वास्तव में संबंध नाम है उपरोक्त से इतर भावनाओं का ,यहां मेरा तात्पर्य ज्ञानेंद्रियों के द्वारा उद्धृत  होने वाली भावनाओं से न होकर सिक्स सेंस से उत्पन्न होने वाले त्रिनेत्र से है जो आपको वास्तव में सही गलत का ज्ञान कराता है ।

सांप्रदायिकता की भावना को बलवती न होने दें

यूं तो हर रिश्ते का सम्मान व्यक्ति का परम कर्तव्य है परंतु फिर भी जन्म से ही हमें अपने – पराए का बोध कराया जाता है ताकि हमें हमारे अपनों के प्रति ,हमारे संबंधों के प्रति मन में एक जुनून उत्पन्न हो सके ।परिवार वालों के प्रति प्रेम भाव और सगे संबंधियों के प्रति  निष्ठा भाव उत्पन्न हो सके ! भावनाओं से परिपूर्ण व्यक्ति जब एक समाज में निवास करता है और जब कोई व्यक्ति उसके संपर्क में आता है तो उसके साथ व्यक्ति का संबंध स्वत: ही  बन जाता है कब ये संबंध व्यक्ति को सुकून देने लगते हैं पता ही नहीं चलता !यही कारण है कि इतने बड़े समाज में कई छोटे-छोटे समाज सृजित हो जाते हैं । संबंधों का सकारात्मक पक्ष जितना सुहावना नजर आता है संप्रदायों में विभाजित होकर यह उतना ही नकारात्मक रूप धारण कर लेता है ।सुकून पर जुनून कब हावी हो जाता है पता ही नहीं चलता ।

जीवन की अमूल्य ता का रहस्य

घर परिवार को छोड़ा जा सकता है न समाज को “एक शरीर है तो दूसरा आत्मा “दोनों ही एक दूसरे के बिना निर्मूल हैं और एक सुखी जीवन के लिए संबंध अमूल्य हैं । अतः जीवन का वास्तविक सुख दोनों के सामंजस्य में है ।

सामंजस्य का महत्व

जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहने का नाम ही जीवन है  मन व मस्तिष्क का सामंजस्य ही जीवन को सरल और सहज बना सकता है ।अपने त्रिनेत्र का उपयोग करते हुए ,सही गलत का अंतर करते हुए , अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं से घबराए बिना जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहिए, अपने जुनून व सुकून का सम्मान करने के साथ ही दूसरों के जुनून व सुकून का भी सम्मान करते हुए आगे बढ़ते रहिए ।

जीवन की अविरल तरंगों में निरंतर बहते रहिए

समस्त संसार और इस बृहद संसार में बने व्याप्त विभिन्न समाजों को अपनाते हुए उनकी लय में बढ़ते चलिए !जीवन नाम है तरंगों का इन तरंगों को अविरल रूप से बहने दीजिए विश्व का सृजन करता ईश्वर है और पृथ्वी पर वास करने वाले हम सब प्राणी उसकी संताने हैं बस इसी मनो भावना के साथ विश्व के प्रत्येक प्राणी से प्रेम करते हुए आगे बढ़ते रहिए ।

दूसरों की निष्ठा पर खरा उतरने का प्रयास कीजिए

कौन अपना है कौन पराया ? यह सुनिश्चित करना  सरल नहीं है ! यदि मस्तिष्क से सोचा जाए तो बिल्कुल सरल नहीं है परंतु यदि मन से सोचा जाए तो बिल्कुल कठिन नहीं है तात्पर्य यह हुआ कि ना तो मन से चला जा सकता है और ना ही मस्तिष्क से परंतु दोनों का सामंजस्य ही हमें सत्य का ज्ञान करा सकता है ।परंतु इसके पूर्व यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक होगा कि आप दूसरों से निष्ठा की उम्मीद करते हैं पर आप दूसरों की निष्ठा पर कितना खरा उतरते हैं ।

संबंधों का सार ही सुकून है फिर चाहे वह आपका बनाया हुआ हो अथवा ईश्वर का इसलिए हर संबंध का सम्मान करते रहिए, इंसानियत की राह पर बढ़ते रहिए ।हंसते रहिए – हंसाते रहिए ,जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए अगले ब्लॉग में फिर मिलेंगे ।

                           धन्यवाद  ।।।🙏🙏🙏।।।


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"कब बदलेगी मानसिकता ?"

बड़ा कौन ?कर्म धर्म या वहम !

कभी धर्म की बात करते हो, तो कभी वहम की बात करते हो ,कर्म की बात क्यों नहीं करते ?

लोगों को केवल धर्म या वहम (कट्टरवाद) के आधार पर ही नहीं बांधे रखा जा सकता कर्म के आधार

पर भी बांधे रखा जा सकता है । यदि धर्म और वहम व्यक्ति को बांध पाते ? तो लोग

मेरा – तेरा कर ,धर्म के नाम पर खून ना बहाते

। निसंदेह धर्म सब कुछ हो सकता है परन्तु

खूनी तो कभी नहीं हो सकता । धर्म खूनी हो भी कैसे सकता है ?धर्म तो केवल एक नाम है

धर्म के नाम पर लूट – खसोट ,खूनी उत्पात मचाने वाला असली हैवान तो इंसान है ।

संस्कारों का झूठा दंभ भरने वाले हम जैसे व्यक्तियों के लिए क्या यह चिंतन का विषय नहीं है ?

नैतिक शिक्षा का होता हास उत्तरदाई कौन ?

धर्म का यह झूठा दंभ आया कहां से ? संस्कारों से ? नालत है ऐसे संस्कारों पर जो हमें

रक्तरंजित कर देने वाली सीख दें , धर्म के नाम पर अधर्म को बढ़ावा दें, कहां से आ रही है

यह राक्षसी प्रवृत्ति ?, नैतिक शिक्षा की पुस्तकें भी अपना प्रभाव नहीं दिखा पा रही हैं ,

पुस्तकें अपना प्रभाव दिखा भी कैसे सकती हैं ? जब तक कि परिवार का सहयोग सम्मिलित

ना हो , मां की गोद की शिक्षा कैसे मिले ? जबकि आज की मां के पास समय ही नहीं है ।

स्वयं के विकास और उन्नति के लिए प्रयास करना निंदनीय नहीं है यह तो परिवार की

आर्थिक स्थिति को शिखर पर ले जाने का एक साधन है । जिसका प्रयास अपने – अपने

स्तर पर सभी को करना चाहिए । परंतु परंतु जैसा देखो प्राप्त करने के लिए इस साधन

का प्रयोग किया गया था वह साध्य कहां है यदि साध्य की प्राप्ति के लिए अपनाए गए

साधन को ही सर्वोपरि समझ लिया जाए

तो क्या यह हमारी आने वाली नस्लों के लिए अनुचित नहीं होगा ?

अब यह आपके हाथ है कि आप कर्म प्रधान बनकर धर्म का सम्मान करते हैं या धर्म के

नाम पर झूठे आडंबर को बढ़ावा देकर कर्म की तिलांजलि दे देते हैं ।धर्म का वास्तविक

अर्थ है धारण करना !उदाहरण तो कोई भी दे देता है परंतु आत्मिक रूप से आत्मसात

करना सबके बस की बात नहीं ।

स्वयं को एक वृहद वृक्ष के रूप में स्थापित कीजिए !

भूल गए गीता के निष्काम कर्म की सीख ! जिसमें गीता सिखाती है कि “निष्काम कर्म कर

फल की इच्छा छोड़ दे !” वास्तव में यह हम जैसे तुच्छ प्राणियों के बस की बात नहीं हमें

तो फल चाहिए, और वह भी त्वरित बिना किसी इंतजार के तो हम निष्काम कर्म की

कल्पना कैसे कर सकते हैं ? यह हम मनुष्यों में धैर्य की कमी का परिचायक है , अब आप

कहेंगे कि धैर्य भी कोई सिखाने की चीज है ? तो मैं कहूंगी ! जी बिल्कुल । धेर्य भी आपके

व्यवहार का ही एक अंग है , आपका वही व्यवहार जो संस्कारों से सिंचित होकर नरम मिट्टी

पर संस्कारों के फूल खिला देता है जिस की सुगंध से संपूर्ण वातावरण महकता रहता है

कभी किसी की खुशी की वजह बन कर मुस्कुराता है, तो कभी बिछड़े हुओं को मिलाता है और

जब कभी कोई इस इमारती लकड़ी (बहुमूल्य लकड़ी ) को चिंगारी देकर आपकी आत्मा को

झकझोर भी दे ,तो भी आप दूसरों का घर जलाने के लिए तैयार नहीं होते ,आप उस

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अनबुझी टहनी को काटकर अपने से अलग कर देते हैं और पुनः नई कोपलों के साथ एक

विशाल वृक्ष के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करते हैं । सब को प्रश्रय देने वाले एक वृहद वृक्ष के रूप में

प्रस्थापित कीजिए ।

कब बदलेगी मानसिकता ?

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना प्रत्येक व्यक्ति का एक स्वप्न होता है , और हो भी क्यों ना? धन -दोलत,

मान – प्रतिष्ठा सामाजिक मान-सम्मान के प्रतीक जो ठहरे । आप मान – सम्मान से परिपूर्ण हो ना हो परंतु

आर्थिक रूप से संपन्न होना मानो हर मानव का अधिकार ही हो फिर चाहे इससे समाज में मानवीय मूल्यों

की कमी ही व्याप्त क्यों ना हो जाए ,इससे हमें क्या ? जिससे हमारा उल्लू सीधा हो हम तो उस क्षेत्र में काम

करेंगे ।संपूर्ण समाज को सुधारने का दायित्व हमारा अकेले का थोड़े ही है ! संसार को बदलने का ठेका

थोड़े ही ना ले रखा है ।

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अपना अस्तित्व बनाए रखने के दो ही तरीके हैं या तो आप स्वयं दूसरे के रंग में रंग जाइए या दूसरे को

अपने रंग में रंग लीजिए ! यह वाक्य सुनने में जितना सरल प्रतीत होता है वास्तव में उतना ही कठिन है

यदि होता ? तो समाज में ये बिखराव देखने को नहीं मिलता ! व्यक्ति किसी अन्य के रंग रंग या ना रंगे

यदि इंसानियत के रंग ही रंग जाए ? तो सारी समस्या ही हल हो जाए ।

मूल्यों का अवमल्यन मत होने दीजिए !

जब मूल्यों का अवमूल्यन होता है तो संपूर्ण समाज बिखर कर रह जाता है । मुल्ले आते हैं संस्कारों से

और संस्कार जन्म लेते हैं विचारों से । जिसके विचार उच्च उसके संस्कार उच्च , जिसका व्यवहार उच्च

उसके संस्कार उच्च , जिसमें दूसरों को मान – सम्मान देने की भावना उच्च उसके संस्कार उच्च , जिसकी

उदारता उच्च उसके संस्कार उच्च ।

संस्कारों का सम्मान कीजिए !

अन्य शब्दों में कहा जाए तो व्यक्ति की भावनाएं व उसका व्यवहार उसके संस्कारों से ही संचालित होता है !

व्यक्ति का व्यवहार उसके संस्कारों को दर्शाता है और उसके संस्कार उसके माता-पिता के उच्च आदर्शों को

इसलिए आवश्यक है कि संस्कारों की रक्षा की जाए जो कि हमारे माता- पिता के आदर्शों के परिचायक हैं ।

मानसिकता बदलिए ,माता-पिता के आदर्शों की रक्षा कीजिए !अगले ब्लॉग में फिर मिलेंगे तब तक के लिए

हंसते रहिए हंसाते रहिए जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए ।

धन्यवाद ।।।🙏🙏🙏।।।

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"इंतज़ार न कर !"

सदैव मन की सुनें

क़ल्ब तेरा – खुद ही क़ासिद !
किसी रहबर का – इंतजार न कर !!

तोड़ के – रिवायत !
उड़ पंखों का – इंतजार न कर !!

कर जूनूं – खुद में पैदा ,कोई शिद्दत !
कोई आए, दे रफ्तार – इंतजार ना कर !!

राब्ता, सबसे रख – बढ आगे, भूल के रंजिश !
तू ही, कर पहल – और का, इंतजार ना कर !!

कर तख्य्यल ऐसा – कि तसव्वुर – सच हो !
किसी मुआज्जजा का – इंतज़ार न कर !!

अर्थ

क़ल्ब ———— दिल/मन
क़ासिद ——— संदेश वाहक/संदेश लेने वाला
रहबर ———- मार्ग दर्शक/लीडर
रिवायत ——- परंपरा
जुनूं ———– महत्वाकांक्षा /अभिलाषा
शिद्दत ——– तीव्रता
राब्ता ——— मज़बूत लगाव
रंजिश ——— दुश्मनी
तखय्यल ——- कल्पना शक्ति
तसव्वुर ——— कल्पना
मुअज्जजा —— चमत्कार

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" बेचारा कौन ?नारी या पुरुष !"

संबंधों को समर्पित नारी का जीवन त्याग, बलिदान व समर्पण का प्रतीक है पुरुष वर्ग के जीवन में खुशियों की छटा बिखेरने वाली नारी ही है ! मां, बहन, प्रेयसी ,पत्नी, मित्र हर रूप में पुरुष का साथ देने वाली वह नारी ही तो है !

संबंधों में आशा तलाशती नारी :-

नारी कमजोर नहीं है वह संबंधों से हारी है ! उसने अपनी आकांक्षाओं की अनदेखी कर संबंधों में आशा तलाशी है ! विवाह से पूर्व अपने पिता ,भाइयों और अपने खानदान के मान सम्मान के लिए और विवाह के उपरांत अपने पति और उसके खानदान के मान – सम्मान के लिए इतनी सजग रहती है कि अपना अस्तित्व ही खो देती देती है !

नारी केवल भावनाओं से हारी है

स्वयं को सिद्ध करती नारी :-

इतना सरल नहीं है नारी होना प्रत्येक क्षण परीक्षाओं से गुजरना होता है ,सिद्ध करना होता है ! कभी संबंधों में खरा उतरने के नाम पर , तो कभी अकस्मात ही उत्पन्न परिस्थितियों के नाम पर ! कैसी परीक्षा है यह ?

अपनों के विश्वास को तरसती नारी :-

क्या कभी सोचा है आपने ?क्या गुजरती होगी उस पर जो अपनी महत्वाकांक्षाओ का त्याग करने के पश्चात भी अपना महत्व खो दे ? इससे अधिक दयनीय स्थिति और क्या होगी कि जीवन दायिनी स्वयं जीवन की एक खुशी के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाए ? आत्मविश्वास से परिपूर्ण होते हुए भी दूसरों का विश्वास प्राप्त करना ही उसका एकमात्र लक्ष्य बन जाए !

एक चुटकी सिंदूर मुट्ठी भर जिम्मेदारी :-

बात एक चुटकी सिंदूर की नहीं अपितु उस उत्तरदायित्व की है जो वह उसके नाम पर वहन करती है ! वह भी बिना किसी दबाव के ! घर – संसार, मान – मर्यादा आदि को अपना कर्तव्य बना प्रत्येक परिस्थिति से सामंजस्य बैठाती हुई अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ जाती है !

पुरुष के अहम को संतुष्ट करने वाली नारी कमजोर कैसे हो सकती है:-

दुख तो तब होता है जब महिला के इस त्याग ,समर्पण , प्रेम को उसकी कमजोरी मान लिया जाता है !परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि जो दूसरों को जीवन देने की शक्ति रखती हो वह कमजोर कैसे हो सकती है ? संबंधों के प्रति उसकी सहनशीलता उसकी कमजोरी नहीं अपितु उसकी शक्ति है !स्त्री की सहनशीलता ही है जो पुरुष को शक्तिशाली होने का अनुभव कराती है कभी स्वयं की गलती मान कर ,तो कभी पुरुष की गलती को अनदेखा कर ! स्वयं को शक्तिशाली समझने वाला पुरुष तो इतना कमजोर है कि वह स्वयं के अहम् के आगे ही हार मान लेता है !

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निर्दोष होकर भी अपना दोष स्वीकार करने वाली नारी !

समस्त स्त्री जाति का अपमान है :-

स्त्री के लिए अबला ,कमजोर ,बेचारी ,निर्बल निस्सहाय आदि शब्दों का प्रयोग करना केवल किसी स्त्री मात्र का नहीं अपितु संपूर्ण स्त्री जाति का अपमान है ! वीरांगनाओं की गाथाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है रजिया सुल्तान ,लक्ष्मीबाई , रानी चेन्नम्मा , लक्ष्मी सहगल ,अरूणा आसफ अली इसके कुछ प्रमुख उदाहरण है !

क्या पुरुष वर्ग इतना कमजोर है ?

अक्सर हम उस व्यक्ति को ही कमियों का एहसास कराते हैं जिससे हम असुरक्षित महसूस करते हैं ! परंतु पुरुष वर्ग इतना कमजोर तो नहीं हो सकता !

स्त्री पुरुष का परस्पर संबंध :-

दोनों एक ही पथ के सहगामी हैं परस्पर प्रेम ,परस्पर विश्वास के बिना दोनों ही सुखी जीवन का निर्वहन करने में आसमर्थ हैं एवं परस्पर सहयोग एवं परस्पर सामंजस्य ही एक सुखमय जीवन का सार है !

परस्पर सामंजस्यता के साथ सुखमय जीवन के मार्ग पर बढ़ते रहिए ! अगले ब्लॉग में फिर मिलेंगे , तब तक के लिए हंसते रहिए -हंसाते रहिए जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए !

धन्यवाद !

🙏🙏🙏

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"नारी विजयी बन जाती !"

न दर्द की मारी – बन जाती i
न फिर – बेचारी बन जाती ii
जो आज – उठा लेती खंजर iii
न निर्बल बेचारी -बन जाती iv

आवाज उठाओ – संघर्ष करो i
सौगंध उठाओ – अब ना डरो ii
बच जाती – निर्भया ,प्रियंका iii
जो न अबला – बन जाती iv

ना मर्दों की – भीड़ है i
चार पुरुषों की – जंजीर है ii
अगर न होता – पुुुुुरूष गैंग में

नारी विजयी -बन जाती iv

ना भूलो के – माता है i
नारी ,बहन – तुम्हारी है ii
आज न तुम – सम्मान करो iii
कल ,तुम्हारी – बारी है iv
इंसानियत से – सोचते गर v
बहन तुम्हारी – बन जाती vi

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"वक़्त की तलाश में …..!"

कयामत ,की रात -थी वो !
जब ,उसका – ज़वाल देखा !!
हर एक – शख्स के !!!
लब पे – सवाल देखा !!!!

मुकद्दर , किसी का – यूं !
बिगड़े न – इस तरह !!
अपनों की – थी महफिल !!!
गैरों सा – हाल देखा !!!!

वाबस्ता – जो , नहीं थे !
थे वो भी – वक्त की तलाश में !!
रखते थे – वह ,भी क्या !!!
दिल में – ख्याल ,देखा !!!!

दिल शिकनी – करके भी था !
खुद पर – जिन्हें गुरूर !!
इनायत – का उनकी !!!
क्या-क्या गुमान देखा !!!!

दिल से – निभाए जो !
बस ,शिद्दत – उसी में है !!
नाम के – रिश्तों का !!!
तो बस – कतले आम देखा !!!!

दुनिया है ये – इससे कोई !
तवकको – न कीजिए !!
गुलशन -उजाड़ कर भी !!!!
न ,इसको – मलाल देखा iv

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“कल हो न हो ज़िन्दगी से यारी !”

क्यूं करते हो !
यूं जीने की तैयारी !!


लब पे हंसी !
आंखों में पानी !!
छलना – छलाना !!!
दिल को जलाना iv
क्या है ,ये अययारी v


क्या है दििल में !
कहदो ,कह डालो !!
आज कहो ,न कल पे टालो !!!
आज है वक्त कल क्या पता iv
हो न हो ज़िन्दगी से यारी v

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“गुनाहों का आईना !”

देखें जहां क्यूं हर जगह
झूठ कोई ,कोई गुमां

है हर गुनाह -एक आईना !

तुझको समझ – आए ना !!

सब पे नजर -खुद से बेखबर !!!

खुदको ,खुदकी खबर- आए न iv

………………….

देखे जहां -क्यूं हर जगह !

झूठ कोई -कोई गुमा !!

है बेदाग -तू ,दूध सा !!!

और कोई -भाए ना iv

……..………..

आप अल्म -हम बे -अमल !

जिससे मिलो -एक मशवरा !!

हमको जैसे -कुछ आए ना !!!

……………….

है हर तरफ़, रंगो -गुलाल !

फिर -क्यूं है डर !!

ज़िन्दगी ,बेरंग हो जाए न !!!

……………….

क़ातिल ही हो ,है कैद जो !

ये तो जरूरी नहीं !!

रह जाए -बद ,बचा !!!

बदनाम और -हो जाए न iv

…………………

ये ज़िन्दगी है एक सफ़र !

शहरों शहर घूमा मगर !!

मंज़िल तो मगर !!!

लेकिन नज़र आए न iv

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“इनसे तो बेहतर मिटटी के थे मकां !”

क्या -क्या रफू करोगे ?

क्या-क्या रफू करोगे !

रह जाएगा निशान !

बारिश के बाद जैसे !

सूखा हुआ मकान !

मिले थे नसीब से तो !!

बिछड़ना भी नसीब था !!

आए यकीन क्यों ना !!

किस्मत का था लिखा !!

अपनी ही है ज़मीन और !!!

अपना ही आसमां !!!

लगता है फ़िर पराया !!!

सारा ही क्यों जहां !!!

शीशे के घरों में i v

पत्थर के लोग हैं i v

इनसे तो बेहतर i v

मिट्टी के थे मकान i v

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” लोग नादान है !”

ख्वाब भी है खयाल भी है !

कोई दिल में सवाल भी है !

क्यों यह होता है !

माजरा क्यों कर !

क्यों उरूज के बाद !

ज़वाल भी है !

छीन लेते हैं लेते हैं खुशी क्यों !!

बीते वक्त के साए !!

खुद छुपा है जवाब इसमें !!

खुद ही सवाल भी है !!

कशमकश है !!!

एक कश्ती दो किनारे !!!

एक पाने की खुशी !!!

एक खोने का मलाल भी है !!!

सोचते हैं चलो सब iv

भूल कर सो जाते हैं iv

बचते हैं करके कनारा iv

गुजर जाते हैं iv

है गर लब पे पहरे तो iv

ख्वाबों में कलाम भी है iv

मुकद्दर से जो लड़ते हैं v

लोग नादां हैं v

है अगर यह ज़वाल v

तो कमाल भी है v

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“तकब्बुर कैसा !”


दिल जो ख्वाबों का !

आशियाना है !

वो भी एक दौर था !

ये भी एक ज़माना है !

गम दे जो मुसलसल !!

ठहरे न ख़ुशी !!

किस तरहाँ ये !!

गम का आना जाना है !!

थे जो मशहूर कभी !!!

ख़ास वजाहों के लिए !!!

आम उनको भी !!!

एक रोज़ हो जाना है !!!

काहे का फ़क़्र iv

तकब्बुर कैसा iv

जो कमाया था iv

सब यहीं रह जाना है iv

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“दृढ व्यक्ति की यही पहचान होती है !”

जीवन एक प्रतियोगिता है और आप एक प्रतियोगी इसलिए बिना रुके चलते रहिये !

टूट कर -बिखर जाने की -कहानी !

बहुत आसान – होती है !

…………..

समेट लेना -खुद को विपत्ति में !!

दृढ -व्यक्ति की -यही !!

पहचान -होती है !!

…………

वो हस्ती -हो जिसे !!!

दर्द ,औरों की -पीड़ा का !!!

ढूँढना – शक्सियत ऐसी !!!

कहाँ ,आसान होती है !!!

गाँधी जी
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” ये कैसा अभिमान है !”

एक महान विचारक

वनदे ,वनदे ,वनदे !

बने हम ऐसे बन्दे !

के दुनियां याद करे !

मेरे बाद करे !

दूसरों की खुशी से हो !!

खुशी हासिल !!

दूसरों के गम से !!

बह निकले !!

आँख का काजल !!

एक दुसरे का दर्द हो !!

ऐसा ज़माना आ जाये !!

वनदे , वनदे , वनदे !!

बने हम ऐसे बन्दे !!

की दुनियां याद करे !!

मेरे बाद करे !!

भूल तो होती रहेगी !!!

आखिर को इंसान हैं !!!

खून की होली खेले जो !!!

ये कैसा अभिमान है !!!

भगवान दे शक्ति हमें !!!

माफ़ करना आ जाये !!!

वनदे ,वनदे ,वनदे !!!

बने हम ऐसे बन्दे !!!

की दुनियां याद करे !!!

मेरे बाद करे !!!

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“उड़ते हैं परिंदे सब ….!”

एक ऐसा जहां हो !

जहां कोई न पशेमा हो !

हो हर कोई जहां अपना !

हर दिल में मुहब्बत हो !

ये मेरा इंडिया

मिले इंसा से जहां इंसा !!

रिश्ता है वही गहरा !!

ये हिन्दू मुसलमा क्या !!

हर दिल में चाहत हो !!

खुले आसमा में जैसे !!!

उड़ते हैं परिंदे सब !!!

एक साथ ज़मी पर यूं !!!

मिलेंगे यहां सब कब !!!

के चैन मिले दिल को !!!

और रूह को राहत हो !!!

shayri
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“तुमने सोचा है कभी क्या ?”

ज़िन्दगी एक कभी न रुकने वाला सफर है ………!

कर ताना बाना -कोई ,बहाना न बना !

हार और जीत -दो पहलू !

न ठहर , एक जगह -एक, ठिकाना न बना !

चल ,परिंदों सा – उड़ चल !!

जो न ठहरे -वो हवा !!

जो ,बरसे तो बादल -और, ठहरे तो मक़ा !!

ज़िंदगी है -कोई सौगात !!!

इत्तेफ़ाक़ नहीं -न ठहरो !!!

कब मिल जाये -सौगात ,किसे क्या !!!

सब है मुमकिन iv

सब सोचों से बदल जाता है iv

ज़िन्दगी है हकीकत – तुमने ,सोचा है कभी क्या iv

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” ये वहम है कैसा !”

मुझको रोने भी नहीं देता -ये सितम है कैसा !

मिली हंसने की सज़ा – के ये गम है कैसा !

अश्क़ बरसात में शामिल ज़र्रा -ज़र्रा मुक़ाबिल!!

सच गर ये जो नहीं -तो- ये वहम है कैसा !!

घिर गए हैं ,भंवर में -चल -चलके किनारे !!!

करदे जो ज़ख्म हरा -वो ,मरहम है कैसा !!!

जिसको भी देखिये -एक शिकायत है नयी iv

तुझपे राहत , क़िस्मत का -ये करम है कैसा iv

life, shayree, Society

“कुछ समझी कुछ समझ न आया !”

अल्फ़ाज़ों का ये सरमाया !

कुछ समझी कुछ समझ न आया !

दरिया में -होती है रवानी !!

देता है गंध -ठहरा पानी !!

कब छूटा -हाथों से साहिल !!

कब ठहर गया -कोई ज़ख्म पुराना !!

कुछ समझी -कुछ समझ न आया !!

ख्वाबों का -ये सरमाया !!!

कुछ समझी -कुछ समझ न आया !!!

कुछ भूली -बिसरी बातें !!!

कुछ ख्वाब हैं -सच कुछ बातें !!!

तक़्दीरों के -खेल निराले !!!

सच कहीं -नज़र न आया !!!

कुछ समझी कुछ -समझ न आया !!!

सोचों का ये सरमाया iv

कुछ समझी कुछ समझ न आया iv

रोते -रोते हंस देते हैं iv

हँसते -हँसते छलके आखें iv

मामूली ये बात है लेकिन iv

मुश्किल है ग़म वो भूलाना iv

कुछ समझी कुछ समझ न आया iv

shayree

” तो ये सिम्तों में बटा क्या है !”

वक्त सिलसिला है !कब रुका है ?कब थमा है ?

कब बदल जाये ? कोई जाने नहीं !

कभी मौसम !कभी सावन !!

दिल जो टूटे तो ये – खुद ही दवा है

वक़्त क्या है ?सिलसिला है !

हम हैं मेहफ़ूज़ बहुत , यूं हमें लगता है !

वक़्त कह देता है लेकिन ! सच क्या है ?

वो शहर भी , है शजर भी, वो हवा है, वही दर भी !

सब गुज़र जाता है ,तो ये माजरा क्या है ?

नम आखों मैं छुपा है !क्या राज़ कोई गहरा ?

ये गम जो नहीं !तो भला क्या है ?

कोई अपना या पराया ,कुछ नहीं होता !

है अगर सच , तो ये सिम्तों में ,बटा क्या है ?

किसलिए
सोशल ईविल, life, shayree, Society

“एक सोच -किस लिए !”

 ये भुलावा किस लिए
ये भुलावा किस लिए

कुछ नहीं है ज़िन्दगी में फिर दिलासा किस लिए !

रंजो गम हैं बिखरा हर सू फिर तमाशा किसलिए !!

हर लम्हा एक सदी सा -लम्बा है यूँ इंतज़ार !

है न परवाह किसी की फिर दिखावा किसलिए !!

फिर भी हर पल मुस्कुरायें ये छलावा किस लिए !!

आरज़ू ए गम छुपा है साथ हर एक सोच के !

बन गया पत्थर ये दिल आँख भी पथरा गयी !

आज दिल की मजलिस में हुए नाकाम हम !

ज़ख्म जब कोई नहीं तो फिर ये छाले किस लिए !!

हैं अकेले जो अगर तो भीड़ ये फिर किसलिए !!

गुलशन के बीच काँटे न चुभे मुमकिन नहीं !

सिर्फ फूलों की तमन्ना फिर भला किस लिए !!

नाकामियों के दरमियान जब उम्मीद भी कोई नहीं !

फिर परेशां क्यों है दिल फिर दुआयें किस लिए !!

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” स्वास्थय मानसिकता का विकास!”

उदारवाद बनाम उग्रवाद

“बुरा मत देखो – बुरा मत कहो -बुरा मत सुनो !” कहां है आज गांधी जी के वो तीन बंदर ?जिनका अनुसरण उदारवादी अपना धर्म समझते हैं और उग्रवादी ऐसी विचारधारा रखने वाले लोगों को नपुंसक ! शब्दों में कितनी तासीर होती है कि जब इनका प्रयोग सकारात्मक रूप से किया जाता है तो यह फूल बन जाते हैं और जब नकारात्मक ढंग से किया जाता है तो ये आपकी आत्मा तक को भेद कर रख देते हैं !

कोई किसी से कम नहीं

एक दुसरे की भावनाओं को आहत करना तो मानवीय प्रवृत्ति रही है तात्पर्य यह है की हम सब ही उग्रवादी हैं !हम उग्रवाद के विरुद्ध भाषण देते हैं ,आतंकवाद के खिलाफ जंग छेड़ देते हैं अर्थात हम सभी ईट का जवाब पत्थर से देने के लिए खड़े हैं ,तू सेर तो मैं सवा सेर , सब एक के बाप एक !मगर हममे से कितने ऐसे लोग हैं जिन्हें अपनी गलती का पछतावा होता है !

स्वतंत्रता अर्थात सबकी स्वतंत्रता

हमारा व्यवहार , हमारी सभ्यता ,हमारी संस्कृति और यहां तक की हमारे लालन -पालन तक पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है !आज आजादी के 72 वर्षों बाद भी यदि हमने अपनी स्वतंत्रता का उचित उपयोग नहीं सीखा तो क्या सीखा ? दूसरों की आजादी का हनन !

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नैतिक मूल्यों का होता हास

आज गांधी जी से सबको समस्या है क्योंकि आज के संदर्भ में गांधी जी के सिद्धांत आप्रासंगिक जो हो गए हैं !क्यूंकि आज के समय में लोग केवल बुरा ही देखना पसंद करते हैं , अच्छा कहने को कुछ बचा नहीं है क्यूंकि अच्छा कहने के लिए एक अच्छी सोच का होना ज़रूए है जो की नदारद होती जा रही है !अब यदि बात करे चैन की तो चैन तब तक मिलता नहीं है जब तक की तीखे मसलों के मिश्रण से दुसरे की आखों में आँसू न ले आयें और ऐसा इसलिए क्यूंकि दूसरे का दुःख ही तो हमारा परम सुख है !

अंतर्मन का परिवर्तन ही वास्तविक परिचरतां है

जब आप बदलेंगे स्वयं को अंतर्मन के साथ तभी आएगा लोगों को आप पर विश्वास !जब तक आप स्वयं में हिरण की खाल में छुपे भेड़िए (दुर्भावना )का वध नहीं कर देते तब तक आप शाकाहार ग्रहण नहीं कर सकते !

स्वस्थ्य मानसिकता का विकास ही वास्तविक हल है

मानव की रोगी मानसिकता के भी क्या कहने! एक तरफ तो वह अंधे , मूक एवं बधिर व्यक्ति की कमी को उनकी कमी भी कहता है और दूसरी और अपने अंदर की उन कमियों पर विचार भी नहीं करना चाहता ,विचार क्यों नहीं करना चाहता ?क्योंकि विचार योग्य कुछ लगता ही नहीं है !

वास्तविक लाभ को पहचानिये

मेरे विचार से अंधा गूंगा अथवा बहरा होना व्यक्ति की कमी नहीं अपितु उसकी शक्ति है क्यूंकि कहा जाता है की ऊपर वाला यदि किसी में कोई एक कमी करता है तो सो गुण डाल देता है !इस प्रकार लाभ में कौन रहा ? एक के बदले सो पाने वाला अथवा एक के बदले सो गवाने वाला !चुनाव आपका है !

स्वच्छ चुनिए -स्वास्थ्य रहिये ,अगले ब्लॉग में फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए हंसते रहिए हसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद !

🙏🙏🙏

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personality development

“झोला छाप डाक्टरों से सावधान !”

आजकल हमारे भारतीय समाज में एक विशेष फैशन चलन में है और वो है धार्मिक आधार पर व्यक्तियों के मस्तिष्क का EMI !करना जब से BJPसरकार क्या आयी ?मानो झोला छाप डॉक्टरों की बाढ़ सी आगयी है !ये लोगों के मस्तिष्क का ऍम. आर .आई आखों से कर लेते हैं और रोगी की तकलीफ को बिना कहे ही समझ लेते हैं !महाज्ञानी जो ठहरे !महाज्ञान के इस कुम्भ में हर कोई डुबकी लगा लेना चाहता है !एक ऐसी अधार्मिक डुबकी जो धर्म (सत्य )को धो दे !

जी हाँ मैं बात कर रही थी अखंड भारत का झूठा दम्भ भरने वाले राष्ट्रवादियों की !आज संकुचित एवं रोगी मानसिकता के साथ राष्ट्रवाद किस दिशा में जा रहा है जिसे देखो वही राष्ट्र का ठेकेदार बना हुआ है वास्तव में आजकल राष्ट्रवाद राष्ट्र हित से कम और निजी स्वार्थों से अधिक संचालित हो रहा है !

जब कांग्रेस की बात आती है तो राष्ट्रवाद बनाम वंशवाद में लड़ाई छिड़ जाती है , कभी राष्ट्रवाद बनाम जातिवाद का ,कभी राष्ट्रद्रोह बनाम राष्ट्रवाद ,कभी जय हिन्द बनाम राष्ट्रवाद , कभी जय मोदी बनाम राष्ट्रवाद कभी वन्देमातरम बनाम राष्ट्रवाद …………….? राष्ट्र वाद का इतना संकुचित द्रष्टिकोड आपलोगों ने पहले कभी नहीं देखा होगा जहां व्यक्ति को प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्रवादी होने का प्रमाण देना पड़े वो भी ऐसे लोगों को जिनके लिए राष्ट्रवाद एक निजी संपत्ति हो गया हो अब अगर आप स्वयं को राष्ट्रवादी घोषित करना चाहते हैं तो इनसे प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य होगा मानो राजनीती न हुई दलगत आतंकवाद हो गया !

समय रहते निकाल फेकिये संकुचित दृष्टिकोण को

हमारे संविधान की आत्मा से धर्मनिरपेक्ष व लोकतंत्र मानो समाप्त होने की कगार पर है और ये सब कुछ टूच -पुँजिये कम अक़्ल , कम पढ़े लिखे अथवा पढ़े लिखे जाहिलों का काम है !इन सिद्धांतों का मूल्य वह बुद्धिजीवी वर्ग जानता है जिसने इतिहास पढ़ा है स्वतंत्रता संग्राम और देश की आज़ादी के लिए जान गवाने वाले सपूतों की माओं-बहनो -बेटियों के दुःख दर्द को महसूस किया है !

यदि राष्ट्रवाद का बिगुल छेड़ना ही है तो धार्मिक सौहार्द के लिए छेड़िये ,विकास के लिए छेड़िये ,समाजवाद के लिए छेड़िये ,आतंकवाद के लिए छेड़िये अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर साख बनाने के लिए छेड़िये ,भ्रष्टाचार के विरुद्ध छेड़िये , लोकतंत्र की बहाली के लिए छेड़िये , धर्म निरपेक्षता के लिए छोड़िये …………………..!

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यह एक तथ्य आधारित सत्य है आप जिसपर जितना अविश्वास प्रकट करेंगे वह व्यक्ति उतना ही विद्रोही प्रवृत्ति धारण करता जायेगा !क्या हम भारतियों के प्रति अंग्रेज़ों के अविश्वास को भूल गए !याद रखिये अविश्वास की स्तिथि भ्रम उत्पन्न करती है और भ्रम ले डूबता है इस भ्रम से उत्पन्न तूफ़ान में सब घिर जाते हैं फिर चाहे वह वास्तु हो व्यक्ति अथवा सरकार !

सरकार शब्द में एक मत्वपूर्ण संकल्प निहित है !ये संकल्प है संविधान की आत्मा के स्वरुप को ज्यों का त्यों बनाये रखने का क्यूंकि लोकतंत्र का अर्थ जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए किया जाने वाला शासन है न की” सरकार का सरकार के द्वारा सरकार के लिए किया जाने वाला शासन !”मूल ही वास्तविक सुगन्धयुक्त फूल है आत्मा में बदलाव शूल है !

में स्वयं पर कोई धार्मिक अथवा जातिगत बन्धन आरोपित करके एक व्यक्ति से भिन्न कुछ भी मानन्ना नहीं चाहती !मैं एक सामान्य व्यक्ति हूँ भारत की एक आम नागरिक ! याद रखिये हम सभी भारत के नागरिक है हमारी एकता में ही भारत की शक्ति है और हमारी शक्ति का प्रतीक है अखंड भारत !

हमारा देश संवेदनशील स्थिति से गुज़र रहा है एकता बनाये रखिये अगले ब्लॉग में फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए हँसते रहिये -हसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

जय भारत

🙏🙏🙏

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life, motivation, personality development, safalta ke mool mantra, solution of a problem

” प्रतिबद्धता जीवन का आधार !”

कुछ रिश्तों सा कुछ नातों सा !

रिश्ता हर एक हे बातों सा

कुछ बह निकले पानी बनकर

कुछ जाये ठहर दर्द के जैसा !!

संबंधों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह

संबंधों की प्रतिबद्धता का होता समापन ! संबंधों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है !वास्तव में सम्बन्ध हैं क्या ?यही एक प्रश्न जिसे देखो उसी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है !आजके दौर में संबंधों ने जिस तेज़ी से अपने वास्तविक अर्थ को खोया है ,ज़रूरते जिस तेज़ी से संबंधों पर भारी पढ़ गयीं पता ही नहीं चला !

मन व मस्तिष्क का का भ्रम जाल

विकास ,प्रगति ,स्टेटस की झूठी व्याख्या और झूठा दम्भ वास्तव में मन व मस्तिष्क के झूठे भ्रम का ही परिणाम है !ये भ्रम व्यक्ति को एक ऐसी माया नगरी में ले जाता है जहां भटकाव और असंतुष्टि के अतिरिक्त कुछ नहीं होता और व्यक्ति एक लम्बी उम्र गुज़ार कर सालों की तिलांजलि देकर दशकों के बाद माया के उस भ्रम से निकल आता है !पर वो कहते हैं न ” अब पछतावे होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत !”

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प्रतिबद्धता की आंच संबंधों के शुद्धिकारन के लिए आवश्यक

संबंधों को विश्वास की कसौटी पर कसा जाता है जहां प्रतिबद्धता की आंच इन्हें शुद्ध बनाती है !प्रतिबद्धता अर्थात वादा !एक ऐसा वादा जो व्यक्ति स्वयं -स्वयं से करता हे !व्यक्ति का यही वादा उसकी इच्छा ,उसकी आकांक्षा ,उसका संकल्प बन जाती है !जो व्यक्ति के जीवन को एक दिशा प्रदान करती है !

प्रतिबद्धता जीवन के हर दौर में ज़रूरी है

विश्वास की एक डोर जो एक इस छोर तो दूसरी उस छोर संबंधों को बांधे रखती है !प्रतिबद्धता कोई पखवाड़ा नहीं हे जिसकी आवश्यकता एक समय विशेष पर विशेष रूप से हो यह तो जीवन के प्रत्येक क्षण में ज़रूरी है !जीवन के हर दौर में ज़रूरी है !

प्रतिबद्धता में कमी के परिणाम

प्रतिबद्धता की कमी रिश्तो में अविश्वास पैदा करती है जो भविष्य में खटास का कारन बनती है !अविश्वास संबंधों का एक ऐसा प्रतिबिम्ब प्रदर्शित करता है जो वास्तव में होता ही नहीं है , एक ऐसी सोच को जन्म देता है जो सोच का विषय ही नहीं है , एक ऐसे घाव का अनुभव करता है जो चोट है ही नहीं !

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जीवन नीरस ,निराशापूर्ण व असंतुष्ट मन ,चिन्तनमयी मस्तिष्क जीवन को डावाडोल बना देता है सुख का लोप व संतुष्टि का अंत हो जाता है !सोच विचार की शक्ति क्षीड़ हो जाती है !द्वन्द में उलझा व्यक्ति न घर का रहता है न घाट का सम्बन्धो की डोलती नैया जीवन के सुख चैन को ले डूबती है और हिस्से आता है संताप और घृणा कभी लोगो से तो कभी अपने आपसे !

सम्बन्धो में विश्वास उत्पन्न कीजिये संबंधों का आनंद लीजिये अगले ब्लॉग में फिर मुलाक़ात होगी तब तक हाँहते रहिये हसते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद !

🙏🙏🙏

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“आज से बेहतर कल होगा !”

shayree
“आज से बेहतत कल होगा “

  • Aaj se behtar kal hoga !
  • Sundar har ek pal hoga !!
  • Tum jo agar umeed na haro !
  • Aage badho kal ko sawaro !!
  • kuch guzre kal se seekho !
  • Murjhaye har pal ko seencho !!
  • Aaj lagaya ped hai jo !
  • Kal wo hara hoga !!

Aa

Award

“Liebster Award “

Thanks to my loveliest friend and wonderful writer Sunipukadiyil , “Fragrant flowers and recipies “for nominating me for the Liebster Award . I am both honored and humbled that you thought of me .if you haven’t checked out Sunipukadiyil’s blog , so what are you waiting for ? you can find Sunipukadiyil here https://fragrantflowersandrecipes.blog

please visit her blog and encourage her for getting loveliest fragrance and taste in future .

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Rules

1 things that bloggers who nominating you .

2 Share 11 facts about you .

3 answer the 11 Questions the blogger asked you .

4 Nominate 11 bloggers and make them happy.

5 make up to all 11 questions and ask them .

6 notify your 11 nominees .

Facts about me

1 I got a master’s degree in zoology specialization in fisheries .

2 I have done integrated diploma in travel and tourism management .

3 I have some knowledge of public administration and philosophy .

4 I value people on the basis of their qualities and not on the basis of their social and economic status .

5 I don’t believe in hurting anyone .

6 I am a very ground to earth person and like to stay away from the people people who believe to pump and show .

7 I am a perfectionist and try to bring perfection in every work .

8 I believe in honesty because honesty is the best policy .

9 I hate lies .I forgive those who admit their mistakes .

10 I exercise every day .

11 I am foodie .

Answer the Questions

1 do you fed up with your household duties ?

No , I’m not fed up with my household duties because I feel good to shoulder my duties .

2 Do you like lying ?

I don’t like lying Because it create misunderstanding as well as dissatisfaction .People do not believe the speaker and he becomes a laughingstock .

3 How do you feel when someone ill-treated ?

We are surrounded by the people who are ill treated by others ,no of people are doing so ,Every one is the victim of discrimination sometimes on the basis of religion, origin ,sex ,caste, sometimes on the basis of socio and economic status .I don’t like any kind of discrimination ,It is the violence of our fundamental rights ,Our Constitution as well as Nature provide the same rights .

4 Do you like back biting ?

No, I’m a clear-cut person if I have a problem with someone i tell the person clearly .

5 what do you think about the people who drive on the wrong side on the road ?

I don’t like people who driving wrong side on the road because their slight carelessness can kill people. These kind of people not only breaks the rules but also puts people’s lives in danger .

6 what do you think about any kind of pretend ?

I don’t like any kind of pretense because caring for someone is an internal issue sometimes because of pretending we become unable to recognize the real people who loves and care .

7 what do you think about the littering the environment ?

we should preserve our environment because it is important factor of healthy life .If we protect the environment today, tomorrow it will protect us and our future generations .

8 do you like that kind of people who pretend to hold all kinds of powers and they ill treated others ?

No, pretend and care both are the different things .Care entails a feeling of love and showing off can be helpless.Truth is from the heart ,Just as a lie suppresses the truth for some time, in the same way, showing off the truth for some time only .sometimes the person have the special experience They can guide but it could be in real sense because we all are equal the feeling of superiority is the kind of in equality .

9 This is totally against the humanity. When God has made everyone equal then any kind of discrimination with any person is unfair.

10 what do you think about procrastination ?

Disposal of work on time gives better results and after the passage of time, the thing loses its importance, therefore one should always follow this rule, call today, do it today, so now .

11 do you like to wake up early in the morning ?

If I have any work so I get up early in the morning otherwise I like to wake up late . I used to study at night, so it has been a habit to wake up late, whereas I know that waking up late is harmful to health.

questions for my nominees are

1 what is something that most people learn only after it’s too late ?

2 Do you also think that the false conceit of the superior is making us fall into the eyes of each other and weakening our image at the international level as well ?

3 Do you also believe in delay or believe that there is nothing called delay ?

4 the house is on fire ,but everyone is safely out ,the beds are safely out ,and all wallets and cash are saved .if you could make one last thing to get something what would it be ?

5 In the absence of human values, the imagination of human is itself a human inferiority ?

6 If you could ask advice from any historical figure who would it be why would you ask them and why ?

7 if you are tired somehow survived and grew up in the wildness without any human contact ,how ” human ” would they be without the influence of society and culture ?

8 If life is more important than love then why do people die in love while life is more than love ?

9 Do you think that in today’s time, one can give up their desires, whereas in today’s time, each person’s life is revolving around desires ?

10 Today, the person seems to be most concerned about himself, being worried for the next generation is just a show off, do you think it is right?

11 Do you also think that if victory is a priority then defeat is also important and why ?

My nominees are

1 Mr. Ravi singh

https://ravisingh.blog/

2 Mr. Shiva Narayan

https://learnography.wordpress.com

3 Mr. Obaid khan

https://map195.wordpress.com

4 Mr. Nilzeitung

https://nilzeitung.wordpress.com

5 prof. mitch

https://mitchgoldfarbblog.wordpress.com

6 Mr. Samyak singh

http://bloggo.art.blog

7 Mr. Madhu soodan

https://madhureo.com

8 Mabm

https://wp.me/p6xgJx-1ko

9 Raaj Soni

https://innocentarticles.wordpress.com

10 kumar parma

https://thehindimail.wordpress.com

11 Rock shayar Mr. Irfan

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सोशल ईविल, humble ,kind and polite, life, Mental health and personality development, personality development, Society

“कहीं आपके आदर्श भी पाखंडो की बलि तो नहीं चढ़ गए !”

सिद्धांततः कहा जाता है की बड़ों का सम्मान किया जाना चाहिए ,हमारे कारण कभी किसी की भावनाएं आहत ना हो इसका सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए ,झूठ नहीं बोलना चाहिए किसी को पीड़ा नहीं पहुचानी चाहिए , किसी के दुःख का कारण नहीं बनना चाहिए …………..और जाने क्या-क्या आदर्श निहित है हमारी संस्कृति में !

सामान्यतः आदर्शों और व्यवहार के मध्य एक बहुत बड़ा अंतर पाया जाता है !आज के समय में हमारे बहुमूल्य आदर्श एक गिफ्ट पैक से ज्यादा कुछ नहीं बचे हैं खूबसूरत, डब्बा बंद ,फॉरेन पैकिंग में पैक, आकर्षक जिसे देखते ही हर कोई खोलने को लालायित हो उठता है और खोलने पर वही ऑनलाइन पार्सल की तरह मंगाया कुछ पाया कुछ !क्या कभी सोचा है आपने हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को आदर्श के नाम पर क्या देने वाले हैं ?जबकि पीढ़ी का यह अंतर हमारे आदर्शों पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरंतर गिरावट आ रही है !

वास्तव में हमारे आदर्शों में गिरावट का प्रमुख कारण है हमारे बड़ों के मूल्यों में गिरावट और सर्वाधिक उत्तरदायी है पाखंड या (ह्य्पोक्रिसी )है !जहां दोहरे माप दंड ,दोहरे मूल्य , कथनी और करनी में अंतर ,सामने और पीठ पीछे का अंतर ,दोहरी मानसिकता !

यह तो परिस्थिति वाद है इसे आदर्शों की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है !आदर्श स्थाई होते हैं विपरीत परिस्थितियों में भी उच्च आदर्श अपने स्थान से डिगते नहीं हैं “उच्च विचार साधारण रहन-सहन “कभी उच्च व्यक्तित्व के सार हुआ करते थे आज हाल यह है कि विचार उच्च हो या ना हो रहन सहन अवश्य उच्च होने चाहिए !

परिणाम स्वरूप दोहरे असंतुष्ट व्यक्तित्व की उत्पत्ति होती है इन दोहरे मापदंडों के मध्य संतुलन बैठते –बैठते व्यक्ति अपनी वास्तविक स्थिति ही खो देता है अब न तो वे वह बचता है जो वह था और जो वह है वास्तव में वह है ही नहीं !अब प्रश्न उठता उठता है की आखिर ये है कौन ?यह एक भटका हुआ प्राणी है जो अपना अस्तित्व तलाश रहा है अपनी वास्तविक पहचान को छोड़कर एक नई पहचान बना रहा है !

many facrs
“जो हैं वही रहिये !”

यह कैसा द्वंद है कैसा युद्ध ?अपने आप से !क्या अपने आप से लड़कर कोई कभी जीत सका है ?शायद जीत भी जाता यदि युद्ध सत्य का होता ! युद्ध और धर्म युद्ध में अंतर है यदि धर्म युद्ध हो तो व्यक्ति पराजित होकर भी संतुष्टी प्राप्त कर लेता है क्योंकि धर्म युद्ध सदैव सत्य के लिए होता है और सत्य के लिए कुछ खोना भी पाने से कम नहीं होता !

संस्कृति न हुई मजाक हो गया ,आदर्श न हुए खेल हो गया !आपकी सोच न हुई आपका विनाश हो गया जीवन न हुआ पाखंड हो गया !आपका व्यवहार न हुआ एक खेल हो गया

हमारी संस्कृति मूल्य व आदर्श हमारी विरासत हैं हमें हमारी इस बहुमूल्य धरोहर को सहेजना होगा दोहरे मूल्यों से बाहर आना होगा पाखंड से खुद को बचाना होगा ! यदि हमसे हमको इस पाखंड से बाहर निकालने में सफल होगे तभी तो अपनी आगामी पीढ़ी को असदारशों की भेट उपहार स्वरुप देने में सक्षम होंगे !

पाखंड से बचिए, सच से परिपूर्ण जीवन व्यतीत कीजिए ,जोहैं वही रहिये अगले ब्लॉग में फिर मुलाक़ात होगी तब तक हँसते रहिये – हसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए !

धन्यवाद !

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सोशल ईविल, life, motivation, personality development, solution of a problem

“क्या होना चाहिए ?इच्छाओं व आवश्यकताओं को नमन अथवा दमन !”

इंसान कभी अपनी ज़रूरतों से जूझता है तो कभी अपनी ख्वाहिशों से एक को पूरा करने के चक्कर में दुसरे की अनदेखी जाने अनजाने हो ही जाती है , कभी एक का पलड़ा भारी तो कभी दुसरे का ! कभी ख्वाहिशों के आगे ज़रूरतें दम तोड़ देती हैं तो कभी ज़रूरतों के आगे ख्वाहिशों का गला घोंट दिया जाता है !”ख्वाहिशें -ज़रुरत ,ज़रुरते -ख्वाहिश “बस इन दोनों के मध्य संतुलन बैठने में ही ज़िंदगी बीत जाती है !

यूँ तो ज़िंदगी के कई क्षण अनमोल होते है जो विभिन्न रंगों से जीवन को रंगोली की तरह रंगीन बना देते है मगर फिर भी हम मनुष्य सदैव नकारात्मक क्षणों को इस तरह पकडे रहते हैं की जीवन से हर रंग का आनंद ही समाप्त हो जाता है !

ख्वाहिश अपनी जगह ज़रूरत अपनी जगह “ख्वाहिश दिल का जूनून तो ज़रूरत शरीर का सुकून है !”इस प्रकार अपनी -अपनी जगह दोनों ही महत्वपूर्ण हैं यदि दोनों को एक दुसरे का पूरक कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी !ख्वाहिश जीवन को आनंदमयी बनाती है जिससे जीवन में उत्साह जागृत होता है और व्यक्ति में जीवन के प्रति लालसा उत्पन्न होती है इसके विपरीत आवश्यकताओं का बोझ व्यक्ति के जीवन को दुखदायी बना देता है और इससे जीवन के प्रति अनुत्साह जागृत होता है और इससे व्यक्ति में जीवन के प्रति उदासीनता व अरुचि उत्पन्न हो जाती है !

एक सुखी संतुष्टिपूर्ण जीवन के लिए दोनों ही आवश्यक हैं दोनों ही भावनाओं का सम्मान कीजिये परन्तु साथ ही यह भी याद रखिये की गुलाम किसी के न बने !फिर चाहे वह ख्वाहिश हो या फिर ज़रुरत ख्वाहिश और ज़रुरत की आपसी जंग में एक समय विशेष पर जिसका पलड़ा भारी होता है वह जीत जाता है !

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मन व मस्तिष्क की इस लड़ाई में जब मन मस्तिष्क पर हावी हो जाता है तो जीत सदैव ख़्वाहिश की ही होती है और जब मस्तिष्क मन पर हावी हो जाता है तो जीतn सदैव आवशयकता की होती है !मन की पूरी तो मस्तिष्क परेशान और मस्तिष्क की पूरी तो मन परेशान ! आखिर करे तो क्या करें इंसान ?

एक में संतुष्टि तो दुसरे में असंतुष्टि, एक में जूनून तो दुसरे में सुकून यूं तो दोनों का चोली दामन का साथ है परन्तु फिर भी संबंधों में संदेह अज्ञात है !दोनों के मध्य गतिरोध है और हो भी क्यों न वास्तव में ख्वाहिशों का ज़रुरत से बैर सव्भाविक ही है क्यूंकि ख्वाहिशों अक्सर ज़रूरतों के आगे दम तोड़ देती हैं या ये भी कहा जा सकता है की ज़रूरतें ख्वाहिशों पे भारी पढ़ जाती हैं इसके उलट ज़रूरतों का भी यही हाल है ज़रूरतें सपनी प्राथमिकता के आधार पर ख्वाहिशों को सीमित कर देती हैं !

ख्वाहिशें हों या ज़रूरतें दोनों ही आत्मा और शरीर की भांति मानव जीवन की प्राथमिक आवश्यकतायें है इन्हें कम ज़्यादा तो किया जा सकता है परन्तु साधु संत व महात्माओं की भांति पूर्णतः समाप्त नहीं किया जा सकता !ये हम जैसे साधारण मनुष्यों के बस की बात नहीं !

आज के आधुनिक युग में मनुष्यो में आवश्यकताओं और ख्वाहिशों के दमन की इच्छा भी नहीं के बराबर ही पायी जाती है जिसे देखो वही अपनी ख्वाहिशों और आवश्यकताओं के पीछे दौड़ रहा है सबंधों में संतुलन मानो समाप्त सा होता जा रहा है और यही कारण है कि एक संबंधो को निभाने के लिए दूसरे संबंध की अवहेलना कर दी जाती है आज व्यक्ति ख्वाहिशों और आवश्यकतों की बेड़ियों में जकड़ कर रह गया है जहां व्यक्ति से व्यक्ति का सम्बन्ध टूटता जा रहा है !ये सब क्यों और किसलिए ?यदि समस्या का हल ढूँढना है तो समस्या के कारणों की पहचान तो करनी ही होगी !

समस्या के कारणों की पहचान कर जीवन में संतुलन स्थापित कर आगे बढ़ते रहिये अगले ब्लॉग में फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए हंसते रहिए- हंसाते रहिए जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद !

🙏🙏🙏

gyani
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“कहीं आपकी नज़र में भी केवल आप ही महाज्ञानी और बाक़ी सब अज्ञानी तो नहीं !”

अहम् एक मानसिक विकार

उचित -अनुचित का भी एक अजीब खेल है जिसे देखो बस वह सही और हर दूसरा व्यक्ति गलत है !ऐसा क्या है जो प्रत्येक व्यक्ति को केवल उसके सही होने के लिए विवश कर देता है ? और अन्य व्यक्ति के सत्य को बाधित कर देता है !वास्तदव में यह कुछ और नहीं व्यक्ति का संकुचित दृष्टिकोण मात्र है !जहां किसी अन्य के सत्य के लिए कोई स्थान नहीं है ” मैं ही सत्य ज्ञानी हूँ ,सत्य भी मैं बोलता हूं और केवल में ही हूं जो सत्य सुनना भी पसंद करता हूँ !”क्या आपने कभी सोचा है सत्य का यह दंभ क्यों और किस लिए ?

दोषपूर्ण दृष्टिकोण सत्य अथवा छदम

वास्तव में यह सच व झूठ की समस्या नहीं ये एक “मानसिक विकार ” है एक ऐसा मानसिक विकार जिसमे व्यक्ति स्वयं को सर्वोच्च, सर्वोपरि , सर्व्गुढ़ संपन्न मान लेता है और इसे इसकी बुद्धि और सर्वोपरिता के आगे सब तुच्छ नज़र आने लगते हैं !क्या कोई परिभाषा है सर्व्गुढ़ संपन्न होने की ? या केवल अपना दृष्टिकोण ही पर्याप्त है यदि व्यक्ति सोचता है की वह परम ज्ञानी ,परम अनुभवी ,सर्वगुण संपन्न …………………आदि है तो क्या वास्तव में ये सत्य है या छदम दम्भ मात्र ?

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कहीं आप भी इनमे से एक तो नहीं

“वास्तव में तो ऐसे लोग बुद्धिमान नहीं अपितु बुद्धिमत्ता का चोला ओढ़े महामुर्ख होते हैं !”आप कौन होते हैं उचित- अनुचित का निर्णय करने वाले ?दूसरे की समझ का न समझी से आंकलन करने वाले !सामान्यतः व्यक्ति भिन्न परिस्थितियों में वास करते है इसलिए उचित अनुचित की परिभाषा भी भिन्न -भिन्न व्यक्तियों के लिए भिन्न -भिन्न होती है यदि सर्व सामान्य सत्यों को छोड़ दिया जाये तो एक के लिए उचित किसी दुसरे के लिए अनुचित हो सकता है और जो दुसरे के लिए अनुचित हो वह अन्य के लिए उचित हो सकती है !

दूसरों को मुर्ख समझने वाला वास्तव में मुर्ख होता है

स्वयं को महाज्ञानी ,महापंडित समझना आपका आपमें विश्वास को दर्शाता है और दुसरे को अज्ञानी या मुर्ख समझना दुसरे में अविश्वास को !स्वयं में विश्वास सर्वोत्तम है दुसरे में विश्वास भी उत्तम है व्यक्ति में विश्वास व्यक्ति के सम्मान को दर्शाता है !

व्यक्ति में अविश्वास अर्थात आत्मसम्मान पर आघात

जिस प्रकार आप अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए उत्तरदायी हैं ठीक उसी प्रकारर अन्य भी जब आप अन्य व्यक्ति में अविश्वास दर्शाते हैं तो व्यक्ति के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है याद रखिये व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु शारीरिक चोट देने वाला नहीं अपितु मानसिक आघात देने वाला होता है !

व्यक्ति का आंकलन उसकी एक भूल के आधार पर मत कीजिये

यदि आप पंडित हैं !तो हो सकता है अन्य व्यक्ति महापंडित हो ? केवल बखान से ही कोई महापंडित नहीं बन जाता !भूल -चूक तो सृष्टि का नियम है !भूल चूक के कारण ही तो व्यक्ति व्यक्ति है !व्यक्ति यदि गलती ना करता तो व्यक्ति नहीं रहता फरिश्ता बन जाता !किसी की भूल सामने आ जाती है और किसी की छुपी रह जाती है परन्तु एक भूल का अर्थ ये नहीं की व्यक्ति के अस्तित्व को ही नकार दिया जाये !कोई न कोई कमी सब में होती है परन्तु एक कमी का अर्थ यह नहीं की व्यक्ति की सारी अच्छाइयों को नकार दिया जाये !

लोगों की बुराइयों को भूलकर अच्छाइयों को याद रख आगे बढ़ते रहिये अगले ब्लॉग में फिर मुलाक़ात होगी तब तक हँसते रहिये -हँसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद

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“यूं ही कड़वा करेला किसी की प्राथमिकता नहीं बन जाता !”

जीवन उस अद्भुत करिश्माई शब्द का नाम है जो विभिन्न खट्टे, मीठे कड़वे व नमकीन अनुभव कराता रहता है व्यक्ति फिर भी जीवन में कभी हार नहीं मानता और निरंतर संभावनाएं तलाश करता रहता है !संभावना का अर्थ है संभव होना और बात जब संभव होने की हो तो आप जानते ही हैं कि इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं है !यद्यपि मृत्यु को आप नियंत्रित नहीं कर सकते तथापि मृत्यु के अतिरिक्त समस्त विषय आपके नियंत्रणाधीन हैं सबसे महत्वपूर्ण है आपका विश्वास जो आपको असफल नहीं होने देता कठिन परिस्थितियों में भी आपको थामे रखता है !

जीवन आपको कई खट्टे ,मीठे ,कड़वे अनुभव परोसता रहता है जीवन की इस अद्भुत थाली में परोसे गए इन व्यंजनों में से क्या खाना है ?क्या नहीं ?चुनाव आपका होता है ,कहा जाता है यदि विकल्प हो तो चुनाव सरल हो जाता है यद्यपि चुनाव आपकी समझ पर निर्भर करता है की आप स्वस्थ रहने के लिए खाते हैं या स्वाद के लिए !

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वास्तविकता तो यह है कि स्वस्थ रहने के लिए हमें खट्टे , मीठे, कड़वे सभी व्यंजनों की सम्मिलित रूप से आवश्यकता होती है यदि ऐसा नहीं होता तो भोजन में कड़वे व्यंजनों का महत्व न होता “यूँ ही तो कड़वा करेला किसी की प्राथमिकता नहीं बन जाता !”

जीवन में स्वाद और स्वास्थ्य दोनों में संतुलन आवश्यक है एक शरीर को स्वस्थ बनाता है और दूसरा जीवन को आ आनंदमय अतः जिस प्रकार एक स्वस्थ्य जीवन के लिए प्रोटींस , विटामिंस , कार्बोहाइड्रेट्स मिनरल्स से परिपूर्ण एक संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार खट्टे , मीठे ,कड़वे और कुछ नमकीन अनुभवों का संतुलन जीवन को दिशा प्रदान करते हैं !

भोजन और जीवन दोनों के मध्य अंतर केवल चुनाव का है भोजन में इस संतुलन को हम स्वयं अपनाते हैं और कुछ अनुभव ना चाहते हुए भी जीवन में आ जाते हैं घबराइए नहीं यह कुछ एक क्षण ही आप को त्रस्त करगे क्योंकि जीवन में स्थिर कुछ भी नहीं है !

आप हाथ में पूजा की थाली लेकर समर्पण भाव से पूजा अर्चना करते हैं और बदले में मनोकामना करते हैं इच्छा कुछ पाने की जीवन में अद्भुत हो जाने की परंतु क्या आप जानते हैं ईश्वर ने यह यह थाली कर्म प्रधान बना रखी है ?तात्पर्य यह हुआ कि बाधित ना हो परिस्थितियों के वशीभूत होकर हार न माने कर्म प्रधान रहे !चलाएं मान रही है रुका हुआ तो जल भी दुर्गन्ध मारने लगता है इसलिए सदैब चलायमान रहें आगे बढ़ते रहें !

कई बार खट्टा खाने से दांत खट्टे हो जाते हैं और एसिडिटी हो जाती परंतु क्या हम खट्टा खाना छोड़ पाते हैं ?यद्यपि हम जानते हैं कि मीठा खाने से डायबिटीज हो जाती है परंतु क्या हम मीठा खाना छोड़ पाते हैं ?अधिक नमक ब्लड- प्रेशर का कारण बनता है यह जानते हुए भी क्या हम नमक लेना छोड़ पाते हैं ?क्या आपने कभी विचार किया है की पूर्णता नियंत्रण के अधीन होने के पश्चात भी हम इन हानिकारक भोज्य पदार्थों के सेवन पर आंशिक नियंत्रण ही स्थापित कर पाते हैं ! तो कटु अर्थात कड़वे अनुभव जो ह दूसरों से पाते हैं उन्हें पूर्णतः नियंत्रित कैसे कर सकते हैं ?इन्हें पूर्णतः नियंत्रित तो नहीं कर सकते परन्तु इनसे सीख लेकदर आगे अवश्य बढ़ सकते हैं !चाहे आर्थिक परिणाम ही क्यों ना प्राप्त हो प्रयास करना मत छोड़िए !

प्रयास करते रहिए ,आगे बढ़ते रहिए अगले ब्लॉग में फिर मुलाकात होगी तब तक हँसते रहिये हँसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद

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” एक सैनिक की क़लम से !”

प्राणों की आहुति का उद्देश्य

एक सच्चा देश भक्त अपने देश की रक्षा के लिए हंसते – हंसतेअपने प्राणों की आहुति दे देता है अपने प्राण न्योछावर करते हुए भी उसका सर गर्व से उठा रहता है !वह देश की रक्षा के नाम पर अपने प्राणों की आहुति इसलिए देता है ताकि उसका देश गौरवान्वित अनुभव कर सके ,आने वाली पीढ़ियां अपने देश पर गर्व कर सकें ,देश के नागरिक स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर चैन की साँस ले सकें और उसका देश तीव्र गति से चहुमुखी विकास कर सकें!

जो स्वयं मरकर भी देश का सर गर्व से ऊँचा कर जाता है

हथियार डालकर अपने प्राणों की रक्षा का विकल्प तो सदैव एक सैनिक के सामने विद्यमान रहता है मगर वह स्वीकार करता है अपने प्राणों का बलिदान देना ,समर्पण कर के पीठ दिखा कर देश को धोखा देने से अच्छा है जय हिंद के नारे के साथ सीने पे गोली खाकर अमर शहीदों में अपना नाम अंकित करा ले !वह स्वयं मर कर भी अपने देश को ज़िंदा रखता है !

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संघर्ष का उद्देश्य

फौज में भर्ती होने वाला कोई सैनिक नहीं जानता कि वह अब अपने घर परिवार में वापस लौट भी पाएगा अथवा नहीं हर पल हर एक क्षण उसके लिए संघर्ष का क्षण होता है उसका यह संघर्ष देश के लिए होने के साथ-साथ स्वयं अपनी आती जाती हर श्वास के साथ की कहीं ये उसकी आख़री श्वांस तो नहीं ,अपने घर परिवार के लिए जीवित वापस लौटने का संघर्ष ,शत्रु के नापाक इरादों को नाकाम करने का संघर्ष , आने वाली पीढ़ी को एक खुशहाल देश सौंपने का संघर्ष !

क्या हम उनकी अभिप्रेरणा का स्रोत नहीं बन सकते ?

हमारे देश का सैनिक स्वयं के संघर्ष पर गौरवान्वित तब होता है जब वह अपने देश को विकसित होते हुए देखता है !आर्थिक विकास ,सामाजिक सद्भाव ,विविधता में एकता की संस्कृति उसे और अधिक उत्साहित करती है वह इस सब से प्रेरणा पाकर सीमा पर निरंतर डटा रहता है अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा करने के लिए तत्पर रहता है ! न की इसलिए की देश में सामाजिक एवं आर्थिक बिखराव हो !

सैन्य सुरक्षा का उदेश्य असुरक्षा तो कदापि नहीं हो सकता !

क्या हमारे देश का सैनिक अपने प्राणों की आहुति इसलिए देता है कि देश में आंतरिक कलह आगज़नी ,दंगों की स्थिति बने ?क्या हमारे देश का सैनिक अपने प्राणों की आहुति इसलिए देता है कि राजनीतिक प्रपंच के चलते समाज में जात -पात का खेल चलता रहे ?क्या हमारे देश का सैनिक अपने प्राणों की आहुति इसलिए देता है कि आर्थिक संसाधनों को दंगों की आग में झोक दिया जाये ?क्या हमारे देश का सैनिक अपने प्राणों की आहुति इसलिए देता है की मोबलिंचिंग की जाए व्यक्ति समूह द्वारा एक निहत्थे व्यक्ति को मारा जाए ?क्या हमारे देश का सैनिक अपने प्राणों की आहुति इसलिए देता है कि अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा की भावना जागृत हो ?क्या हमारे देश का सैनिक अपने प्राणों की आहुति इसलिए देता है कि असुरक्षा की भावना से संपूर्ण समाज अस्त-व्यस्त हो जाए ?

जहां राष्ट्र की सुरक्षा ही खतरे में हो वहाँ अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा का क्या लाभ ?

एक सैनिक की दृष्टि से नालत है ऐसे सैनिक होने पर जहां जनसाधारण ही स्वयं को असुरक्षित अनुभव करते हो ऐसे देश की अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा का क्या लाभ जिस देश की राष्ट्रीय सुरक्षा ही असुरक्षित हो ?देश की सुरक्षा का मूल्य केवल वह सैनिक ही जान सकता है जो देश की रक्षा के लिए अपनी जान तक की बाजी लगा देता है !

और भी हैं गम ज़माने में मोहब्बत के सिवा

यह एक साधारण प्रश्न नहीं हमारी मानवता पर आघात है यदि विचार करेंगे तो यथ आपकी अंतरात्मा को अवश्य कटोचेगा ! “पहले ही दुश्मनों की क्या कमी थी के दोस्तों को भी दुश्मन बनाने चले हैं !”गहन विचार कीजिये वास्तविक समस्या की खोज कर समस्या का निदान ढूंढिए “और भी है गम जमाने में मोहब्बत के सिवा “आतंकवाद ,उग्रवाद ,क्षेत्रवाद, कट्टरवाद ,अशिक्षा, बेरोजगारी , स्वस्थ्य ,सामुदायिक विकास …………आदि !

वास्तविक समस्याओं पर विचार कीजिए उनका हल ढूंढिए अगले ब्लॉग में फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए हंसते रहिए -हंसाते रहिए ,जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए !

धन्यवाद

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“क्या आपने भी कभी बोये हैं उम्मीद के बीज ?”

अँधेरा रोशनी की उम्मीद देता है और रोशनी कुछ करने का जुनून तभी तो दिन ढलने के बाद चारो तरफ अँधेरा होने के बाद भी दिल बेचैन नहीं होता या वो क्या चीज़ है जो उसे बेचैन नहीं होने देती ?वो एक मैजिक वर्ड है जिस पर सारी दुनिया टिकी हुई है !आप बिलकुल सही सोच रहे हैं में उम्मीद की ही बात कर रही थी !

एक उम्मीद अपने साथ जाने कितने ख्वाब लेकर आती है और हर एक ख्वाब अपने पूरा होने का जूनून !इसी उम्मीद ,ख्वाब और जूनून का नाम ही ज़िन्दगी है !कभी कुछ पाने का जूनून तो कभी खोने की दीवानगी बस इसी पाने और खोने का नाम ही है गम और ख़ुशी !यही वह दो चीज़ें हैं जो ज़िंदगी मैं उथल- पुथल मचती है ” खुशी को हर कोई रोके रखना चाहता है परन्तु खुशी की एक आदत होती है वह दूर के किसी सम्बन्धी की तरह होती है अधिक समय तक नहीं ठहरती और इसके बिलकुल विपरीत “गम को कोई रोकना नहीं चाहता परन्तु वह पास के वफ़ादार सम्बन्धी की तरह होता है और ये अगर एक बार आजाये तो लम्बे समय तक छोड़कर नहीं जाता !

सुख दुःख का ये चक्र सदैव चलता रहता है और इसी के इर्द-गिर्द जीवन की नैया डोलती रहती है हार नहीं मानना उम्मीद फिर भी ज़िंदगी से यही बोलती रहती है !कुछ पाने का जूनून और उसको पाकर मिलने वाला सुकून दोनों की उम्मीद बानी रहती है !

उम्मीद के सम्बन्ध मैं एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है “उम्मीद पे दुनियां क़ायम है “वो उम्मीद ही है जो व्यक्ति को नेगेटिविटी से निकालकर पाजिटिविटी की तरफ मोड़ देती है उम्मीद की वजह हो या न हो “वजह ढूंढ़ने की भी वजह देती है “सत्तर के दशक की एक पिक्चर “आनंद ” पूर्णतः इसी पर आधारित थी राजेश खन्ना के प्रसिद्ध डायलॉग बाबू मुशाये को शायद ही आज भी कोई भूल पाया हो वो चीज़ें जो लीग से हटकर होती हैं दिल पर एक चाप छोड़ जाती हैं !

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Ummeed ka beej

निराशा के समय में आशा का दामन थामे रखना ,यह हर किसी के बस की बात नहीं होती लीक से हटकर दूसरों के द्वारा किए जाने वाले काम तो हमे अच्छे लगते परंतु जब अपनी बारी आती है तो आप घबरा जाते हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप मन से हार मान चुके होते हैं वो क्योंकि इस बार समस्या किसी और की नहीं बल्कि आपकी अपनी होती है दूसरों की लीक से हटकर किये जाने वाले काम आपको इसलिए भी पसंद आते हैं क्योंकि उस वक्त आपका माइंड खुला हुआ होता है परंतु जब आपकी अपनी बारी आती है तो आपकी सोचने समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है !

ज़िंदगी में दो ही चीज़ें हैं सुख व दुःख जीवन दुखों से समाप्त नहीं होता जीवन समाप्त होता है निराशा से इसलिए जिंदगी में कभी भी हार मत मानिए बड़े ख्वाब, बड़े होसलों और बड़ी उम्मीदों के साथ बढ़ते रहिए याद रखिये होंसला रखने वालों की कभी हार नहीं होती कुछ लोग तो इस विचारधारा का समर्थन करते हैं कुछ का मानना है कि जिंदगी आपको वह कभी नहीं देती जो आप जिंदगी से चाहते हैं जैसे जिंदगी -जिंदगी ना हुई आपकी दुश्मन हो गई !

जिंदगी आपको वह सब कुछ देती है जो आप जिंदगी से चाहते हैं जरूरत बस एक सही चीज की सही वक्त पर उम्मीद करने की और सही दिशा में आगे बढ़ने की, और आपकी एनर्जी ,आपका हौसला और आप के जुनून को उसी दिशा में बनाये रखने की अगर आप इन सब चीजों का एक निर्धारित दिशा में उपयोग करने में सफल हो जाते हैं तो ना केवल आप अपनी ही उम्मीदों पर खरा उतरने में सक्षम होंगे अपितु दूसरों के लिए भी उम्मीद की एक किरण बन जायेंगे !

जिंदगी आपको वह सब कुछ देती है जो आप इससे चाहते हैं इसलिए एक दिशा निर्धारित कर आगे बढ़ते रहिए अगले ब्लॉग में फिर मुलाक़ात होगी तब तक हंसते रहिए- हंसाते रहिए जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद

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“स्वप्न देखना कभी मत छोड़िये बल्कि रोज़ एक नया स्वप्न देखिये !”

शेख चिल्ली वाले स्वप्न

प्रत्येक व्यक्ति का एक स्वप्न होता है जिसे वे सच में परिवर्तित करना चाहता है !सपनों की भी अपनी एक दुनिया होती है !सभी उठापटक से दूर ,बिना प्रयास के फल की इच्छा “आसमानों में उड़ान रहन-सहन आलीशान “सब कुछ अपनी पहुंच में वह कहावत है ना शेखचिल्ली जो छोटी छोटी सी बातों को बड़ा करके बताते हैं सपनों की दुनिया में जीने वालों का भी यही हाल होता है बिना स्रोतों के ऊंची उड़ान बिना प्रयास के सब देगा भगवान !

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हवा में क़िले मत बांधिए !

स्वप्न का लक्ष्य के साथ सम्बन्ध स्थापित कीजिये

ऊपरवाला अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है !व्यक्ति इच्छा करता है ,ऊपर वाला पूरी करता है ,व्यक्ति चलना आरंभ करता है -ऊपर वाला मंजिल तक पहुंचाता है,व्यक्ति कर्म करता है- ऊपर वाला फल देता है ,तात्पर्य यह हुआ कि हर चीज का “परस्पर संबंध “होता है जो पूर्व निर्धारित होता है !

भाग्य को जगाने के लिए कर्म प्रधान बनिए

इस प्रकार ऊपर वाला भाग्य रचयिता , सृष्टि कर्ता ,फलदाता सब कुछ होते हुए भी उसने “कर्म और फल “के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध स्थापित किया है ! यही संबंध जीवन में आप को आगे ले जाता है !आपके भाग्य को फलीभूत करता है ,आपका जीवन सुख- समृद्धि से भर कर आपको भाग्यशाली बनाता है परन्तु यह सब संभव कैसे हो पाता है केवल कर्म से अर्थात प्रयास से ,प्रयास अर्थात विश्वास से !

प्रतिदिन एक नया लक्ष्य निर्धारित कीजिये

स्वप्न व्यक्ति को आशावादी बनाते हैं इसलिए व्यक्ति को कभी स्वप्न देखना नहीं छोड़ना चाहिए अपितु एक नए लक्ष्य के साथ प्रतिदिन एक नया स्वप्न देखना चाहिए वो भी खुली आँखों से ,क्योंकि खुली आंखों से देखे गए स्वप्न सदैव कर्म प्रधान होते हैं और जहां कर्म की प्रधानता होती है वहां फल स्वतः ही चल कर आता है !

सही दिशा में आगे बढिये

स्वप्न छलावा नहीं है यदि लगन सच्ची हो और पूरे विश्वास से आगे बढ़ा जाये तो यह सत्य अवश्य होते हैं यदि लक्ष्य निर्धारण उपलब्ध संसाधनों के आधार पर किया जाए तो लक्ष्य की प्राप्ति की संभावना और अधिक बढ़ जाती है यह लक्ष्य की प्राप्ति अर्थात स्वप्न की प्राप्ति को एक निश्चित दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है !

आशावादी रहिये -आगे आगे बढ़ते रहिए! अगले ब्लॉग में फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए हंसते रहिए -हंसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद

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“व्यक्ति विचारों से ही ज़िंदा है !”

विचार जीवन का आधार है

जीवन विचारों के साथ आरंभ होता है और विचारों के साथ ही समाप्त हो जाता है ! एक अद्भुत विचित्र लगने वाला यह जीवन कुछ और नहीं विचारों का एक सिलसिला मात्र है !कभी शुन्य से आरंभ तो कभी शुन्य पर समाप्त अर्थ यह हुआ की जीवन का आरम्भ और अंत दोनों ही विचारों पर निर्भर करता है जब तक विचार हैं तब तक हम हैं जिस दिन विचार नहीं समझो हम भी नहीं !अर्थात विचार जीवन का आधार है !

बुद्धिमत्ता की पहचान

विचार आते कहां से हैं !विचार हमारे मन और मस्तिष्क के सयोजन का परिणाम हैं जहां मन और मस्तिष्क मिलते हैं वहीं विचार उत्पन्न होते है मन और मस्तिष्क का यह अद्भुत संबंध केवल मनुष्यों में ही पाया जाता है सोच समझ के लिए एक विकसित मस्तिष्क की आवश्यकता होती है जो समस्त जीवधारीयों की अपेक्षा केवल मनुष्य में ही पाया जाता है !विचार परिवर्तनशील होते हैं जो परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तित होते रहते हैं ,परिस्थिति और विचारों का यह अद्भुत संबंध भी केवल मनुष्यों में ही देखने को मिलता है तभी तो मनुष्य सर्वाधिक बुद्धिमान कहलाता है !

विचार हमारी समझ व हमारे ज्ञान के धोतक है वह विचार ही है जो व्यक्ति को मान-सम्मान दिलते हैं यदि व्यक्ति महान बनता है तो अपने विचारों से !घर- परिवार ,कार्य -व्यापार सब की सफलता व असफलता विचारों पर ही निर्भर करती है !इस प्रकार विचार हमारे संबंधों को जोड़ने वाली कड़ी का काम करते हैं अतः इस प्रकार यह हमारे संबंधों को सींचने वाला वाला अमृत है !

विचार परिवर्तन के धोतक हैं

क्रांतिकारी विचारों ने एक बड़ा परिवर्तन ला दिया जब इन्हीं विचारों ने प्रेम का रूप धारण किया तो हीर राँझा को बना दिया !करुणा ,दया ,ममता ,सुख -दुख और जाने क्या-क्या ?सब कुछ इन विचारों की ही तो देन है !कभी बंधन युक्त कर लेते हैं तो कभी बंधन मुक्त !यह जीवन को आधार प्रदान करते हैं और निराधार भी यही बनाते हैं कभी हमें अपने सुख के लिए जीने को प्रेरित करते हैं तो कभी अन्यों की भावनाओं को आहत ना करने के लिए अतः इस प्रकार विचारों की स्वाधीनता और पराधीनता का नाम ही जीवन है !

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जब हम विचारों की बात करते हैं तो विचारों का अर्थ होता है विचारशील होना !विचार अर्थात प्रगति, प्रगति इसलिए क्यूंकि हमारा भविष्य भूत के विचारों के आधार पर ही दिशा पता है व्यक्ति की सफलता एवं असफलता उसके सकारात्मक एवं नकारात्म विचारों पर ही निर्भर करती है !जीवन में नवाचार नयापन सब कुछ विचारों पर ही निर्भर करता है इसका अनुमान विश्व में होने वाली विभिन्न क्रांतियों से लगाया जा सकता है जिनका आरंभ विचारों से ही हुआ !

विचार व्यक्ति के अस्तित्व की पहचान है अतः इन्हें निरंतर रखिये वैचारिक निरंतरता से ही जीवन चलाएं मान है !अपनी वैचारिक निरंतरता को जारी रखते हुए आगे बढ़ते रहिये अगले ब्लॉक में फिर मुलाकात होगी तब तक के लिए हंसते रहिए- हंसाते रहिए ,जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिए !

धन्यवाद

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“मानव का उपहास नैतिकता का हास !”

उपयोगिता का हास अस्तित्व होता समाप्त

प्रत्येक वस्तु की अपनी एक विशेषता होती है और उसकी यही विशेषता उसे विशिष्ट बनती है औरों से भिन्न ,औरों से अलग, औरों से जुदा और कब उसकी यही भिन्नता एवं विशिष्टता उपयोगिता में परिवर्तित हो जाती है पता ही नहीं चलता !और जब किसी का आकलन उपयोगिता के आधार पर किया जाने लगे तो फिर चाहे वह वस्तु हो अथवा व्यक्ति केवल उपयोगी रहने तक ही सर्वप्रिय बना रहता है और उपयोगिता के हास के साथ ही उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है !

क्या एक असंवेदनशील समाज को सभ्य समाज की संज्ञा देना उचित होगा ?

यह कैसी विडंबना है इस असंवेदनशील समाज की जिसमें निर्जीव और सजीव के बीच का अंतर ही समाप्त होता जा रहा है आज व्यक्ति जिस सभ्य समाज में रहने का दंभ भरता है !क्या वास्तव में इसे एक सभ्य समाज कहां जा सकता है ?और यदि हां तो कैसे ?व्यक्ति की विशिष्टता का आकलन उसकी उपयोगिता के आधार पर करने से ,वस्तुओं को उसके सापेक्ष ला खड़ा करने से ,किसी की मनोभावना को चोट पहुंचाने से ,लोगों के साथ किये जाने वाले असंवेदनशील व्यवहार से या व्यक्ति का उपहास उड़ाने से…………..?

परिवर्तित होती मानवीय सोच

क्या व्यक्ति की सोच इतनी सीमित हो गई है ?क्या उसके समझ का दायरा इतना मशीनी हो गया है ?क्या व्यक्ति केवल एक हाड़ -मास का पुतला मात्र बनकर रह गया है ?प्रेम ,समर्पण ,त्याग क्यायह सब गुज़री हुई बातें बनकर रह गयी हैं?और यदि है भी तो कृपा स्वरूप !

ये कैसा रूप है मन की तंग गलियों का ? यह कैसा कुरूप रूप है सुंदरता का चोला ओढ़े समाज का ?

आज मनुष्य ने कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधनों से तन को सुन्दर बनाने में तो सफलता अर्जित करली है !परंतु मन की सुंदरता पर कोई विचार नहीं करता जो मुफ्त में मिलती है और व्यक्ति को अमूल्य बना देती है !

मूल्य हमें अमूल्य बनाते हैं और अमूल्य होने में ही विशिष्टता है

एक दूसरे पर विश्वास, एक दूसरे का सहयोग ,एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान कभी बस यही थी हमारी पहचान !क्यूँ न हम अपनी पहचान को दोबारा निर्मित करें ?भावना ,संवेदनशीलता और करुणा जिसके लिए हम विश्व प्रसिद्ध रहे हैं !क्यों ना उन्हें पुनर्जीवित करें !हम अपनी धरोहरो को खंडित ना होने दें, उन्हें सहेजें यह हमारे अतीत की विरासत हैं इनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है !यह हमें अमूल्य बनाती हैं और अमूल्य होने में ही विशिष्टता है हमने आर्थिक विकास व तकनीक के साथ -साथ अन्य क्षेत्रों में तो खूब कीर्तिमान स्थापित किये हैं अपनी विशिष्ट के झंडे गड़े हैं तो इस क्षेत्र में क्यूँ नहीं ?जब हम Z तक पहुँच गए तो A,B,C,D तो हमारे बायें हाथ का खेल है !

हमें हमारी मूल्य रूपी धरोहर को जीवित रखना होगा

नैतिकता का हास मानवता का हास है !याद रखिए प्रत्येक मशीन मनुष्य का अविष्कार मात्र है परंतु मनुष्य ईश्वर की एक अनमोल कृति है जिसका गुड़ है मनुष्यतव !एक मनुष्य सैकड़ों मशीनों का निर्माण कर सकता है परन्तु संसार की समस्त मशीने मिलकर भी एक मनुष्य का निर्माण नहीं कर सकती तभी तो मनुष्य अमूल्य है और मनुष्यत्व उसकी धरोहर जिसकी रक्षा हमारा कर्त्तव्य ही नहीं अपितु धर्म है !

नैतिकता को सहेजिये मनुष्यत्व की रक्षा कीजिये !अगले पोस्ट में फिर मिलेंगे तब तक हँसते रहिये -हांसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद

!!!🙏🙏🙏!!!

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“ज़माना खराब है !”

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Tum bas khud ke liye jiyo !
khushee khud kee hee khaas hai !!
phir kehte ho -zamana kharab he !!!
swatantra astitva
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“स्त्री ,जो समस्त संसार का आधार है ! स्वयं निराधार कैसे हो सकती है?”

संसार में नारी को निसहाय निर्बल व अबला समझने वालों की कोई कमी नहीं है !नारी अबला नहीं है ,न हीं वह बेचारी है वह तो षड़यंत्र की मारी है! नारी को अबला प्रचारित या घोषित करना इस छदम पुरुषप्रधान समाज का एक दुस्साहस प्रयास मात्र है !प्रेम, मोह- माया व संबंधों के प्रति समर्पण ममता व करुणा के वशीभूत होकर उसने स्वयं ही अपनी प्रगति को बाधित किया है जो कि उसकी कोमल भावनाओं का प्रतीक है उसकी कोमलता से उसकी कमजोरी का अनुमान लगाना पूर्णतःअनुचित है !

महिलाओं के संदर्भ में इस गीत की पंक्तियाँ बहुत सटीक बैठती हैं
कोमल है कमज़ोर नहीं तू !
शक्ति का नाम ही नारी है !!
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“क्यूंकि डर के आगे जीत है !”

लक्ष्य निर्धारण की स्थिति

लक्ष्य के निर्धारण की स्थिति में मन उच्च मनोभावों का अनुसरण करता है तभी तो लक्ष्य के निर्धारण के साथ ही कुछ लोगों का व्यवहार यूं प्रतीत होता है मानो लक्ष्य का निर्धारण ना किया गया हो वरन लक्ष्य की प्राप्ति कर ली गई हो !जबकि वास्तव में लक्ष्य के निर्धारण और लक्ष्य की प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण अंतर होता है एक में महत्वाकांक्षा त्मा सकारात्मकता और दूसरे में एक लंबे मार्ग को तय करने से होने वाली खीझ व थकन जो एक लंबे मार्ग से गुजरने के पश्चात होती है !

लक्ष्य प्राप्ति का डर और द्वन्द

लक्ष्य की प्राप्ति में एक लम्बे मार्ग का अनुसरण करना पड़ता है !यह एक लम्बा मार्ग है जिसमे कई बाधाओं को लांघना होता है जो व्यक्ति लक्ष्य का निर्धारण कर ‘होगा या नहीं ‘ के नकारात्मक द्वन्द में फंस जाता है और लक्ष्य के मार्ग में आने वाली बाधाओं से घबराकर हार मान लेता है उसके मन में नकारात्मकता का भाव भर जाता है उसके मन में एक डर बैठ जाता है एक ऐसा डर जो उसके लक्ष्य को मार्ग में ही निगल जाता है !

लक्ष्य प्राप्ति में संघर्ष का महत्व

इसके विपरीत जो व्यक्ति संघर्ष करते हुए बाधाओं को पार कर जाता है वास्तव में वही विजय श्री पाता है !इस प्रकार कहा जा सकता है की लक्ष्य व संघर्ष का अटूट सम्बन्ध है लक्ष्य के बिना संघर्ष और संघर्ष के बिना लक्ष्य का कोई मोल नहीं !

आपका लक्ष्य आपकी मनोभावना पर निर्भर करता है जो की किसी वास्तु अथवा व्यक्ति विशेष के प्रति मनुष्य में लालसा के रूप में विद्यमान रहता है !

लक्ष्य के रूप

लक्ष्य यथार्थ एवं आदर्श दोनों रूपों में पाया जाता है जिसका प्रभाव व्यक्ति पर अधिक होता हे उसका लक्ष्य भी उसी से अधिक प्रभावित रहता है !लक्ष्य चाहे यथार्थ आधारित हो अथवा आदर्श आधारित संघर्ष दोनों में विद्यमान रहता है !लक्ष्य एक स्वप्न की भांति होता है !

वास्तविक विजेता

स्वप्न तो हर कोई देखना चाहता है लक्ष्य के लाभ से लाभान्वित भी हर कोई होना चाहता है परन्तु लाभ केवल वही पाता है जो हानि की परवाह किये बिना आगे बढ़ जाता है डर जिससे हार जाता है वही विजेता कहलाता है !

हौंसला कीजिये आगे बढिये क्यूंकि ” डर के आगे जीत है !”अगले पोस्ट में फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए हँसते रहिये -हंसाते रहिये जीवन अनमोल है मुस्कुराते रहिये !

धन्यवाद

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two
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“क्या संचार के अभाव में विश्वास का निर्मित होना संभव है !”

विश्वास का अर्थ है परस्पर समझ जो संचार द्वारा ही संभव है

विश्वास का अर्थ है परस्पर समझ और यह समझ परस्पर संचार से विकसित होती है !यदि कुशल संचार की तुलना एक कुशल मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ से की जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी , जिस प्रकार मनोचिकित्सक रोगी के मनोविज्ञान को भली-भांति जान जाता है ठीक उसी प्रकार एक प्रबंधक अधीनस्थ की मनोदशा को जानकर सामंजस्य बैठता है संगठन व कर्मचारी के उद्देश्यों में एकीकरण स्थापित कर दोनों को एक -दूसरे के लिए उपयोगी बनाता है !वह उसे विश्वास दिलाता है की संगठन के हित में ही उसका हित है इस प्रकार वह विश्वास के माध्यम से दोनों के हितों को जोड़ देता है ! इस प्रकार संचार दो मस्तिष्कों के मध्य साझा समझ स्थापित करने वाला कारक है !

विकास विचारों के आदान -प्रदान द्वारा ही संभव है

संचार एक सामान्य शब्द है जिसका उपयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता है संचार दो मस्तिष्कों को बांधने वाला पूल है !जो बंधता है परस्पर विश्वास से ,परस्पर हितों से और परस्पर विचारों के आदान-प्रदान से ,कई बार परिस्थितियां भी इस सामंजस्य के लिए उत्तरदायी होती हैं !उचित समय पर उचित संचार से उचित निर्णयों को बढ़ावा मिलता है जिससे विकास का मार्ग प्रशस्त होता है !

संचार सहयोग प्राप्त करने का माध्यम है

परस्पर विश्वास से दो व्यक्तियों के मध्य संचार को बढ़ावा मिलता है और संचार के माध्यम से अन्य व्यक्ति की प्रेरणा को समझ कर उसे विभिन्न प्रोत्साहनओ के द्वारा अभीप्रेरित कर परस्पर उद्देश्यों में उसका सहयोग प्राप्त किया जा सकता है !अभी -करना प्रेरणाओं के माध्यम से व्यक्ति का सहयोग प्राप्त करना सरल है यदि सहयोग प्राप्त करता और सहयोग प्रदान करता का लक्ष्य समान हो तो ऐसे में व्यक्ति का सहयोग प्राप्त और भी सरल हो जाता है !

प्रश्न का अर्थ संदेह नहीं अपितु संबंधों में निकटता लाना है

पिछले पोस्ट में हम इस विषय पर चर्चा कर रहे थे कि प्रश्न पूछने का अर्थ होता है संदेह करना परंतु आज के समय में इसका अर्थ पूर्णता परिवर्तित हो चुका है ,प्रश्न का अर्थ संदेह होना यह प्रश्न की प्राचीन परिभाषा हुआ करती थी वर्तमान युग में प्रश्न का अर्थ पूर्णता परिवर्तित हो चुका है वर्तमान युग में प्रश्न से तात्पर्य है संबंधों में निकटता लाना !वर्तमान में प्रश्न इस सिद्धांत पर आधारित है कि अधिकतर संबंध प्रभावी संचार के अभाव में ही दम तोड़ देते हैं एक दूसरे पर अविश्वास का प्रमुख कारण ही अकुशल संचार है ! इस विषय पर हम पहले भी चर्चा करचुके हैं की संचार दो मस्तिष्कों को जोड़ने वाला पूल है और दो लोगों के मध्य ये विश्वास का पूल तभी बंध सकता है जब मन और मस्तिष्क एक हो जायें अर्थ यह हुआ की कथनी और करनी में अंतर से व्यक्ति संदेह के दायरे में आ जाता है !

मन और मस्तिष्क का चोली -दामन का साथ है

संदेह का निराकरण मन और मस्तिष्क के एकीकरण द्वारा ही संभव है क्योंकि मन व मस्तिष्क का साथ ‘चोली -दामन ‘का साथ है क्योंकि मन के चाहे बिना मस्तिष्क सोच नहीं सकता और मस्तिष्क के सोचे बिना मन आगे नहीं बढ़ सकता अतः जब व्यक्ति का मन व मस्तिष्क एक हो जाता है तो व्यक्ति संदेह रहित हो जाता है और ऐसा प्रायः कुशल संचार द्वारा ही संभव है !